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ईरान की जंग और ‘उम्मा’ का सच: मुस्लिम पड़ोसी देशों की सीमाएं बंद, समर्थन सिर्फ शब्दों तक

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ईरान पश्चिम एशिया का वह देश है जिसकी सीमाएं पाकिस्तान, तुर्की, अज़रबैजान, इराक और कुछ अन्य मुस्लिम देशों से लगती हैं। ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से इन सभी देशों के बीच गहरे संबंध रहे हैं। जब इजरायल-ईरान युद्ध ने पूरे क्षेत्र को हिला दिया, तब उम्मीद थी कि मुस्लिम ‘उम्मा’ यानी इस्लामी भाईचारा एकजुट होकर ईरान के साथ खड़ा होगा। लेकिन हकीकत इससे काफी अलग नजर आई।

पाकिस्तान ने सबसे पहले खुलकर ईरान का समर्थन किया। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने ईरानी राष्ट्रपति से बात कर इजरायल के हमले की निंदा की और मुस्लिम देशों से एकजुटता की अपील की। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने भी इस्लामिक सहयोग संगठन की आपात बैठक बुलाने की मांग की और कहा कि ईरान सिर्फ पड़ोसी ही नहीं, बल्कि भाई है। लेकिन जमीनी स्तर पर पाकिस्तान ने अचानक यू-टर्न लेते हुए ईरान से लगी सभी सीमाएं बंद कर दीं। पहले समर्थन का ऐलान करने वाले पाकिस्तान ने क्षेत्रीय राजनीति के दबाव में आकर ईरान से दूरी बना ली, जिससे ईरान की रणनीतिक स्थिति और कमजोर हो गई। यही नहीं, पाकिस्तान ने ईरान को परमाणु सहायता देने के अपने पुराने वादे से भी मुकर गया, जबकि संकट की घड़ी में ऐसे सहयोग की सबसे ज्यादा जरूरत थी।

तुर्की, अज़रबैजान और इराक जैसे अन्य पड़ोसी देशों ने भी कूटनीतिक स्तर पर तो ईरान के प्रति समर्थन जताया, लेकिन न तो सैन्य सहायता दी और न ही सीमाएं खोलीं। लेबनान से हिज़्बुल्लाह और यमन से हूती विद्रोही जरूर ईरान के पक्ष में सक्रिय रहे, लेकिन अधिकांश मुस्लिम देश केवल बयानबाज़ी तक सीमित रहे। सऊदी अरब, जॉर्डन, मिस्र और यूएई जैसे देशों ने या तो तटस्थता का रास्ता चुना या फिर पर्दे के पीछे इजरायल के साथ अपने हित साधते रहे।

ईरान को अपने सबसे करीबी पड़ोसियों से भी न तो कोई ठोस सैन्य समर्थन मिला, न ही मानवीय सहायता या सीमाओं पर राहत। इसके उलट, इजरायल ने ईरान के सैन्य और परमाणु ठिकानों पर हमले किए, जिसमें कई वरिष्ठ सैन्य अधिकारी मारे गए। जवाब में ईरान ने भी मिसाइलें दागीं, लेकिन क्षेत्रीय मुस्लिम देशों की एकता सिर्फ भाषणों और अपीलों तक ही सीमित रह गई।

इस पूरे घटनाक्रम ने ‘उम्मा’ यानी मुस्लिम एकता की अवधारणा पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। संकट की घड़ी में हर देश ने अपने-अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दी, धार्मिक भावनाओं या भाईचारे के बजाय। ईरान के लिए यह कड़वा सच है कि भू-राजनीति में आदर्शों से ज्यादा महत्व व्यावहारिकता और स्वार्थ का होता है।

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