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ईरान-इज़राइल तनाव के बीच भारतीय छात्रों का सफल रेस्क्यू: आर्मेनिया के साथ रणनीतिक साझेदारी का लाभ

ईरान और इज़राइल के बीच बढ़ते संघर्ष के दौरान तेहरान स्थित भारतीय दूतावास ने मंगलवार को कम-से-कम 110 फंसे भारतीय छात्रों को सुरक्षित बाहर निकालने में सफलता पाई। इन छात्रों को ईरान-अर्मेनिया की नुर्दुज़-अगराक सीमा पार करवा कर अर्मेनिया पहुंचाया गया, जहां से विशेष विमान के जरिए सभी को गुरुवार तड़के नई दिल्ली लाया जाएगा।

निकासी की सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि ईरान का हवाई क्षेत्र अनिश्चितकाल के लिए बंद है, जिससे हवाई मार्ग से सीधी निकासी असंभव हो गई थी। ऐसे में ज़मीन के रास्ते ही एकमात्र विकल्प बचा। लेकिन ईरान के पड़ोसी देशों के साथ भारत के संबंध इतने सहज नहीं हैं कि हर सीमा से निकासी संभव हो सके। पाकिस्तान के साथ हालिया सैन्य तनाव और सीमा पर बंदी, तुर्की और अज़रबैजान द्वारा पाकिस्तान का खुला समर्थन, अफगानिस्तान में तालिबान शासन के साथ भारत के औपचारिक संबंधों की कमी—इन सब कारणों से विकल्प सीमित रह गए।

ईरान-तुर्कमेनिस्तान सीमा विरल आबादी के कारण और ईरान-इराक सीमा युद्ध क्षेत्र में होने के कारण सुरक्षित नहीं थी। ऐसे में ईरान-अर्मेनिया सीमा, खासकर तेहरान से 730 किमी दूर नुर्दुज़-अगराक क्रॉसिंग, सबसे व्यवहारिक और सुरक्षित विकल्प साबित हुई।

इस संकट में भारत-आर्मेनिया के वर्षों पुराने रणनीतिक संबंध काम आए। तुर्की और पाकिस्तान के अज़रबैजान के साथ होने के चलते भारत ने आर्मेनिया का लगातार समर्थन किया है। 2022 में हुए 250 मिलियन डॉलर के रक्षा समझौते के तहत भारत आर्मेनिया का सबसे बड़ा सैन्य आपूर्तिकर्ता बन गया है। आर्मेनिया ने कश्मीर मुद्दे पर भारत के रुख का समर्थन किया है और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की भी वकालत की है।

दक्षिण काकेशस में स्थित आर्मेनिया इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) का अहम हिस्सा है, जो भारत को ईरान और आर्मेनिया के रास्ते यूरोप से जोड़ता है। इस रूट के विकास से भारत को क्षेत्रीय और वैश्विक व्यापार में नई रणनीतिक गहराई मिलेगी।

यह ऑपरेशन दर्शाता है कि भारत की विदेश नीति बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों के अनुरूप नए साझेदारों के साथ मजबूत हो रही है। संकट के समय आर्मेनिया जैसे दोस्त देश भारत के लिए न केवल रणनीतिक, बल्कि मानवीय दृष्टि से भी बेहद अहम साबित हो रहे हैं।

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