राहुल गांधी ने हाल ही में महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के संदर्भ में आरोप लगाया है कि चुनाव आयोग (ECI) और भाजपा मिलकर चुनावी संख्याओं में हेराफेरी कर रहे हैं और वोटरों की संख्या को बढ़ाकर नतीजों को प्रभावित करने की कोशिश की गई है। उनका दावा है कि जिन सीटों पर भाजपा जीती, वहां नए मतदाताओं की संख्या में अचानक वृद्धि देखी गई।
क्या सच में ऐसा हुआ?
चुनाव आयोग और भाजपा ने इन आरोपों को स्पष्ट तौर पर खारिज किया है।
चुनाव आयोग ने कहा है कि मतदाता सूचियां स्थापित कानूनों के अनुसार तैयार की जाती हैं और चुनाव प्रक्रिया के दौरान कांग्रेस या उसके एजेंटों की ओर से कोई विश्वसनीय शिकायत नहीं की गई थी।
विरोधी पार्टियों की जीत क्या कहती है?
अगर मतदाताओं की संख्या में वृद्धि ही भाजपा की जीत का एकमात्र कारण होती, तो विरोधी पार्टियां 53 ऐसी सीटों पर कैसे जीत सकती हैं, जहां उनकी जीत का अंतर नए मतदाताओं की संख्या से भी अधिक है?
यह तथ्य साबित करता है कि चुनावी नतीजे केवल मतदाताओं की संख्या में बढ़ोतरी पर निर्भर नहीं थे।
इन 53 सीटों पर कांग्रेस और अन्य विरोधी दलों ने जीत हासिल की, और कई मामलों में उनकी जीत का अंतर नए मतदाताओं की संख्या से भी अधिक था।
महत्वपूर्ण बिंदु
- विरोधी पार्टियों की जीत: 53 सीटों पर विरोधी पार्टियों की जीत साबित करती है कि चुनावी नतीजे केवल मतदाताओं की संख्या पर निर्भर नहीं थे।
- कोई विश्वसनीय शिकायत नहीं: चुनाव आयोग का कहना है कि चुनाव प्रक्रिया के दौरान कोई विश्वसनीय शिकायत नहीं की गई थी।
- तर्क का अभाव: अगर मतदाताओं की संख्या में हेराफेरी हुई होती, तो विरोधी पार्टियां इतनी सीटों पर जीत नहीं सकती थीं।
राहुल गांधी के आरोपों का कोई ठोस आधार नहीं है।
विरोधी पार्टियों की जीत और चुनाव आयोग के बयान से साफ है कि चुनावी प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष रही। चुनावी संख्या में हेराफेरी के आरोप सिर्फ राजनीतिक बयानबाजी लगते हैं, जिनका कोई सबूत नहीं है।