
माओवादियों के खिलाफ छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में चलाए जा रहे सफल सुरक्षा अभियानों के बीच, देश के प्रमुख वामपंथी दलों ने केंद्र और राज्य सरकार से ‘ऑपरेशन कगार’ को तत्काल रोकने की मांग की है। वाम दलों का दावा है कि यह अभियान आदिवासियों के अधिकारों और जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) [CPI(M)] और अन्य वामपंथी संगठनों ने मंगलवार को एक संयुक्त प्रेस बयान जारी कर कहा कि, “बस्तर के आदिवासी इलाकों में ऑपरेशन कगार के नाम पर सुरक्षा बलों द्वारा किए जा रहे अभियान जनजीवन को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं। यह न केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि संवैधानिक आदिवासी अधिकारों पर भी हमला है।”
ऑपरेशन कगार अप्रैल 2025 में शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य माओवादी नेटवर्क की रीढ़ तोड़ना और बस्तर के दुर्गम क्षेत्रों को माओवादमुक्त बनाना है। अब तक की कार्रवाई में सुरक्षाबलों को उल्लेखनीय सफलता मिली है — कई बड़े नक्सली नेताओं की गिरफ्तारी हुई है, कई मुठभेड़ों में शीर्ष कमांडर मारे गए हैं और सैकड़ों कैडर आत्मसमर्पण कर चुके हैं।
केंद्र और छत्तीसगढ़ सरकार का दावा है कि ऑपरेशन कगार पूरी तरह से पेशेवर, रणनीतिक और मानवाधिकारों का सम्मान करते हुए चलाया जा रहा है। गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “बस्तर में वर्षों से फैले आतंक के खिलाफ यह निर्णायक अभियान है। इसमें आम नागरिकों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है।”
वाम दलों ने आरोप लगाया है कि इस अभियान की आड़ में निर्दोष ग्रामीणों को प्रताड़ित किया जा रहा है, फर्जी मुठभेड़ें हो रही हैं और ग्राम सभाओं की सहमति के बिना सुरक्षा शिविर बनाए जा रहे हैं। उनका कहना है कि आदिवासी समुदाय के भीतर भय और अविश्वास का माहौल बन गया है।
स्थानीय आदिवासी नेताओं की प्रतिक्रिया इस मुद्दे पर मिली-जुली रही है। कुछ संगठनों ने वाम दलों की मांग का समर्थन करते हुए सरकार से संवाद और विकास को प्राथमिकता देने की मांग की, वहीं कुछ अन्य ने कहा कि माओवादियों के कारण वर्षों से विकास बाधित हुआ है और अब ऑपरेशन कगार के जरिए पहली बार शांति और सुरक्षा की उम्मीद जगी है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि वाम दलों की यह मांग एक ‘राजनीतिक चाल’ भी हो सकती है, खासकर तब जब केंद्र सरकार माओवाद के खिलाफ निर्णायक बढ़त हासिल करने के कगार पर है। वहीं कुछ विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि सरकार को ऑपरेशन के दौरान पारदर्शिता और स्थानीय सहभागिता बढ़ाने की दिशा में और प्रयास करने चाहिए।
जहां एक ओर बस्तर में ऑपरेशन कगार माओवादियों के खिलाफ एक सफल रणनीतिक कदम के रूप में देखा जा रहा है, वहीं दूसरी ओर वाम दलों की यह मांग राष्ट्रीय विमर्श को फिर एक बार आदिवासी अधिकार बनाम राज्य की शक्ति के प्रश्न पर खड़ा कर रही है। आगे आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस अभियान को जारी रखते हुए वामपंथी दबाव और स्थानीय संतुलन को कैसे साधती है।