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लिथियम-आयन बैटरी को सोडियम-आयन बैटरी की चुनौती: भारत में ऊर्जा क्रांति का नया अध्याय

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भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों, स्मार्टफोन और ऊर्जा भंडारण प्रणालियों के लिए लिथियम-आयन बैटरियों का उपयोग पिछले एक दशक में तेजी से बढ़ा है। लिथियम-आयन बैटरियां अपनी उच्च ऊर्जा घनता, हल्के वजन और लंबी लाइफ के कारण लोकप्रिय हैं, लेकिन इनकी सीमित उपलब्धता, बढ़ती कीमत और आपूर्ति शृंखला पर निर्भरता ने दुनिया को वैकल्पिक तकनीकों की ओर सोचने पर मजबूर किया है। ऐसे समय में सोडियम-आयन बैटरियां एक मजबूत विकल्प के रूप में उभर रही हैं, जो लिथियम-आयन बैटरियों को सीधी चुनौती दे रही हैं।

सोडियम-आयन बैटरी, जैसा कि नाम से स्पष्ट है, चार्ज और डिस्चार्ज के लिए लिथियम के बजाय सोडियम आयन का उपयोग करती है। सोडियम, लिथियम की तुलना में पृथ्वी में 500 गुना अधिक मात्रा में उपलब्ध है और भारत जैसे समुद्र तटीय देश के लिए यह संसाधन बेहद सुलभ है। इसी वजह से सोडियम-आयन बैटरियों की लागत लिथियम-आयन बैटरियों की तुलना में काफी कम है, जिससे इलेक्ट्रिक व्हीकल्स और अन्य उपकरणों की कीमतों में भारी गिरावट आ सकती है। उदाहरण के लिए, जहां लिथियम की कीमत 80,000 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई है, वहीं सोडियम की कीमत करीब 800 डॉलर प्रति टन है।

तकनीकी दृष्टि से, सोडियम-आयन बैटरियां तेजी से चार्ज हो सकती हैं और इनकी लाइफ साइकल भी 3,000 से 6,000 चार्जिंग साइकल तक हो सकती है, जो लिथियम-आयन बैटरियों के बराबर या उससे अधिक है। साथ ही, सोडियम-आयन बैटरियों में थर्मल रनवे या आग लगने की संभावना बहुत कम होती है, जिससे इनकी सुरक्षा बेहतर है। कम तापमान वाले क्षेत्रों में भी इनका प्रदर्शन लिथियम-आयन बैटरियों से बेहतर पाया गया है, जिससे ये भारत के उत्तरी राज्यों में भी कारगर साबित हो सकती हैं।

हालांकि, सोडियम-आयन बैटरियों की ऊर्जा घनता (energy density) अभी लिथियम-आयन बैटरियों से कम है। यानी, समान वजन या आकार में ये कम ऊर्जा स्टोर कर सकती हैं। यह इलेक्ट्रिक कारों या ऐसे उपकरणों के लिए चुनौती है, जहां हल्के वजन और अधिक ऊर्जा की जरूरत होती है। लेकिन जहां वजन बहुत मायने नहीं रखता—जैसे बस, ट्रक, ग्रिड स्टोरेज, या दोपहिया वाहनों में—वहां सोडियम-आयन बैटरियां आदर्श विकल्प बन सकती हैं।

भारत के लिए यह तकनीक इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि देश में लिथियम के भंडार सीमित हैं और अधिकांश लिथियम आयात करना पड़ता है। वहीं, सोडियम के विशाल भंडार और घरेलू उपलब्धता भारत को ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ा सकती है। इसके अलावा, सोडियम-आयन बैटरियों में कोबाल्ट जैसे महंगे और विवादित धातुओं की जरूरत नहीं होती, जिससे पर्यावरण और मानवाधिकार संबंधी चिंताएं भी कम होती हैं।

आज चीन, दक्षिण कोरिया और यूरोप की कंपनियां सोडियम-आयन बैटरियों के बड़े पैमाने पर उत्पादन और व्यावसायिक उपयोग की दिशा में आगे बढ़ रही हैं। भारत में भी कई स्टार्टअप और सरकारी संस्थान इस तकनीक पर शोध एवं विकास कर रहे हैं। आने वाले वर्षों में जैसे-जैसे रिसर्च और इनोवेशन बढ़ेंगे, सोडियम-आयन बैटरियों की ऊर्जा घनता और लाइफ में और सुधार की उम्मीद है।
सोडियम-आयन बैटरियां भारत के लिए एक सस्ता, सुरक्षित और टिकाऊ विकल्प बन सकती हैं, जो लिथियम-आयन बैटरियों की सीमाओं को चुनौती देती हैं। हालांकि, उच्च ऊर्जा घनता वाले क्षेत्रों में लिथियम-आयन बैटरियां अभी भी प्रमुख बनी रहेंगी, लेकिन बड़े पैमाने पर ऊर्जा भंडारण, सार्वजनिक परिवहन और किफायती ई-व्हीकल्स के लिए सोडियम-आयन तकनीक आने वाले समय में गेमचेंजर साबित हो सकती है।

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