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स्वतंत्रता संग्राम और संघ

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स्वतंत्रता संग्राम और संघ


BKR_9217

संघ संस्‍थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जन्‍मजात
देशभक्‍त और प्रथम श्रेणी के क्रांतिकारी थे. वे युगांतर और अनुशीलन समिति
जैसे प्रमुख विप्‍लवी संगठनों में डॉ. पाण्‍डुरंग खानखोजे, अरविन्‍द जी,
वारीन्‍द्र घोष, त्रैलौक्‍यनाथ चक्रवर्ती आदि के सहयोगी रहे. रासबिहारी बोस
और शचीन्‍द्र सान्‍याल द्वारा प्रथम विश्‍वयुद्ध के समय 1915 में
सम्‍पूर्ण भारत की सैनिक छावनियों में क्रान्ति की योजना में वे मध्‍यभारत
के प्रमुख थे. उस समय स्‍वतंत्रता आंदोलन का मंच कांग्रेस थी. उसमें भी
प्रमुख भूमिका निभाई. 1921 और 1930 के सत्‍याग्रहों में भाग लेकर कारावास
का दण्‍ड पाया.
1925 में विजयादशमी पर संघ स्‍थापना करते समय डॉ.  हेडगेवार जी का
उद्देश्‍य राष्‍ट्रीय स्‍वाधीनता ही था. संघ के स्‍वयंसेवकों को जो
प्रतिज्ञा दिलाई जाती थी, उसमें राष्ट्र की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए
तन-मन-धन और प्रामाणिकता से प्रयत्नपूर्वक आजन्मरत रहने का संकल्प होता था.
संघ स्‍थापना के तुरन्‍त बाद से ही स्‍वयंसेवक स्‍वतंत्रता संग्राम में
अपनी भूमिका निभाने लगे थे.
क्रान्तिकारी स्‍वयंसेवक
संघ का वातावरण देशभक्तिपूर्ण था. 1926-27 में जब संघ नागपुर और आसपास
तक ही पहुंचा था, उसी काल में प्रसिद्ध क्रान्तिकारी राजगुरू नागपुर की
भोंसले वेदशाला में पढ़ते समय स्‍वयंसेवक बने. इसी समय भगत सिंह ने भी
नागपुर में डॉक्‍टर जी से भेंट की थी. दिसम्‍बर 1928 में ये क्रान्तिकारी
पुलिस उपकप्‍तान सांडर्स का वध करके लाला लाजपत राय की हत्‍या का बदला लेकर
लाहौर से सुरक्षित आ गए थे. डॉ. हेडगेवार जी ने राजगुरू को उमरेड में
भैय्या जी दाणी (जो बाद में संघ के अ.भा. सरकार्यवाह रहे) के फार्म हाउस
में छिपने की व्यवस्था की थी. 1928 में साइमन कमीशन के भारत आने पर पूरे
देश में उसका बहिष्‍कार हुआ. नागपुर में हड़ताल और प्रदर्शन करने में संघ
के स्‍वयंसेवक अग्रिम पंक्ति में थे.
महापुरूषों का समर्थन
1928 में विजयादशमी उत्‍सव पर भारत की असेम्‍बली के प्रथम अध्‍यक्ष और
सरदार पटेल के बड़े भाई विट्ठल भाई पटेल जी उपस्थित थे. अगले वर्ष 1929 में
महामना मदनमोहन मालवीय जी ने उत्‍सव में उपस्थित हो संघ को अपना आशीर्वाद
दिया. स्‍वतंत्रता संग्राम की अनेक प्रमुख विभूतियां संघ के साथ स्‍नेह
संबंध रखती थीं.
शाखाओं पर स्‍वतंत्रता दिवस
31 दिसम्‍बर, 1929 को लाहौर में कांग्रेस ने प्रथम बार पूर्ण स्वाधीनता
को लक्ष्‍य घोषित किया और 16 जनवरी, 1930 को देशभर में स्‍वतंत्रता दिवस के
रूप में मनाने का निश्‍चय किया गया.
डॉ. हेडगेवार ने दस वर्ष पूर्व 1920 में नागपुर में हुए कांग्रेस के
अधिवेशन में पूर्ण स्‍वतंत्रता संबंधी प्रस्‍ताव रखा था, पर तब वह पारित
नहीं हो सका था. 1930 में कांग्रेस द्वारा यह लक्ष्‍य स्‍वीकार करने पर
आनन्दित हुए डॉ. हेडगेवार जी ने संघ की सभी शाखाओं को परिपत्र भेजकर रविवार
26 जनवरी, 1930 को सायं 6 बजे राष्‍ट्रध्‍वज वन्‍दन करने और स्‍वतंत्रता
की कल्‍पना और आवश्‍यकता विषय पर व्‍याख्‍यान की सूचना करवाई. इस आदेश के
अनुसार संघ की सब शाखाओं पर स्‍वतंत्रता दिवस मनाया गया.
सत्‍याग्रह
6 अप्रैल, 1930 को दांडी में समुद्र तट पर गांधी जी ने नमक कानून तोड़ा
और लगभग 8 वर्ष बाद कांग्रेस ने दूसरा जनान्‍दोलन प्रारम्‍भ किया. संघ का
कार्य अभी मध्‍यभारत प्रान्‍त में ही प्रभावी हो पाया था. यहां नमक कानून
के स्‍थान पर जंगल कानून तोड़कर सत्‍याग्रह करने का निश्‍चय हुआ. डॉ.
हेडगेवार जी संघ के सरसंघचालक का दायित्‍व डॉ. परांजपे को सौंप स्‍वयं अनेक
स्‍वयंसेवकों के साथ सत्‍याग्रह करने गए.
जुलाई 1930 में सत्‍याग्रह हेतु यवतमाल जाते समय पुसद नामक स्‍थान पर
आयोजित जनसभा में डॉ. हेडगेवार जी के सम्‍बोधन में स्‍वतंत्रता संग्राम में
संघ का दृष्टिकोण स्‍पष्‍ट होता है. उन्‍होंने कहा था – स्वतंत्रता
प्राप्ति के लिए अंग्रेजों के बूट की पॉलिश करने से लेकर उनके बूट को पैर
से निकालकर उससे उनके ही सिर को लहुलुहान करने तक के सब मार्ग मेरे
स्‍वतंत्रता प्राप्ति के साधन हो सकते हैं. मैं तो इतना ही जानता हूं कि
देश को स्‍वतंत्र कराना है.
डॉ. हेडगेवार जी के साथ गए सत्‍याग्रही जत्‍थे में अप्पा जी जोशी (बाद
में सरकार्यवाह), दादाराव परमार्थ (बाद में मद्रास में प्रथम प्रांत
प्रचारक) आदि 12 स्वयंसेवक शामिल थे.
उनको 9 मास का सश्रम कारावास दिया गया. उसके बाद अ.भा. शारीरिक शिक्षण
प्रमुख (सर सेनापति) मार्तण्ड जोग जी, नागपुर के जिला संघचालक अप्पा जी
ह्ळदे आदि अनेक कार्यकर्ताओं और शाखाओं के स्वयंसेवकों के जत्थों ने भी
सत्याग्रहियों की सुरक्षा के लिए 100 स्वयंसेवकों की टोली बनाई, जिसके
सदस्य सत्याग्रह के समय उपस्थित रहते थे. 8 अगस्‍त को गढ़वाल दिवस पर धारा
144 तोड़कर जुलूस निकालने पर पुलिस की मार से अनेक स्‍वयंसेवक घायल हुए.
विजयादशमी 1931 को डाक्‍टर जी जेल में थे, उनकी अनुपस्थिति में
गांव-गांव में संघ की शाखाओं पर एक संदेश पढ़ा गया, जिसमें कहा गया था –
देश की परतंत्रता नष्‍ट होकर जब तक सारा समाज बलशाली और आत्‍मनिर्भर नहीं
होता, तब तक रे मना ! तुझे निजी सुख की अभिलाषा का अधिकार नहीं.
जनवरी 1932 में विप्‍लवी दल द्वारा सरकारी खजाना लूटने के लिए हुए
बालाघाट काण्‍ड में वीरबाघा जतिन (क्रांतिकारी जतिंद्र नाथ) अपने साथियों
सहित शहीद हुए और बाला जी हुद्दार आदि कई क्रान्तिकारी बन्दी बनाए गए.
हुद्दार जी उस समय संघ के अ.भा. सरकार्यवाह थे.
संघ पर प्रतिबन्‍ध
संघ के विषय में गुप्तचर विभाग की रपट के आधार पर मध्‍यभारत सरकार
(जिसके क्षेत्र में नागपुर भी था) ने 15 दिसंबर 1932 को सरकारी कर्मचारियों
के संघ में भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया.
डॉ. हेडगेवार जी के देहान्‍त के बाद 5 अगस्‍त 1940 को सरकार ने भारत
सुरक्षा कानून की धारा 56 व 58 के अन्‍तर्गत संघ की सैनिक वेशभूषा और
प्रशिक्षण पर पूरे देश में प्रतिबंध लगा दिया.
1942 का भारत छोड़ो आंदोलन
संघ के स्‍वयंसेवकों ने स्‍वतंत्रता प्राप्ति के लिए भारत छोड़ो आंदोलन
में भी सक्रिय भूमिका निभाई. विदर्भ के अष्‍टीचिमूर क्षेत्र में समानान्‍तर
सरकार स्‍थापित कर दी. अमानुषिक अत्‍याचारों का सामना किया. उस क्षेत्र
में एक दर्जन से अधिक स्‍वयंसेवकों ने अपना जीवन बलिदान किया. नागपुर के
निकट रामटेक के तत्‍कालीन नगर कार्यवाह रमाकान्‍त केशव देशपांडे उपाख्‍य
बाळा साहब देशपाण्‍डे जी को आन्‍दोलन में भाग लेने पर मृत्‍युदण्‍ड सुनाया
गया. आम माफी के समय मुक्‍त होकर उन्होंने वनवासी कल्‍याण आश्रम की
स्‍थापना की.
देश के कोने-कोने में स्वयंसेवक जूझ रहे थे. मेरठ जिले में मवाना तहसील
पर झण्डा फहराते स्वयंसेवकों पर पुलिस ने गोली चलाई, जिसमें अनेक स्वयंसेवक
घायल हुए.
आंदोलनकारियों की सहायता और शरण देने का कार्य भी बहुत महत्‍व का था.
केवल अंग्रेज सरकार के गुप्‍तचर ही नहीं, कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के
कार्यकर्ता भी अपनी पार्टी के आदेशानुसार देशभक्‍तों को पकड़वा रहे थे. ऐसे
में जयप्रकाश नारायण और अरुणा आसफ अली दिल्‍ली के संघचालक लाला
हंसराजगुप्‍त के यहां आश्रय प्राप्त करते थे. प्रसिद्ध समाजवादी अच्‍युत
पटवर्धन और साने गुरूजी ने पूना के संघचालक भाऊ साहब देशमुख जी के घर पर
केन्‍द्र बनाया था.
पत्री सरकार गठित करने वाले प्रसिद्ध क्रान्तिकारी नाना पाटिल को औंध (जिला सतारा) में संघचालक पं. सातवलेकर जी ने आश्रय दिया.


स्‍वतंत्रता प्राप्ति हेतु संघ की योजना
ब्रिटिश सरकार के गुप्‍तचर विभाग ने 1943 के अन्‍त में संघ के विषय में
जो रपट प्रस्‍तुत की, वह राष्‍ट्रीय अभिलेखागार की फाइलों में सुरक्षित है,
जिसमें सिद्ध किया है कि संघ योजना पूर्वक स्‍वतंत्रता प्राप्ति की ओर बढ़
रहा है.
स्त्रोत: vskbharat.com
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