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समाज का सुख संघर्ष में नहीं है अपितु सामंजस्य में है – डॉ. कृष्ण गोपाल

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समाज का सुख संघर्ष में नहीं
है अपितु सामंजस्य में है –
डॉ. कृष्ण गोपाल
सामाजिक समरसता
और हिन्दुत्व
एवं दत्तोपंत ठेंगड़ी
जीवन दर्शन व एकात्म मानववाद
खंड 7 व 8नाम से तीन
पुस्तकों का लोकापर्ण करते हुए
डॉ. कृष्ण गोपाल जी एवं पांचजन्य के
संपादक हितेश शंकर

  

8 जनवरी, नई
दिल्ली, (इंविसंके).
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल
ने आज
सामाजिक समरसता
और हिन्दुत्व
एवं दत्तोपंत ठेंगड़ी
जीवन दर्शन व एकात्म मानववाद
खंड 7 व 8नाम से तीन
पुस्तकों का लोकापर्ण किया। नई दिल्ली में चल रहे विश्व पुस्तक मेले में सुरुचि
प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इन पुस्तकों के विमोचन के अवसर पर नेशनल बुक ट्रस्ट के
सहयोग से एक परिचर्चा भी आयोजित की गई. जिसमें डॉ. कृष्ण गोपाल ने संघ के तृतीय
सरसंघचालक श्री बालासाहब देवरस के सामाजिक समरसता के संदर्भ में दिए गये विचारों
को सबके समक्ष रखा। 
उन्होंने कहा कि भारत ऋषि
परम्परा का देश है
.  वेद लिखने वाले ऋषियों में सभी जातियों के
विद्वान थे
, जिनमें महिलाएं व
शूद्र वर्ण के भी अनेक ऋषि थे, जिसमें सूर्या, सावित्री, घोषा, अंबाला वहीँ
पुरुषों में ऋषि महिदास इत्यादि थे जो शूद्र थे. ऋषि परंपरा एक स्थान था, ऋषि पद
प्राप्त करने के लिए जन्म का कोई बंधन नहीं था
, जाति भी कर्म आधारित होती थीं। कालांतर में वो व्यवस्था
छीन-भिन्न हो गयी. मध्यकाल में भारत पर अनेक बाहरी आक्रमण हुए, जिनमें हारने के
कारण से हिन्दुओं में अनेक कुरीतियां भी घर कर गईं
.  पिछले 1314 सौ वर्षों में
हिन्दू समाज में अपने ही बंधुओं के बीच अस्पृश्यता
, ऊंच-नीच भावना की कुरीतियां घर कर गईं. शायद,  उस समय की स्थिति में इसकी आवश्यकता रही होगी।
लेकिन, स्वतन्त्र भारत के अन्दर समाज में इस जाति भेद की कोई आवश्यकता नहीं है
, जो समाज को अपने
ही बंधुओं से अलग करती हो। परन्तु देश में आज भी जाति का भेद बहुत गहरा है. जाति
बदल नहीं सकती क्यों की यह एक परम्परा चल पड़ी है जो चल रही है. इस उंच-नीच,
भेद-भाव को सामाजिक समरसता से है ही समाप्त किया जा सकता है.
 
डॉ. कृष्ण गोपाल ने
भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी के बारे में बताया कि उन्होंने
श्रमिकों और उद्यमियों के बीच सामंजस्य कायम करने के लिए पहल की तथा श्रमिकों को
वामपंथियों के टकराव व संघर्ष वाले रास्ते से हटाकर सामंजस्य और उन्नति के पथ पर
अग्रसर किया। उनका मूल सिद्धांत संघर्ष नहीं सामंजस्य स्थापित हो. उन्होंने बताया
की आज मार्क्सवाद पूरे विश्व से समाप्त हो चुका है. समाज का सुख संघर्ष में नहीं
है अपितु सामंजस्य में है. प्रेम से ही सुख मिलेगा. यह देश बुद्ध, महावीर,
विवेकानंद, गाँधी, विनोबा भावे का है. यह देश करुणा का है. सामंजस्य, समन्यवय,
शान्ति का और धर्म का है.
इस अवसर पर पांचजन्य के
संपादक हितेश शंकर, दीनदयाल शोध संस्थान के सचिव अतुल जैन, सुरुचि प्रकाशन के गौतम
जी, भारतीय मजदूर संघ के उपाध्यक्ष श्री बी सुरेन्द्रन मंचासीन थे, कार्यक्रम का
संचालन अनिल दुबे द्वारा किया गया.
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