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मरुस्थल का नीला नगर : जोधपुर

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राजस्थान के थार मरुस्थल की गोद में स्थित जोधपुर, केवल एक शहर नहीं बल्कि वीरता, संस्कृति, और स्थापत्य कला की मिसाल है। इसकी स्थापना 15वीं शताब्दी में हुई थी, जिसने मारवाड़ क्षेत्र की राजनीतिक और सांस्कृतिक धारा को नया आयाम दिया।

मेहरानगढ़ किला और उसकी तलहटी में बसा जोधपुर शहर

जोधपुर की स्थापना 12 मई 1459 ई. में राव जोधा द्वारा की गई थी, जो राठौड़ वंश के एक प्रख्यात व शक्तिशाली शासक थे।मारवाड़ की तात्कालिक राजधानी मंडोर पर लगातार आक्रमणों के चलते राव जोधा को एक सुरक्षित और मजबूत किले की आवश्यकता महसूस हुई इसलिए उन्होंने मंडोर से लगभग 9 किलोमीटर की दूरी पर मेहरानगढ़ किला की नींव रख जोधपुर शहर बसाया।जोधपुर की स्थापना से संबंधित एक किंवदंती बहुत प्रचलित है। ऐसा कहा जाता है कि जब राव जोधा ने सन् 1459 में मंडोर से राजधानी हटाकर एक नए दुर्ग (मेहरानगढ़) की नींव रखने का निश्चय किया, तब उन्होंने एक पहाड़ी चुनी — जिसे ‘भोर चिड़िया टुंक’ कहा जाता था। लेकिन इस स्थान पर दुर्ग बनाना आसान नहीं था। यहां एक सिद्ध तपस्वी योगी “चिड़िया नाथ” रहा करते थे, जो नाथ संप्रदाय से संबंधित थे। जब राव जोधा ने अपने सैनिकों के साथ किले की नींव डालने का काम शुरू किया, तो उन्हें चिड़िया नाथ की उपस्थिति के बारे में पता चला। वे उस स्थान को अपना तप स्थल मानते थे और वहां से हटने को तैयार नहीं थे।

जोधपुर की स्थापना से संबंधित एक किंवदंती बहुत प्रचलित है। ऐसा कहा जाता है कि जब राव जोधा ने सन् 1459 में मंडोर से राजधानी हटाकर एक नए दुर्ग (मेहरानगढ़) की नींव रखने का निश्चय किया, तब उन्होंने एक पहाड़ी चुनी — जिसे ‘भोर चिड़िया टुंक’ कहा जाता था। लेकिन इस स्थान पर दुर्ग बनाना आसान नहीं था। यहां एक सिद्ध तपस्वी योगी “चिड़िया नाथ” रहा करते थे, जो नाथ संप्रदाय से संबंधित थे। जब राव जोधा ने अपने सैनिकों के साथ किले की नींव डालने का काम शुरू किया, तो उन्हें चिड़िया नाथ की उपस्थिति के बारे में पता चला। वे उस स्थान को अपना तप स्थल मानते थे और वहां से हटने को तैयार नहीं थे।

जोधपुर के संस्थापक राव जोधा (1416 – 1489)


राव जोधा ने कई प्रयासों से चिड़िया नाथ को समझाया, लेकिन जब जबरन उन्हें वहां से हटाया गया, तो चिड़िया नाथ नाराज़ हो गए और उन्होंने शाप दिया: “इस दुर्ग में हमेशा पानी की कमी रहेगी और इसका वैभव सदा खतरे में रहेगा।”

राव जोधा इस शाप से डर गए और उन्होंने तपस्वी को मनाने के लिए क्षमा याचना की। चिड़िया नाथ तो चले गए, लेकिन उनके शाप का असर माना जाता है कि आज भी जोधपुर में पानी की भारी किल्लत के रूप में दिखता है। इस अपशकुन को दूर करने के लिए राव जोधा ने एक व्यक्ति “राजा राम मेघवाल” को जीवित समाधि देने का निश्चय किया। राजा राम ने सहमति दी, इस शर्त पर कि उसके परिवार को हमेशा राजा की ओर से देखभाल की जाएगी। उस स्थान पर एक मंदिर या स्मारक बनाया जाएगा। आज भी मेहरानगढ़ किले में राजा राम मेघवाल की समाधि मौजूद है, जिसे सम्मानपूर्वक पूजा जाता है।जोधपुर की स्थापना का उद्देश्य राठौड़ वंश का एक शक्ति केंद्र स्थापित करना, आक्रमणों से बचाव के लिए एक दुर्गनुमा राजधानी बनाना और दिल्ली से गुजरात जाने वाले व्यापारिक मार्ग पर नियंत्रण रखना था। मध्यकालीन भारत के इतिहास में जोधपुर (मारवाड़) ने विदेशी आक्रांताओं के विरुद्ध एक अद्वितीय संघर्ष का परिचय दिया। यह संघर्ष मात्र क्षेत्रीय प्रभुत्व की रक्षा नहीं था, बल्कि अस्मिता, स्वाभिमान और संस्कृति की रक्षा का प्रतीक भी था।  जोधपुर के शासकों ने विदेशी आक्रांताओं के सामने झुकने के बजाय बार-बार रणभूमि में उतरकर वीरता का प्रदर्शन किया।

जोधपुर की स्थापना का उद्देश्य राठौड़ वंश का एक शक्ति केंद्र स्थापित करना, आक्रमणों से बचाव के लिए एक दुर्गनुमा राजधानी बनाना और दिल्ली से गुजरात जाने वाले व्यापारिक मार्ग पर नियंत्रण रखना था। मध्यकालीन भारत के इतिहास में जोधपुर (मारवाड़) ने विदेशी आक्रांताओं के विरुद्ध एक अद्वितीय संघर्ष का परिचय दिया। यह संघर्ष मात्र क्षेत्रीय प्रभुत्व की रक्षा नहीं था, बल्कि अस्मिता, स्वाभिमान और संस्कृति की रक्षा का प्रतीक भी था।  जोधपुर के शासकों ने विदेशी आक्रांताओं के सामने झुकने के बजाय बार-बार रणभूमि में उतरकर वीरता का प्रदर्शन किया।15वीं से 18वीं सदी के मध्य तक जोधपुर के शासक दिल्ली सल्तनत, मुगलों और बाद में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ विभिन्न रूपों में संघर्ष करते रहे। राव चूड़ा, राव जोधा और राव मालदेव जैसे शासकों ने जहां स्थानीय स्वायत्तता बनाए रखने के लिए युद्ध किए, वहीं राव मालदेव, राव चंद्रसेन और दुर्गादास राठौड़ जैसे योद्धाओं ने शेरशाह सूरी और मुगलों के विरुद्ध वीरतापूर्वक मोर्चा संभाला।

15वीं से 18वीं सदी के मध्य तक जोधपुर के शासक दिल्ली सल्तनत, मुगलों और बाद में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ विभिन्न रूपों में संघर्ष करते रहे। राव चूड़ा, राव जोधा और राव मालदेव जैसे शासकों ने जहां स्थानीय स्वायत्तता बनाए रखने के लिए युद्ध किए, वहीं राव मालदेव, राव चंद्रसेन और दुर्गादास राठौड़ जैसे योद्धाओं ने शेरशाह सूरी और मुगलों के विरुद्ध वीरतापूर्वक मोर्चा संभाला।राव मालदेव का शेरशाह सूरी से संघर्ष विशेष रूप से उल्लेखनीय है। शेरशाह ने राजपुर योद्धाओं का शौर्य देख स्वयं कहा था – “एक मुठ्ठी बाजरे के लिए में दिल्ली की सलतन खो देता।” यह कथन दर्शाता है कि जोधपुर के राजपूत शासकों की सैन्य शक्ति और देशभक्ति कितनी सशक्त थी।

राव मालदेव का शेरशाह सूरी से संघर्ष विशेष रूप से उल्लेखनीय है। शेरशाह ने राजपुर योद्धाओं का शौर्य देख स्वयं कहा था – “एक मुठ्ठी बाजरे के लिए में दिल्ली की सलतन खो देता।” यह कथन दर्शाता है कि जोधपुर के राजपूत शासकों की सैन्य शक्ति और देशभक्ति कितनी सशक्त थी।मुगल काल में भले ही कुछ क्षणों के लिए जोधपुर के शासकों ने कूटनीतिक संबंध बनाए, परंतु समय-समय पर स्वतंत्रता की लौ सुलगती रही। यह कूटनीति भी एक रणनीतिक कदम था ताकि राज्य की संस्कृति, परंपरा और जनजीवन सुरक्षित रह सके।

मुगल काल में भले ही कुछ क्षणों के लिए जोधपुर के शासकों ने कूटनीतिक संबंध बनाए, परंतु समय-समय पर स्वतंत्रता की लौ सुलगती रही। यह कूटनीति भी एक रणनीतिक कदम था ताकि राज्य की संस्कृति, परंपरा और जनजीवन सुरक्षित रह सके।

व्यापारिक मार्ग पर स्थित होने के कारण जोधपुर जल्दी ही कपड़ा, ऊन, नमक, मसालों और ऊंटों के व्यापार का समृद्ध केंद्र बन गया। यहां पर मारवाड़ संस्कृति का विकास हुआ, जिसके भोजन, संगीत, नृत्यकला, आदि आज विश्व विख्यात है। जोधपुरी साफा, बंधेज, आदि हस्तकला किसी को भी आसानी से लुभा सकते है।

आज जोधपुर एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में जाना जाता है। मेहरानगढ़, उम्मेद भवन, जसवंत थड़ा जोधपुर के प्रमुख पर्यटन स्थल है। वर्तमान का जोधपुर सांस्कृतिक विरासत व आधुनिकता के समन्वय को दर्शाते हुए विश्व में ‘सनसिटी’ और ‘ब्ल्यूसिटी’ के नाम से विख्यात है।

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