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आपातकाल 1975: इंदिरा गांधी का भारत के लोकतांत्रिक ढांचे पर हमला

25 जून 1975 का दिन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस दिन देश में आपातकाल (Emergency) लागू करने का फैसला लिया, जो न केवल संवैधानिक मूल्यों की अवहेलना था, बल्कि भारत के लोकतांत्रिक ढांचे और संविधान की आत्मा की हत्या करने जैसा था।

आपातकाल का पृष्ठभूमि और इंदिरा गांधी का निर्णय

1971 में इंदिरा गांधी की कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा चुनाव में भारी जीत हासिल की थी, लेकिन 1975 तक उनकी लोकप्रियता में कमी आ रही थी। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 12 जून 1975 को इंदिरा गांधी के रायबरेली से लोकसभा चुनाव को अवैध घोषित कर दिया, क्योंकि उन्होंने चुनावी कदाचार का सहारा लिया था। इस फैसले ने उनकी सत्ता को खतरे में डाल दिया। इसके बजाय कि वे लोकतांत्रिक तरीके से इस चुनौती का सामना करतीं, इंदिरा गांधी ने संविधान के अनुच्छेद 352 का दुरुपयोग करते हुए राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी। यह दावा किया गया कि देश की आंतरिक सुरक्षा खतरे में है, लेकिन वास्तव में यह उनकी सत्ता को बचाने का एक असंवैधानिक कदम था।

संविधान की हत्या कैसे हुई?

  1. लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन: आपातकाल के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया। अनुच्छेद 19 के तहत मिलने वाली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, प्रेस की आजादी और संगठन बनाने का अधिकार छीन लिया गया। यह संविधान की आत्मा, जो लोकतंत्र और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर आधारित है, के खिलाफ था।
  2. प्रेस पर सेंसरशिप: इंदिरा गांधी ने प्रेस को पूरी तरह नियंत्रित कर लिया। समाचार पत्रों को सरकार की मंजूरी के बिना कुछ भी प्रकाशित करने की अनुमति नहीं थी। यह संविधान के उस सिद्धांत के खिलाफ था, जो प्रेस को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मानता है।
  3. न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमला: आपातकाल के दौरान हाई कोर्ट के कई फैसलों को उलटने के लिए संविधान में संशोधन किए गए। 42वां संविधान संशोधन, जिसे “मिनी संविधान” भी कहा जाता है, सरकार को असीमित शक्तियां देता था और न्यायपालिका की शक्तियों को कम करता था। यह संविधान के मूल ढांचे, जिसमें शक्ति संतुलन (Checks and Balances) शामिल है, पर सीधा प्रहार था।
  4. विपक्ष का दमन: आपातकाल में विपक्षी नेताओं जैसे जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और अन्य को बिना किसी ठोस कारण के जेल में डाल दिया गया। यह संविधान के उस सिद्धांत के खिलाफ था, जो सभी को समानता और निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार देता है।
  5. MIISA का दुरुपयोग: मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट (MIISA) का इस्तेमाल हजारों लोगों को बिना मुकदमा चलाए हिरासत में रखने के लिए किया गया। यह अनुच्छेद 21, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करता है, का खुला उल्लंघन था।

25 जून 1975 को लागू आपातकाल भारतीय संविधान की हत्या का प्रतीक था। यह न केवल इंदिरा गांधी की सत्ता लोलुपता को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे एक व्यक्ति की महत्वाकांक्षा संवैधानिक आदर्शों को रौंद सकती है।

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