Vsk Jodhpur

अपनी बात-भारतीय ऋषि परम्परा के वाहक

हितेश शंकर

मंथन से पहले घटनाओं की एक झांकी।
27 जुलाई को कामकाजी सप्ताह का पहला दिन। सोमवार के अखबार ‘सलमान के ट्वीट से बवाल’ की मुनादी कर रहे थे। ‘टाइगर मेमन को फांसी दो, न कि याकूब को…।’ आधी रात के ज्ञान से उपजी यह संभ्रांत पैरोकारी कायदे से ठंडी भी नहीं हुई थी कि गुरदासपुर में आतंकी हमले से माहौल गरमा गया। दीनानगर थाने से सटी इमारत पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकियों के कब्जे में थी। मुंबई पर आतंकी हमलों की याद ताजा हो गई। याकूब मेमन के तमाम पैरोकार अचानक दुबक गए।

मीडिया की नजर अब मुठभेड़ पर थी। शाम होते-होते आतंकियों का अंत हुआ, मुठभेड़ समाप्त हुई। लेकिन…प्राइम टाइम में बहस के मंच सजते इससे पहले एक और खबर आ गई। दु:ख से भरी ऐसी खबर जिसके साथ लिपटे थे कई जवाब। ये जवाब कई लोगों के लिए थे।

गुरदासपुर के घटनाक्रम को चोर निगाहों से देखते पड़ोसी देश के लिए। याकूब मेमन के उन पैरोकारों के लिए जिनके अनुसार देश में मुसलमानों से सौतेला व्यवहार होता है। मानवाधिकारों के उन झंडाबरदारों के लिए जिनके लिए ‘दानवों’ को बचाना ही मानवता है। और सबसे बढ़कर, उन लोगों के लिए जिन्हें इस देश को हिन्दू-मुस्लिम चश्मे से देखने की आदत है।

पूरा देश रो रहा था… इस बात से बेपरवाह कि उसके सबसे लोकप्रिय राष्ट्रपति किस उपासना पद्धति के मानने वाले थे। विडंबना ही है कि रामेश्वरम में उस विभूति के ‘सुपुर्दे खाक’ होते-होते मानवता का नकाब ओढ़े कुछ लोग फिर अपनी-अपनी मांदों से बाहर निकल आए। 257 निदार्ेष लोगों की हत्या के षड्यंत्र में साझीदार रहे व्यक्ति की दोष-सिद्धि पर रात ढाई बजे सवाल उठाने वाली इन टोलियों के मंसूबे कुछ और हैं। डॉ. कलाम को मृत्युदंड का विरोधी बताने वाले कभी यह उल्लेख नहीं करना चाहेंगे कि मानवता के लिए उनका दर्शन क्या था और आतंकियों के मानवाधिकारों के बारे में वे क्या सोचते थे।

मार्च, 2010 में एक सेमिनार के दौरान डॉ. कलाम ने आतंकवाद पर अपनी राय खुलकर लोगों के सामने रखी थी। उनका कहना था कि भारत में आतंकवाद के अंत के लिए इसके खिलाफ एक राष्ट्रीय अभियान शुरू करने की आवश्यकता है। सुरक्षा बलों को नए किस्म के आतंक से निपटने के लिए तकनीकी तौर पर ज्यादा तैयार होना चाहिए। वर्ष 2007 में डॉ. कलाम ने ‘याहू इंडिया’ के जरिए देश के सामने अपने मन में घुमड़ता सबसे बड़ा प्रश्न रखा था। इस गहरे-गंभीर और विस्तृत सवाल का सार था- ‘अपने ग्रह को आतंकवाद से मुक्त करने करने के लिए हमें क्या करना चाहिए?’

जवाबों की संख्या और उत्तर देने वालों के स्तर की दृष्टि से याहू के लिए यह ऐतिहासिक दिन था। लेकिन, इस सवाल में ‘मिसाइल मैन’ की दृष्टि को समझना ज्यादा आवश्यक है। भारत या किसी अन्य क्षेत्र विशेष के लिए नहीं, बल्कि यह जुड़ाव ‘अपने ग्रह’ यानी पूरी ‘पृथ्वी’ के लिए है। मानवता को दु:ख पहुंचाने वाली आतंकवाद जैसी बीमारियों का इलाज तलाशने के लिए समाज की सज्जन शक्ति का आह्वान करने में यहां कोई हिचक नहीं दिखती।

संपूर्ण सृष्टि से एकात्मभाव रखने की चाह और समाज में सामूहिक सकारात्मक भाव जगाने की ऐसी पहल डॉ. कलाम को सिर्फ एक वैज्ञानिक, राजनेता या शिक्षाविद् से परे खालिस भारतीय ऋषि परंपरा का वाहक बना देती है। डॉ. कलाम ने अपने जीवन को माध्यम बनाते हुए ‘पक्के भारतीय’ जवाब दे दिए। लेकिन कई सवालों के जवाब इस समाज को खुद तलाशने हैं।

जिन्हें  डॉ. कलाम दोबारा राष्ट्रपति के तौर पर मंजूर नहीं थे, वे लोग कौन थे? मेमन को मौत से माफी दिलाने का हस्ताक्षर अभियान चलाने वाले लोग कौन हैं? याकूब मेमन की पेशबंदी करते हुए रात के तीसरे पहर न्यायपालिका की घेराबंदी करने पहुंची टोलियां कौन सी हैं? इन सूचियों को मिलाएं तो क्या किसी ‘षड्यंत्रकारी साझेपन’ का चेहरा  उभरता है?

इस चेहरे की पहचान और पृथ्वी पर फैलती आतंकवादी विषबेल को कुचलने की सामूहिक तैयारी ही उस राष्ट्ररत्न को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। उन्होंने अपना काम पूरी लगन से किया, अब बारी हम सबकी है।

साभार:: पाञ्चजन्य

सोशल शेयर बटन

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Archives

Recent Stories

Scroll to Top