Vishwa Samvad Kendra Jodhpur

TRANDING
TRANDING
TRANDING

एक मुलाकात, The Youth Icon  के साथ 

Facebook
Twitter
LinkedIn
Telegram
WhatsApp
Email



आज का युवा ऊर्जस्वी व यथार्थवादी है । वो वस्तुनिष्ठ है, उसके पास बहुत सारे सवाल हैं पर उनमें से अधिकतर के जवाब नहीं है । तब वो निकल पड़ता है जवाब की खोज में । इस अन्वेषी यात्रा में उसका सामना होता है अपने गौरवशाली अतीत से । और यहीं उसे अपने अनेक अनुत्तरित प्रश्नों के जवाब मिलते चले जाते हैं । इसी खोज यात्रा में वो मिलता है एक ऐसी महारानी से जो “कन्वेंशनल”  तरीके से गद्दी की पात्र नहीं बनी। उससे रहा नहीं गया, वो पहुंच गया अपने सवालों के साथ, उनके पास ।

युवा : राजमाता , उस युग में आपको महिला होते हुए भी राजा जैसी शक्तियां कैसे मिल गयी ?

राजमाता :”जहाँ समर्पण हो, वही सर्वोच्च शासन होता है।
               जहाँ संवेदना हो, वहीं सबसे सशक्त स्त्री होती है।”
मैंने कभी यह नहीं चाहा कि मुझे राजा जैसी शक्तियां मिलें , मैंने स्वयं को बेहतर बनाया  — एक प्रशासक, न्यायाधीश, दार्शनिक और समाजसेविका के रूप में।

युवा : अरे वाह , आज हम जहाँ फेमिनिस्म का एक empowered women role मॉडल ढूँढ़ रहे हैं वहां आप तो फेमिनिज्म के  legendary benchmark  जैसे हैं  । अच्छा आप अपने struggles के बारे में कुछ बताइये ।

राजमाता : जब मेरे पति और पुत्र दोनों कि मृत्यु हो गयी तो मुझे निजी रिक्तता का सामना तो करना ही पड़ा, किन्तु मुझे राजनीतिक एवं प्रशासनिक रिक्तता भी संभालनी पड़ी । उस दौर में महिलाओं का शासन करना लगभग असंभव समझा जाता था। मैंने शासन व्यवस्था को नए सिरे से गढ़ा। नए न्याय तंत्र बनाए, ज़मींदारी सुधार किए, प्रशासनिक पदों पर योग्य लोगों की नियुक्ति की, और स्त्रियों व किसानों को पहली बार शासन की प्रक्रिया से जोड़ा।

युवा : ओह्ह यानि अगर सिस्टम ठीक नहीं है तो केवल शिकायत मत करो, खुद अपने रास्ते बनाओ । हमारे लाइफ में आपकी जितनी troubles आती तो हम तो डिप्रेस हो जाते ।

राजमाता : तूफ़ान के बाद जो मज़बूती से उठ पता है वही विजेता है । मेरे शासन काल में आतंरिक अस्थिरता थी , बाहरी  हमलों की भरमार थी किन्तु मैंने युद्ध का उत्तर युद्ध ही से नहीं, निर्माण से भी दिया ।गांवों में कुंए, स्कूल, मंदिर, धर्मशालाएं, यात्रियों के लिए विश्राम स्थल बनवाए।  मंदिरों के पुनर्निर्माण के माध्यम से संस्कृति को पुनर्जीवित किया, संकट में समाज को धैर्य और दिशा दी। जनता में एक भावनात्मक जुड़ाव उत्पन्न किया।

युवा : लेकिन मंदिर बनाने से आम जन को क्या लाभ ?

राजमाता :  मैंने आस्था आधारित सार्वजनिक स्थलों का निर्माण करवाया, जो ना केवल धार्मिक थे, बल्कि सामाजिक समावेशन के केंद्र भी बने।उज्जैन के घाट, बनारस की सीढ़ियां, नर्मदा के किनारे बनी धर्मशालाएं जो सम्भवतः तुम्हारी पीढ़ी तक भी भारतीय पहचान की वाहक रही होंगी ।ये निर्माण कार्य भावनात्मक जुड़ाव पैदा करते हैं! मंदिरों के साथ हाट, बाजार, धर्मशाला, गोशाला और अनाज भंडारण केंद्र बनवाए गए। इन केंद्रों पर स्थानीय कारीगरों, किसानों और व्यापारियों को रोज़गार मिला।

युवा : यानी आपने soft power मज़बूत किया और economic एंड  multifaceted rebuilding  की , आपने सिर्फ आज की नहीं, अनेकों सौ साल आगे तक की सोची  । आप तो efficient administrator की modern आइकॉन हैं।

राजमाता मुस्कुरा कर आगे बढ़ गयीं । वो युवा पीछे अपने विचारों के मंथन में डूबा रह गया … उस युग में , सालों पहले , “नेपोटिस्म” को परास्त करते हुए एक “empowered ” महिला उसे मिलीं । जिस “ageless  vision ” के बारे में वो सुनता था वो उस महारानी के राजकाज में इतने वर्षों पहले दिखा । जिस “सॉफ्ट पावर” को वह बहुत महत्ता देता था, वो उसने रानी जी को क्रियान्त्वित करते देखा।उस युवा ने घर आकर इन राजमाता के बारे में गूगल कर नाम जानने की कोशिश की । “राजमाता पुण्यश्लोका देवी अहिल्या बाई होल्कर जी”, वो दंग था ये नाम जानकर और ये सोचकर की बचपन से आजतक कैसे वो इनसे अनजान था । किन्तु उसके मन में हर्ष था । जिस ” legit icon ” की तलाश उसे थी , वो पूरी हो चुकी थी ।

लेखक

स्नेहा मेहता

Facebook
Twitter
LinkedIn
Telegram
WhatsApp
Email
Tags
Archives
Scroll to Top