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गीता में विश्व शांति और विश्व को एक मंच पर लाने की ताकत विद्यमान – सुरेश भय्या जी जोशी

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गीता में विश्व शांति और विश्व को एक मंच पर लाने की ताकत विद्यमान – सुरेश भय्या जी जोशी

bhaiya_g_joshiकुरुक्षेत्र
(विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश भय्या जी जोशी ने
कहा कि गीता में प्रारंभ का शब्द धर्म है और अंतिम शब्द मर्म है. हम सब एक
ही चैतन्य से निकले हैं, तो फिर संघर्ष क्यों ? गीता के
इसी तत्व के आधार में विश्व को एक मंच पर लाने की ताकत है, जो विश्व में
शांति का आधार बनेगा. श्रीमद्भगवत गीता के तत्व को समझने वालों की संख्या
पर्याप्त है, परंतु उसका अनुसरण करने वालों की संख्या बढ़ानी होगी. अतः
गीता को आत्मसात करना ही जीवन है. उन्होंने कहा कि महाभारत का युद्ध धर्म
और अधर्म इन दो शक्तियों के बीच का संघर्ष था. इसी युद्ध में श्रीकृष्ण ने
अर्जुन को अपना दायित्व बोध करवाने का काम किया है. जो हमारे समाज के लिए
सीधा संकेत है कि मन और बुद्धि से निराशा को निकालना है. अपने सार्थक जीवन
के लिए अपनी अपेक्षाएं सीमित करनी होंगी. सरकार्यवाह कुरूक्षेत्र
विश्वविद्यालय में गीता जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी
को संबोधित कर रहे थे.
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के आडिटोरियम हॉल में शुक्रवार संस्कृत, पालि
एवं प्राकृत विभाग तथा संस्कृत एवं प्राच्य विद्या संस्थान की ओर से
आयोजित एक दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में देश व दुनियाभर से आए
विद्वानों ने श्रीमद्भागवत गीता के सूत्रों की अंग्रेजी, संस्कृत, हिंदी, उर्दू व फारसी में व्याख्या की.
indresh_kumarराष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य इन्द्रेश कुमार जी ने
कहा कि सम्मान व समरसता का रास्ता श्रीमद्भागवत गीता से निकलता है. गीता
सभी प्रकार की चुनौतियों से निकलने का रास्ता दिखाती है. गीता ने दुनिया को
आलौकित किया है. यह निर्विवाद, सर्वमान्य व लोक कल्याणकारी महान ग्रंथ है.
बीकानेर से आए स्वामी संवित सोमगिरी जी महाराज ने कुरुक्षेत्र की लोक
संस्कृति को नमन करते हुए कहा कि श्रीमद्भागवत गीता की सार्वभौम
प्रासंगिकता के विषय में हम तभी कुछ समझ सकते हैं, अगर हम एक शिष्य व शिशु
का भाव जीवन में रखते हैं. कृष्ण को जानने के लिए व श्रीमद्भागवत गीता को
समझने के लिए शास्त्र के प्रति श्रद्धा होना जरूरी है. गीता वेदों का सार
है. गीता को समझने से पहले व्यक्ति के लिए यह जरूरी है कि उसकी भगवान के
प्रति धारणा क्या है. गीता में जीवन का व्यवहारिक दर्शन है. श्रीमद्भागवत
गीता ब्रह्म विद्या, योग विद्या व शास्त्र विद्या है.
जीवन को समझने के लिए श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन जरूरी है. जीवन में
कर्मयोग का संदेश सबसे महत्वपूर्ण है. कर्मयोग के लिए श्रीमद्भागवत गीता को
आचरण में लाना जरूरी है.
mohmd_hanif_khanराष्ट्रीय संस्कृत संस्थान दिल्ली के मोहम्मद हनीफ खान शास्त्री ने कहा कि गीता से मेरा 40
वर्ष पुराना सम्बंध है. दुनिया में सभी को गीता पढ़नी चाहिए. इस्लाम को
समझने के लिए भी गीता का अध्ययन जरूरी है. इस्लाम का अर्थ समर्पण व शान्ति
है और इसका पूरा सार श्रीमद्भागवत गीता में है. दुनिया से आतंकवाद व
उग्रवाद को खत्म करने के लिए श्रीमद्भागवत गीता को जीवन में अपनाने की
जरूरत है.
vivek_muniसंत आचार्य विवेकमुनि ने कहा कि गीता का ज्ञान 5151 वर्ष पूर्व जितना उपयोगी था, आज वह उससे ज्यादा प्रासंगिक व उपयोगी है. आज हर व्यक्ति का जीवन कुरुक्षेत्र बना हुआ है. जीवन में हताशा, निराशा
व उदासी है. गीता विशाद से मुक्ति का रास्ता है. गीता हमें सर्वश्रेष्ठता
की ओर ले जाती है. जीवन में कौशल को हासिल कर, आत्मजागृति पैदा कर ही हम
खुद व समाज का कल्याण कर सकते हैं.
भूपेन्द्र सिंह महाराज ने कहा कि आज गीता का महत्व व उपयोगिता पहले से
अधिक दिखाई पड़ रहा है. अब दुर्याधन व दुःशासनों की संख्या ज्यादा है. ऐसे
में श्रीमद्भागवत गीता को अपनाकर हम जीवन मूल्यों को ओर मजबूत बना सकते
हैं. आज दुनिया में परमाणु हथियारों की होड़ है जो मानव के लिए खतरा है. इन
सभी समस्याओं का हल श्रीमद्भागवत गीता में है.
संगोष्ठी में राष्ट्रीय कवि गजेन्द्र सिंह चौहान ने बना लो गीता जीवन
गीत व गंगा की कल-कल सीने में गाकर पूरे माहौल को गीतामय कर दिया. इस
संगोष्ठी के निदेशक प्रो. ललित कुमार गौड़, संयोजक डॉ. सुरेन्द्र मोहन
मिश्र ने बताया कि संगोष्ठी के तहत सायंकालीन सत्र में श्रीगीता विचार तत्व
सत्र व श्रीगीता पंडित परिषद का आयोजन किया गया, जिसमें देशभर से  गीता
मनीषियों ने भाग लिया.
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