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चीन की अर्थव्यवस्था संकट में: निर्यात में गिरावट, महंगाई दर शून्य से नीचे

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2025 के मध्य में चीन की अर्थव्यवस्था गंभीर चुनौतियों से जूझ रही है। देश में निर्यात वृद्धि की रफ्तार तेज़ी से धीमी हुई है और डिफ्लेशन (मूल्य गिरावट) की समस्या और गहरा गई है। वर्ष की शुरुआत में अमेरिकी प्रतिबंधों और नए टैरिफ लागू होने से पहले चीनी कंपनियों ने भारी मात्रा में निर्यात किया था, लेकिन मई 2025 के आंकड़ों में यह तेजी अचानक थम गई। अमेरिका को चीन का निर्यात साल-दर-साल 34.5% गिर गया, क्योंकि कई उत्पादों पर टैरिफ 145% तक पहुंच गए हैं। चीन ने यूरोप, आसियान और भारत जैसे नए बाजारों में निर्यात बढ़ाकर कुछ नुकसान की भरपाई करने की कोशिश की, लेकिन कुल निर्यात में अब पहली तिमाही जैसी तेजी नहीं रही।

देश के भीतर डिफ्लेशन की समस्या और गहराती जा रही है। घरेलू मांग कमजोर है, कोर इन्फ्लेशन (मूल महंगाई दर) भी बहुत कम है, और निर्यात न बिक पाने वाले सामान अब घरेलू बाजार में भी कीमतें गिरा रहे हैं। इससे कंपनियों के मुनाफे और निवेश पर दबाव बढ़ रहा है, खासकर जब रियल एस्टेट सेक्टर पहले से ही संकट में है और निजी क्षेत्र का भरोसा डगमगा रहा है।

इस संकट से निपटने के लिए चीन सरकार नए बाजारों में निर्यात बढ़ाने, हाई-टेक मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने और सप्लाई चेन को पश्चिमी देशों के टैरिफ से कम प्रभावित क्षेत्रों की ओर मोड़ने की कोशिश कर रही है। लेकिन निर्यात में गिरावट और डिफ्लेशन का यह दोहरा संकट न केवल चीन के 2025 के 5% विकास लक्ष्य को खतरे में डाल रहा है, बल्कि वैश्विक बाजारों के लिए भी चिंता का विषय है, जो चीन की मांग और आपूर्ति पर निर्भर हैं।

चीन की अर्थव्यवस्था फिलहाल निर्यात और घरेलू मांग दोनों ही मोर्चों पर दबाव में है। अगर यह स्थिति आगे भी बनी रही, तो इसका असर न सिर्फ चीन, बल्कि पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।

चीन में निर्यात गिरावट, डिफ्लेशन, संपत्ति बाजार संकट और निवेशकों के भरोसे में कमी के चलते वहां की आर्थिक वृद्धि धीमी हो रही है। इससे वैश्विक कंपनियां और निवेशक ‘चाइना प्लस वन’ रणनीति के तहत वैकल्पिक बाजारों की तलाश कर रहे हैं, जिसमें भारत सबसे बड़ा लाभार्थी बन सकता है। भारत की मजबूत श्रम शक्ति, बढ़ता उपभोक्ता बाजार और रणनीतिक स्थिति उसे वैश्विक विनिर्माण एवं निवेश के लिए आकर्षक बनाती है। कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां अब चीन से हटकर भारत में उत्पादन, सप्लाई चेन और निवेश बढ़ा रही हैं, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था को गति मिल रही है।

इसके अलावा, भारत सरकार की PLI (प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव) जैसी योजनाएं, सप्लाई चेन डाइवर्सिफिकेशन, और एफटीए (फ्री ट्रेड एग्रीमेंट) जैसे कदम भारत को चीन के विकल्प के रूप में स्थापित कर रहे हैं। इससे न केवल रोजगार और निर्यात बढ़ेंगे, बल्कि भारत की वैश्विक आर्थिक स्थिति भी मजबूत होगी।

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