
प्रयागराज महाकुंभ : राष्ट्र गौरव और आध्यात्मिक चेतना का अविस्मरणीय संगम
(आरएसएस प्रतिनिधि सभा में महाकुंभ पर कही गई विशेष बात)
“समूचे राष्ट्र और विशेषकर हिंदू समाज के आत्मगौरव व आत्मविश्वास को जाग्रत करने वाला प्रयागराज का महाकुंभ, वास्तव में एक सांस्कृतिक इतिहास बन गया है।”
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रतिनिधि सभा 2024-25 में प्रयागराज में संपन्न महाकुंभ मेला को लेकर जो वक्तव्य रखा गया, वह न केवल एक आयोजन की प्रशंसा थी, बल्कि भारत की आत्मा और सनातन संस्कृति की गूंज भी था।
प्रतिनिधि सभा में क्या कहा गया महाकुंभ के विषय में?
प्रतिनिधि सभा में विशेष रूप से यह कहा गया कि —
> “यह विशेष महाकुंभ भारत की आध्यात्मिकता एवं सांस्कृतिक विरासत के अद्भुत दर्शन का अवसर रहा। यह महाकुंभ अपने समाज के आंतरिक सत्त्व का अहसास कराने वाला बन गया। करोड़ों श्रद्धालुओं ने संगम में पवित्र स्नान कर ‘न भूतो…’ ऐसा इतिहास रचा।”
इस ऐतिहासिक आयोजन में देश के प्रत्येक पंथ, संप्रदाय के साधु-संतों एवं श्रद्धालुओं की उपस्थिति ने इसे एक अद्वितीय आध्यात्मिक संगम बना दिया। यह भारत की एकात्मता और विविधता में एकता का भव्य प्रतीक था।
व्यवस्था और संचालन के लिए प्रशंसा
संघ ने प्रतिनिधि सभा में स्पष्ट रूप से यह बात रखी कि:
उत्तर प्रदेश सरकार और भारत सरकार द्वारा की गई व्यवस्था और संचालन प्रशंसनीय रहा।
समाज के असंख्य संस्थाओं व व्यक्तियों ने संसाधन, परिश्रम और सेवा के माध्यम से व्यवस्था में योगदान देकर एक जीवंत समाज की झलक प्रस्तुत की।
यह आयोजन सेवा, अनुशासन, स्वच्छता और सहयोग के दृष्टिकोण से एक मील का पत्थर बन गया।
मौनी अमावस्या की भगदड़ : एक दुःखद क्षण
हालाँकि, इस अद्भुत आयोजन के मध्य मौनी अमावस्या के पावन दिन हुई भगदड़ की दुर्घटना, जिसमें श्रद्धालुओं की मृत्यु हुई, प्रतिनिधि सभा में एक गंभीर दुःख के रूप में व्यक्त की गई। यह एक पीड़ादायक पृष्ठ अवश्य रहा, लेकिन इससे शेष कुंभ की गरिमा और व्यवस्था की सफलता कम नहीं होती।
प्रतिनिधि सभा में यह भी कहा गया:
> “यह दुर्घटना अत्यंत दुःखद रही, किंतु शेष कुंभ अनुशासन, स्वच्छता और सेवा भावना का अनुपम उदाहरण बन गया।”
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निष्कर्ष : एक सांस्कृतिक कीर्तिमान
प्रयागराज महाकुंभ न केवल आस्था का पर्व था, बल्कि यह भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का महोत्सव था। प्रतिनिधि सभा में महाकुंभ को “राष्ट्र गौरव और आत्मविश्वास जागरण का प्रतीक” मानते हुए इसे भारतीय जीवन मूल्यों की पुनर्पुष्टि बताया गया।
यह आयोजन दिखाता है कि जब समाज, सरकार और संत शक्ति एकत्रित होती है, तब आध्यात्मिकता और व्यवस्था दोनों मिलकर राष्ट्र को एक नई ऊँचाई देते हैं।

