Vishwa Samvad Kendra Jodhpur

TRANDING
TRANDING
TRANDING

‘हिंदुत्व’ के प्रगटीकरण का महान आदर्श – ‘महात्मा गांधी’’

Facebook
Twitter
LinkedIn
Telegram
WhatsApp
Email
‘हिंदुत्व’ के प्रगटीकरण का महान आदर्श – ‘महात्मा गांधी’’

सत्य
ही ईश्वर है। सत्य सर्वदा स्वावलंबी होता है और बल तो उसके स्वभाव में ही
होता है। समाज को न्याय के पथ पर चलने की प्रेरणा देनेवाले मोहनदास करमचंद
गांधी के महानता के पीछे कौनसा दर्शनशास्त्र काम कर रहा था, यह चिंतन का
विषय है।
– लखेश्वर चंद्रवंशी ‘लखेश’
यूं तो महात्मा गांधी समूचे दुनिया में विख्यात हैं विख्यात इसलिए नहीं कि उनके पास बहुत बड़ी सम्पत्ति थी अथवा शारीरिक दृष्टि से वे बलशाली थे या फिर उनके पीछे कोई बड़ा राजनयिक पद। पर आज
की दुनिया के बड़े पदों पर बैठे राजनेताओं से लेकर सामान्य जनता के बीच वे आदरणीय है इसलिए कि, वे संसार के सभी मनुष्यों, प्राणियों और प्रकृति से बहुत प्रेम करते थे
। उनकी विचारधारा मानवता का संवाहक है। वे सत्य, शांति, अहिंसा, स्वदेशी के आग्रही हैं जो अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने को प्रेरित करते हैं। वे कहते थे कि सत्य ही ईश्वर है। सत्य सर्वदा स्वावलंबी होता है और बल तो उसके स्वभाव में ही होता है। समाज को न्याय के पथ पर चलने की प्रेरणा देनेवाले मोहनदास करमचंद गांधी के महानता के पीछे कौनसा दर्शनशास्त्र काम कर रहा था, यह चिंतन का विषय है।
2 अक्तूबर, 1869 में गुजरात के तटीय शहर पोरबंदर में जन्में महात्मा गांधी
स्वयं को सनातनी हिन्दू मानते थे, और इसपर गौरव का अनुभव करते थे। हिन्दू, हिंदुत्व, सत्य और गीता पर आधारित उनके वचन बेहद महत्वपूर्ण हैं। प्रस्तुत है महात्मा गांधी के हिंदुत्व सम्बंधी विचार…
 
1. मैं अपने को को सनातनी हिन्दू कहता हूं क्योंकि :
 मैं
वेदों, उपनिषदों, पुराणों और हिन्दू धर्मग्रंथों के नाम से प्रचलित सारे
साहित्य में विश्वास रखता हूं और इसलिए अवतारों और पुनर्जन्म में भी।
 मैं
वर्णाश्रम धर्म के उस रूप में विश्वास रखता हूं जो मेरे विचार से विशुद्ध
vaidik है लेकिन उसके आजकल के लोक-प्रचलित और स्थूल रूप में मेरा विश्वास
नहीं।
  मैं गो-रक्षा में उसके लोक-प्रचलित रूप से कहीं अधिक व्यापक रूप में विश्वास करता हूं।
  मैं मूर्तिपूजा में अविश्वास नहीं करता।                                                         – महात्मा गांधी (यंग इंडिया, 6-10-1921) 
   2. साम्प्रदायिकता का मुझ में लेश मात्र भी नहीं है, क्योंकि मेरा हिन्दू धर्म है।
 – महात्मा गांधी (अस्पृश्यता पर वक्तव्य, 26-11-1932)
3. अपने आपको हिन्दू कहने में मुझे गर्व का अनुभव इसलिए होता है कि यह शब्द मुझे
इतना व्यापक लगता है कि यह न केवल पृथ्वी के चारों कोनों के पैगम्बरों की
शिक्षाओं के प्रति सहिष्णु है, बल्कि उन्हें आत्मसात भी करता है।
                            – महात्मा गांधी (अस्पृश्यता पर वक्तव्य, 04-11-1932)
4.
शास्त्रों के ईश्वर-प्रेरित होने के दावे को आम तौर पर अक्षुण्ण रखकर भी, उनमें नए सुधार और परिवर्तन करने में उसने कभी हिचक महसूस नहीं की। इसलिए हिन्दू धर्म में सिर्फ वेदों को ही नहीं, बाद के शास्त्रों को भी प्रमाण माना जाता है।
 
                             – महात्मा गांधी (अस्पृश्यता पर वक्तव्य, 30-12-1932)
5.
आज दुनिया में सब धर्मों की कड़ी परीक्षा हो रही है। इस परीक्षा में हमारे
हिन्दू-धर्म को सौ फ़ीसदी नम्बर मिलने चाहिए, 99 फ़ीसदी भी नहीं।
 
                            – महात्मा गांधी (दिल्ली की प्रार्थना सभा, 17-07-1947)
6. यही तो हिन्दू धर्म की खूबी है कि वह बाहर से आनेवालों को अपना लेता है 
                           – महात्मा गांधी (प्रार्थना प्रवचन, भाग 1, 21)
7. हिन्दू धर्म एक महासागर है। जैसे सागर में सब नदियां मिल जाती हैं, वैसे हिन्दू धर्म में सब समा जाते हैं।  
                            – महात्मा गांधी (प्रार्थना प्रवचन, भाग 2, 168)
8. हिन्दू धर्म की खसूसियत यह है कि उसमें काफी विचार –स्वातंत्र्य है। और उसमें हरेक धर्म के प्रति उदारभाव होने के कारण उसमें जो कुछ अच्छी बातें रहती हैं, उनको हिन्दू धर्म मान सकता है। इतना ही नहीं मानने का उसका कर्तव्य है। ऐसा होने के कारण हिन्दू धर्मग्रन्थ के अर्थ का दिन-प्रतिदिन विकास होता है।   
                            – महात्मा गांधी (हबीबुर्रमान को पत्र, 5-11-1932)
9. सत्य सर्वदा स्वावलंबी होता है और बल तो उसके स्वभाव में ही होता है।
                         – महात्मा गांधी (हिन्दी नवजीवन, 14-2-1924)
10. मेरे लिए सत्य धर्म और हिन्दू धर्म पर्यायवाची शब्द हैं। हिन्दू धर्म में अगर असत्य का कुछ अंश है तो मैं उसे धर्म नहीं मान सकता। अगर इसके लिए सारी हिन्दू जाति मेरा त्याग कर दे और मुझे अकेला ही रहना पड़े तो भी मैं कहूंगा, मैं अकेला नहीं हूं, तुम अकेले हो, क्योंकि मेरे साथ सत्य है और तुम्हारे साथ नहीं है।सत्य तो प्रत्यक्ष परमात्मा है
– महात्मा गांधी (गांधी सेवा संघ सम्मलेन, हुबली, 20-4-1936)
11. गीता के मुख्य विषय से जिसकी संगति नहीं बैठती, वह मेरे लिए शास्त्र नहीं है, चाहे वह कहीं भी छपा क्यों न मिलता हो।
– महात्मा गांधी (अस्पृश्यता पर वक्तव्य, 17-11-1932)
12.
यदि अन्य सभी धर्म ग्रन्थ जलकर भस्म हो जाएं तो भी इस (गीता) अमर गुटके के सात सौ श्लोक यह बताने के लिए काफी है कि हिन्दू धर्म क्या है और उसे जीवन में कैसे उतारा जा सकता है।
– महात्मा गांधी (अस्पृश्यता पर वक्तव्य, 04-11-1932)
13.
वन्दनीय (गीता) माता द्वारा उपदिष्ट सनातन धर्म के अनुसार जीवन का लक्ष्य
बाह्य आचार और कर्मकांड नहीं, बल्कि मन की अधिक से अधिक शुद्धि और तन, मन और आत्मा से अपने को दिव्य तत्व में विलीन कर देना है। गीता के इसी सन्देश को अपने जीवन में उतार कर मैं लाखों-करोड़ों लोगों के पास गया हूं।  
– महात्मा गांधी (अस्पृश्यता पर वक्तव्य, 04-11-1932)
महात्मा गांधी के जीवन का सन्देश हिन्दू धर्मग्रंथों के चिन्तन प्रवाह से प्रगट
हुआ है। वे श्रीमदभगवदगीता को माता कहते थे। हिन्दू दर्शनशास्त्रों का प्रतिबिम्ब उनके जीवन और सन्देश में देखा जा सकता है। महात्मा गांधी द्वारा लिखित पत्रों एवं उनके वक्तव्यों, भाषणों व लेखों के अनेक ग्रन्थ देश के  अनगिनत ग्रंथालयों में उपलब्ध हैं। बापू के इस 145वीं जयन्ती के अवसर पर
उनके विचारों को अधिक गहनता से समझने की आवश्यकता है। 
 

Facebook
Twitter
LinkedIn
Telegram
WhatsApp
Email
Tags
Archives
Scroll to Top