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आगरा में जनसंख्या असंतुलन पर पूछा गया प्रश्न व सरसंघचालक जी द्वारा प्रदत्त उत्तर

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आगरा में जनसंख्या असंतुलन पर पूछा गया प्रश्न व सरसंघचालक जी द्वारा प्रदत्त उत्तर


आगरा में ब्रज प्रांत की ओर से 20 अगस्त को
महाविद्यालयी शिक्षक सम्मेलन का आयोजन किया था, जिसमें प्रांत भर से एक
हजार से अधिक शिक्षक उपस्थित थे. इस दौरान मुक्त चिंतन सत्र में शिक्षकों
ने अपने प्रश्न, सुझाव व शंकाएं पू. सरसंघचालक जी समक्ष रखे.

 इसी सत्र में
डॉ. अग्रवाल जी ने जनसंख्या दर पर सवाल पूछा…..उनका सवाल कुछ इस प्रकार
था……

हमारे देश में हिन्दुओं की जन्म दर 2.1 प्रतिशत है, जबकि मुस्लिम समाज
की जन्म दर 5.3 प्रतिशत है, अभी यहां मंच से कहा गया कि हमारा देश हिन्दू
राष्ट्र है. तो अगर इसी तरह से हिन्दुओं की दर पीछे रही, मुसलमानों की दर
ढाई गुनी आगे बढ़ती रही तो अगले पचास साल के बाद कैसे हम हिन्दू राष्ट्र के
रूप में इस देश में रह सकेंगे, क्या यह देश एक इस्लामिक कंट्री नहीं बन
जाएगा…यह मेरा प्रश्न है

सरसंघचालक जी का उत्तर…………….

हिन्दू जनसंख्या अगर घट रही है तो कोई कानून है क्या जिसमें कहा गया है,
हिन्दुओ जनसंख्या घटाओ. ऐसा है क्या, ऐसा कुछ नहीं है. बाकी लोगों की बढ़
रही है तो आपकी क्यों नहीं बढ़ती. ये कोई व्यवस्था का प्रश्न थोड़े ही है,
ये समाज का वातावरण है. समाज में अपने हित का ध्यान रखना, अपने परिवार का
ध्यान रखना, अपने राष्ट्र के हित का ध्यान रखना. तीनों पर साथ चलने की
प्रवृत्ति चाहिए. आज हम परिवार-परिवार पकड़ कर बहुत चल रहे हैं, उसकी अच्छा
बात यह है कि हमारी कुटुंब पद्धति का अनुकरण अब विदेशों में भी होने लगा
है. वो अच्छा है, वो परंपरागत हमारा वैशिष्ट्य है. लेकिन हमारे कुटुंब ऐसे
रहे हैं, जिसमें पितृ वचन के पालन की खातिर 14 साल वनवास में जाने की
अनुमति मिलती है. जिसमें  घर का ब्याह छोड़कर स्वराज्य की लड़ाई लड़ने के
लिए, किला जीतने के लिए भेजा जाता है. 
हमारे परिवार की कल्पना ऐसे परिवारों
की है. हमको ऐसा व्यक्ति बनना चाहिए, हमको ऐसा परिवार बनना चाहिए, हमको
ऐसा समाज बनना चाहिए. हमको ऐसा व्यक्ति बनना चाहिए, जो परिवार और समाज
दोनों का विचार करे. हमारे परिवार में वातावरण ऐसा होना चाहिए कि परिवार के
प्रत्येक व्यक्ति को आत्मीयता मिले और पूरे समाज का लाभ हो. असंतुलित जीवन
हो गया है, संतुलन वापिस आना चाहिए और अगर एक को ही पकड़ने की बारी आती है
तो देश की खातिर चार-चार पुत्रों को वार दिया, ये इतिहास हमीं ने रचा है.
गुरू गोविंद सिंह जी ने रचा है, वो हमारे आदर्श हैं. पहले देश बाद में मेरा
परिवार, वो तो हम करते हैं. भाई बहुत बीमार है, सेवा करने वाला मैं अकेला
हूं, मेरी परीक्षा है, मैं परीक्षा छोड़ देता हूं. भाई पढ़े, इसलिए मैं
अपनी पढ़ाई छोटी रखता हूं, ये मैं करता हूं. ऐसे ही परिवार का हित पहले कि
समाज का हित पहले, समाज का हित पहले. ऐसा हमको चलना पड़ेगा तब ये सारी
बातें अपने आप ठीक होंगी.
साभार:: vskbharat.com
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