
संघ का शताब्दी वर्ष : संगठन, समाज और संस्कार का स्वर्णिम अवसर
(प्रतिनिधि सभा में प्रस्तुत विचारों के आलोक में)
“समाज है आराध्य हमारा, सेवा है आराधना – शताब्दी वर्ष राष्ट्र सेवा की पुनर्पुष्टि का अवसर है।”
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शताब्दी वर्ष केवल एक संगठनात्मक पड़ाव नहीं, यह राष्ट्र के पुनर्निर्माण की दिशा में एक ऐतिहासिक अवसर है। 2025 में संघ की स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण होंगे – यह एक ऐसा स्वर्णिम कालखंड होगा, जिसे संघ सामाजिक जागरण, संगठन विस्तार और राष्ट्र चेतना के पुनः जागरण के रूप में मनाना चाहता है।
प्रतिनिधि सभा में क्या कहा गया शताब्दी वर्ष को लेकर?
प्रतिनिधि सभा 2024-25 में यह स्पष्ट रूप से कहा गया –
“संघ के शताब्दी वर्ष का वातावरण संगठन के साथ-साथ समाज में भी बनता हुआ दिख रहा है। संघ कार्य के प्रति समाज में प्रबुद्ध वर्ग और सामान्य जनता की विश्वसनीयता बढ़ रही है।”
“यह समय है जब परिस्थिति की अनुकूलता को परिश्रम की पराकाष्ठा से जोड़कर कार्य विस्तार को लक्ष्य की ओर पहुंचाना होगा।”
कार्य की दिशा – संगठन से समाज तक
शताब्दी वर्ष को केवल एक आयोजन नहीं, एक यज्ञ माना जा रहा है – जिसमें
संघ के स्वयंसेवक गुणवत्ता युक्त शाखा कार्य,
व्यापक समाज संपर्क,
सज्जन शक्ति की सहभागिता,
और आदर्श जीवन चरित्र के माध्यम से समाज को जोड़ने का कार्य करेंगे।
योजना और कार्यक्रम : पूर्ण सफलता की तैयारी
प्रतिनिधि सभा का आह्वान है कि:
शताब्दी वर्ष में होने वाले हर कार्यक्रम की सुस्पष्ट योजना और चरणबद्ध क्रियान्वयन होना चाहिए।
संगठन की शक्ति एवं प्रभाव को विस्तार देने और
समाज के आत्मविश्वास एवं संगठन भाव को मजबूत करने के लिए यह अवसर सर्वोत्तम है।
समाज जागरण में संघ की भूमिका
संघ का मानना है कि समय-समय पर समाज को उचित दिशा देने के लिए संघ जैसी प्रेरक शक्तियों की आवश्यकता होती है। शताब्दी वर्ष उस भूमिका के पुनर्निर्माण का श्रेष्ठ अवसर है।
“हम आवश्यक व्यापक समाज संपर्क करें, सज्जन शक्ति की सहभागिता बढ़ाएं और अपनी राष्ट्रनिष्ठा व निर्मल चारित्र्य से समाज का विश्वास अर्जित करें।”
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निष्कर्ष : शताब्दी वर्ष – एक तपस्या, एक साधना
यह केवल उत्सव नहीं है, यह एक साधना है भारत माता के वैभव की।
संघ का प्रत्येक स्वयंसेवक, हर इकाई, हर विभाग इस वर्ष को राष्ट्रभक्ति की गहराई, सामाजिक समरसता की ऊंचाई और संगठन के विस्तार की दृढ़ता के साथ पूर्ण करेगा।
“यह शताब्दी वर्ष है – एक नए युग का आरंभ, भारत के लिए, समाज के लिए और संस्कारों के लिए।”
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