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   काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने किया पथसंचलन

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   काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने किया पथसंचलन
वाराणसी, 24 जनवरी। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने घोष की थाप पर पथसंचलन किया।  स्वयंसेवक जोश से भरे हुए जिस मार्ग से गुजरे वहीं लोग स्वागत के लिए अनायास ही आगे बढ़ गये। विश्वविद्यालय के विभिन्न छात्रावासों से स्वयंसेवकों के ब्रोचा छात्रावास के सामने मैदान में पहुंचने का सिलसिला 2.30 बजे से ही प्रारम्भ हो गया था। प्रातःकाल तक खाली पड़ा यह मैदान दो बजते-बजते सफेद शर्ट, खाकी नेकर और काली टोपी पहने स्वयंसेवकों द्वारा कौतूहल का केन्द्र बन गया। इस पथ संचलन में विद्यार्थी स्वयंसेवक शामिल हुए। इसके पश्चात् विश्वविद्यालय स्थापना स्थल पर वन्देमातरम्गीत से कार्यक्रम का समापन हुआ।
बसन्त पंचमी के शुभ अवसर पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के ब्रोचा छात्रावास के मैदान में पथसंचलन से पूर्व स्वयंसेवकों को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रान्त प्रचारक श्री अभय कुमार ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना अंग्रेजों के शासन काल में हुई। दोनों के संस्थापक समान विचारधारा के थे। महामना देशभक्त, स्वतंत्रता सेनानी, सुप्रसिद्ध शिक्षक, पत्रकार तथा कुशल अधिवक्ता थे। इसी प्रकार डॉ. हेडगेवार भी जन्मजात देशभक्त तथा स्वतंत्रता सेनानी थे। संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने बचपन में ही अंग्रेज अधिकारी के खिलाफ वन्देमातरम् का नारा बुलन्द किया।
उन्होंने कहा कि डॉ. हेडगेवार ने लोकमान्य तिलक के सम्पर्क में आकर कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की। बाद में क्रांतिकारियों के संगठन अनुशीलन समिति में सम्मिलित हुए। उन्होंने कहा कि महर्षि अरविन्द अखण्ड भारत का मानचित्र बनाकर उसकी पूजा किया करते थे। उन्होंने अपने मृत्यु के पहले ही यह घोषणा कर दिया था कि देश अब स्वतंत्र हो जायेगा। डॉ. हेडगेवार ने विचार किया कि देश तो स्वतंत्र हो जायेगा, लेकिन पुनः परतंत्र न होने पाये। इसलिए इस देश के लोगों को संगठित करना चाहिए। इसीलिए उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 में की और घोषणा की कि ‘भारत हिन्दू राष्ट्र है।’ मालवीय जी संघ कार्य के प्रशंसक थे। एक बार मालवीय जी ने संघ के लिए धन देने की इच्छा प्रकट की लेकिन डॉ. हेडगेवार ने विनम्रता पूर्वक कहा- ‘‘मुझे धन नहीं चाहिए, मुझे तो मालवीय जी चाहिए।’’ मालवीय जी ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना नौकर पैदा करने के लिए नहीं की थी। उन्होंने हिन्दू धर्म तथा हिन्दू संस्कृति की रक्षा करने वाले देशभक्त पैदा करने के लिए यह विश्वविद्यालय बनवाया था। दोनो महापुरूषों में अद्भुत वैचारिक मेल था। आज के इस पावन अवसर पर महामना के विचारों को जीवन में उतारने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले क्रांतिकारियों का सही इतिहास नहीं लिखा गया। यह अत्यन्त दुःखद है। इन क्रांतिकारियों की एक विशाल श्रृंखला है। किन्तु हमारे बच्चे बड़े मुश्किल से 25 क्रांतिकारियों का नाम बता पायेंगे।
 इससे पूर्व महामना के चित्र पर पुष्पार्चन एवं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का कुलगीत तथा एकलगीत हुआ। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से डॉ. जयप्रकाश लाल, प्रो. धर्म सिंह, प्रो. राधेश्याम दूबे, डॉ. सुनील कुमार मिश्र, डॉ. पवित्र मैती, डॉ. हेमन्त मालवीय, डॉ. विवेक पाठक, डॉ. अनिल कुमार सिंह, डॉ. चन्दन लाल गुप्ता, डॉ. मनोराम मिश्र, डॉ. मोहन प्रसाद पाठक, अरविन्द कुमार तिवारी, आदित्य नारायण सिंह, हरिशंकर पाण्डेय, रमेशचन्द्र, प्रणव, ऋतुराज, रूपेश आदि सैकड़ों स्वयंसेवक उपस्थित थे

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