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भारतीय दर्शन के अनुरूप हो महिला विमर्श – डॉ. मोहन भागवत जी

जयपुर . राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत
जी ने कहा कि भारतीय विचार परम्परा में पुरुष और महिला को  एक-दूसरे का
पूरक माना गया है. महिला और पुरुष दोनों के अपनी-अपनी प्राकृतिक गुण संपदा
के आधार पर साथ चलने से ही सृष्टि चलती है. उन्होंने कहा कि महिलाओं में कई
भिन्न-भिन्न कार्यों को साथ-साथ कर पाने की नैसर्गिक क्षमता होती है.
पुरुष अपनी आजीविका के माध्यम से परिवार को चलाने और उसे सुरक्षा प्रदान
करने का काम करते हैं, तो महिलाएं इन कार्यों के साथ-साथ संतान को अपने
वात्सल्य भाव से योग्य बनाने और परिवार को एक बनाए रखने की जिम्मेदारी भी
कुशलता से निर्वहन करती हैं. महिलाएं पुरूषों से किसी भी तरह कमतर नहीं
हैं, अपितु जो कार्य पुरुषों के लिए सम्भव नहीं, वह कार्य भी महिला करने
में समर्थ है. देश का 50% हिस्सा महिलाओं का है, उनके सहयोग के बिना देश की
उन्नति संभव नहीं. सरसंघचालक जी शनिवार 29 सितंबर को जयपुर के इंदिरा
गांधी पंचायती राज संस्थान में आयोजित मातृशक्ति संगम को सम्बोधित कर रहे
थे.
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सहयोग के बिना पुरूषों के लिए संघ कार्य को पर्याप्त समय देना सम्भव नहीं.
संघ के व्यापक तौर में सीधे रूप से सेवा, संपर्क, प्रचार, कुटुंब प्रबोधन,
सामाजिक समरसता आदि में भी मातृशक्ति सहयोग कर रही है. जिस प्रकार महिलाएं
परिवार का कुशल नेतृत्व करती आई हैं, उसी  प्रकार आज के समय में समाज के भी
प्रमुख कार्यों में नेतृत्व दे रही हैं, यह हमारे लिए अच्छे संकेत हैं.
महिला सुरक्षा के लिए कठोर कानून क़ी आवश्यकता है, परंतु कानून की अपनी
सीमाएं है. सिर्फ कठोर कानून बनाने से नहीं समाज जागरण से ही पूर्ण समाधान
संभव है. विवेक विकसित करने और संस्कारों के संपादन से ही यह हमको करना
होगा. उन्होंने कहा कि इसी कारण भारतीय संस्कृति में वह नारी शक्ति के बजाय
मातृशक्ति के रूप में प्रतिष्ठित है, जबकि पश्चिम में महिला को मात्र
स्त्री और पत्नी के रूप में देखा गया.
डॉ. मोहन जी ने कहा कि आधुनिक परिप्रेक्ष्य में नारी सशक्तिकरण आंदोलन
पश्चिम की देन माना जाता है, लेकिन वहां पुरुष को अधिकार-सक्षम और महिला को
गुलाम मान कर नारी मुक्ति पर बल दिया गया. इसका परिणाम वहां परिवार और
विवाह संस्था पर खतरे के रूप में सामने आया. उन्होंने कहा कि भारत में
परिवार संस्था कई विषम परिस्थितियों को झेलने के बाद भी सुदृढ़ बनी हुई है,
जिससे सीख लेते हुए आज पश्चिम में भी परिवार संस्था को पुनः मजबूत करने के
प्रयास होने लगे हैं.
पुरुषों को महिलाओं को देवी अथवा दासी मानने के स्थान पर वर्तमान
परिस्थितियों के अनुरूप उनके प्रति अपनी सोच बदलनी होगी. पौराणिक कथाओं में
ऐसे कई उल्लेख मिलते हैं कि जब देवता भी किसी कार्य को पूर्ण नहीं कर सके
तो वे उसके लिए जगतजननी की शरण में गए. इसलिए महिलाओं का अपने कल्याण के
लिए पुरुषों की ओर देखने के बजाय स्वयं ही जाग्रत होना होगा.
सरसंघचालक जी ने कहा कि मातृशक्ति का उत्थान इस राष्ट्र की उन्नति के
लिए अनिवार्य शर्त है, जबकि रीति-रिवाज, परिवेश और परिस्थिति के अनुसार
भारत में अलग-अलग स्थानों पर महिलाओं की स्थिति में बहुत बड़ा अंतर है.
उन्होंने आह्वान किया कि समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में प्रमुख भूमिका
निभा रही महिलाएं मातृशक्ति के उत्थान के लिए आगे आएं.
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उन्होंने कुटुम्ब में संस्कारों का स्तर गिरने और इंटरनेट सहित बाहरी
प्रभावों के कारण बाल मनोवृत्ति पर हो रहे दुष्प्रभाव के बारे में चिंता
व्यक्त की. उन्होंने कहा कि दबे पांव, चोरी छिपे आ रहे सांस्कृतिक संकट से
अपने परिवार और समाज को बचाने के लिए महिलाओं को आगे आना होगा. वर्तमान समय
में हमें अपने अंदर नीतिकारक और अनीतिकारक में भेद करने की दृष्टि विकसित
करनी होगी, इसके लिए हमें Legality (विधि संगत) के साथ Morality (नैतिकता)
और Naturality (प्रकृति सम्मत) का भी विचार करना होगा.
मातृशक्ति संगम में राजस्थान के सभी जिलों के विभिन्न स्थानों पर समाज
जीवन में अग्रणी भूमिका निभा रही 284 महिलाएं उपस्थित रहीं. कार्यक्रम का
प्रारम्भ भारत माता के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ.
समापन से पूर्व प्रश्नोत्तर कार्यक्रम में प्रतिभागियों द्वारा विभिन्न
सामाजिक राष्ट्रीय मुद्दों सोशल मीडिया, न्यायालय द्वारा हाल ही में दिए गए
निर्णय, पारिवारिक जीवन मूल्य, राजनीति, राममंदिर आदि पर प्रश्न पूछे,
जिसके उत्तर सरसंघचालक मोहन भागवत जी ने दिए. अन्य सत्रों की अध्यक्षता
सेविका समिति की अखिल भारतीय तरुणी प्रमुख भाग्यश्री साठे जी, सह शारिरिक
शिक्षण प्रमुख अदिति कटियार जी और विद्या भारती की अखिल भारतीय बालिका
शिक्षा प्रमुख रेखा चूडासमा जी ने की.

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