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“राजा दाहिर सेन: जब सिंध की धरती ने अपने अंतिम हिन्दू रक्षक को खोया”



जब भी भारतीय इतिहास की गौरवशाली गाथाओं की बात होती है, तो अनेक वीरों का नाम सामने आता है। ऐसे ही वीरों में एक नाम राजा दाहिर सेन का भी है – जो सिंध के अंतिम हिंदू राजा थे और जिन्होंने अरब आक्रमण के विरुद्ध डटकर प्रतिकार किया।

🔹 जन्म और पृष्ठभूमि

राजा दाहिर सेन का जन्म लगभग 663 ईस्वी में सिंध (वर्तमान पाकिस्तान) के रई परिवार में हुआ था। वे राय दाहिर या दाहिर सेन के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनके पिता का नाम चच था, जिन्होंने सिंध पर चचनामक वंश की नींव रखी थी। राजा दाहिर ने अपने पिता के निधन के बाद गद्दी संभाली और सिंध की सुरक्षा, संस्कृति और वैदिक परंपराओं के संरक्षण हेतु स्वयं को समर्पित किया।

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🔹 सिंध पर अरब आक्रमण और वीरता का परिचय

8वीं शताब्दी में जब मोहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में अरब सेनाओं ने भारत पर आक्रमण किया, तब राजा दाहिर ही वह वीर थे जिन्होंने सबसे पहले विदेशी आक्रांताओं का डटकर सामना किया। भले ही उनके पास सीमित सेना और संसाधन थे, परंतु आत्मसम्मान, मातृभूमि के प्रति प्रेम और प्रजाजनों की रक्षा हेतु उन्होंने अंतिम सांस तक युद्ध किया।

🔹 धर्म और संस्कृति का रक्षक

राजा दाहिर न केवल एक शूरवीर योद्धा थे, बल्कि वे विद्वानों के संरक्षक और सनातन संस्कृति के पोषक भी थे। उनके शासन में शैव, बौद्ध और वैदिक धर्म को समुचित स्थान मिला। उन्होंने सिंध में शिक्षा और न्याय व्यवस्था को मज़बूत किया।

🔹 बलिदान और प्रेरणा

712 ईस्वी में रावड़ (रावर) के युद्ध में वीरगति को प्राप्त करने वाले राजा दाहिर का बलिदान भारतीय इतिहास में मातृभूमि की रक्षा हेतु दिया गया एक अद्वितीय उदाहरण है। उनकी पुत्रियाँ – सूर्या और पारिमाल – भी इतिहास में वीरांगनाओं के रूप में जानी जाती हैं जिन्होंने आत्मबलिदान से स्वाभिमान की रक्षा की।




🌺 नमन है उस वीर को…

राजा दाहिर सेन की जन्मतिथि पर हम सभी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। उनका जीवन आज भी हमें यह सिखाता है कि परिस्थितियाँ चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हों, मातृभूमि और संस्कृति की रक्षा के लिए अंतिम दम तक संघर्ष करना ही सच्चा धर्म है।

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