जोधपुर २६ दिसंबर १५. राष्ट्रीय सम्मेलन के दुसरे दिन उम्मेद स्टेडियम से गांधी मैदान तक स्वदेशी संदेश यात्रा निकाली गई। ’’जब भी बाजार जायेगें, माल स्वदेशी लायेंगे’’, ’’स्वदेशी अपनाओ,देश बचाओ’’, आदि उद्घोषों के साथ सभी प्रदेशों से आये 2000 स्वदेशी कार्यकर्ताओं ने स्टेडियम से गांधी मैदान तक स्वदेशी संदेश यात्रा निकाली गई।

हुंकार सभा आयोजन: गांधी मैदान में स्वदेशी हुंकार सभा का आयोजन किया गया। इस सभा में स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय संयोजक अरूण ओझा ने कहा कि स्वदेशी का अर्थ मात्र घर परिवार की चारदीवारी तक ही सीमित नहीं वरन सामाजिक अर्थव्यवस्था के अंतर्गत हमारा व्यापार, वाणिज्य, हमारा सुथार, हमारा सुनार, हमारा चर्मकार सहित मध्यम व ऊँचा व्यापार सरकारी नौकरीयों में अधिकारी पद से लेकर उद्योगपतियों तक की जीवन शैली को भारतीय संस्कारों में ढाल देना ही स्वदेशी है। इसी के अन्तर्गत इन विचारों को परिलक्षित करते हुए स्वदेशी जागरण मंच पिछले 24 वर्षों से लगातार भारतीय संस्कार शैली को भारत एव अन्र्तराष्ट्रीय स्तर तक शोभायमान करने का उत्कृष्ठ कार्य कर रहा है।


द्वितीय सत्र: मंच के दक्षिण क्षेत्र के संयोजक कुमार स्वामी ने कहा कि ग्लोबल वार्मिगं और जलवायु परिवर्तन हर बीतते वर्ष के साथ बहुत तेजी से क्रूर एवं नुकसानदेह होता जा रहा है। WMO ने अभी हाल ही में ही कहा है कि सन 2015 अभिलेखों के अनुसार अभी तक का सबसे गर्म वर्ष था। यदि हम गत 150 वर्षों के सबसे गर्म 15 वर्षों की सूची बनाएं तो वे समस्त 15 वर्ष सन 2000 के बाद अर्थात 21वीं शताब्दी के ही वर्ष होगें। यह तथ्य 21वीं शताब्दी में ग्लोबल वार्मिगं की समस्या की गंभीरता को दर्षाता है। भूमंडल के बढ़ते हुए तापमान से गंभीर मौसमी आपदाएं जैसे कि कुछ सीमित क्षेत्रों में तेज और भारी वर्षा, जैसाकि नवम्बर एवं दिसम्बर माह में चैन्नई और इसके आस पास के इलाके में देखी गयी एवं देश के बाकी हिस्सों में गंभीर सूखे की समस्या के प्रकोप में लगातार वृद्धि के आसार दिखायी दे रहे हैं। चैन्नई में आई बाढ़ ने प्रकृति के रोष के समक्ष मानव की लाचारी एवं मानवीय संस्थाओं की असफलता को हमें दृष्टिगत कराया है। अगर साल दर साल, इसी प्रकार से अनेक नगर एक साथ प्राकृतिक आपदा के कारण मुष्किल में आते हैं, तब कौन किसकी सहायता कर पायेगा?
सम्पूर्ण विश्व अपनी ही गल्तियों का स्वंय ही शिकार बन चुका है। अस्थायी विकास का माॅडल जो कि पश्चमी देशों में सन 1850 से प्रारम्भ हुआ और जिसका विश्व के सभी देशो ने बिना सोचे समझे अनुसरण किया, यही इस वैष्विक जलवायु संकट का प्रमुख कारण है। विकास का पश्चमी माॅडल टिकाऊ नहीं है क्यूंकि 160 वर्षों के छोटे से कालखंड में ही, सन 1850 जबसे यह प्रारम्भ हुआ, सम्पूर्ण विश्व को इस विनाश के कगार बिन्दु पर ले आया है। आज के वैष्विक तापमान में औद्यौगिक क्रान्ति से पूर्व के वैष्विक तापमान से मात्र 1°ब् की वृद्धि ही हुई है। जलवायु स्थिति हमारे नियन्त्रण से बाहर होती है, जैसाकि केवल 1°ब् पर हुआ है, तो भविष्य में वैष्विक तापमान में यदि 2°ब् या अधिक की वृद्धि होती है, तो क्या होगा?
विकास का पश्चमी माॅडल उसी प्रकार के लचर असीमित उपभोग के माॅडल पर आधारित है और इस पर ही मजबूती से निर्भर करता है। यह लालच और अदूरदर्षिता है। WWF के द्वारा तैयार की गई लिविगं प्लेनेट रिपोर्ट – 2014 का स्पष्ट कहना है कि सन 1970 से विश्व के जंगली जानवरों की आधे से अधिक संख्या उनका अधिक और अवैद्य शिकार किए जाने, उनकी मारे जाने और उनके रहने के स्थान में आए संकुचन के चलते कम हुई है। उसका आगे कहना है कि यदि सम्पूर्ण विश्व अमेरिका की भांति संसाधनों के अत्यधिक उपभोग के स्तर को बनाऐ रखता है तो हमें संसाधनों की आपूर्ति के लिए चार और पृथ्वियों की आवश्यकता पड़ेगी। इससे सिर्फ पष्चिमी जीवन शैली का खोखलापन सिद्ध होता है।
आखिर इससे बाहर निकलने का रास्ता क्या है? वर्तमान पश्चमी विकास एवं जीवन शैली के माॅडल से प्रतीकात्मक एवं गड्डमड्ड समझौता विश्व को बिल्कुल भी बचाने नहीं जा रहा। हमको अधिक सौम्य और अधिक स्थायी तरीके से विकास एवं जीवन शैली के तरीके में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्य्कता है। विकास एवं जीवन शैली के टिकाऊपन का एक सजीव एवं प्रमाणित उदाहरण विकास का भारतीय माॅडल है जिसे विकास एवं जीवन शैली का स्वदेशी माॅडल भी कहा जा सकता है। स्वदेशी माॅडल इस अर्थ में सम्पूर्णता लिए हुए है कि यह जीवन (धर्म एवं मौक्ष) में भौतिकता (अर्थ, काम) एवं आध्यात्मिकता को समान महत्व देता है। यह पृथ्वी मां को उसके चेतन एवं अचेतन, समस्त स्वरुपों में अत्यन्त सम्मान एवं श्रद्धा देती है।
स्वदेशी विकास की अवधारणा भविष्य में आने वाली पीढि़यों की भी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए औचित्यपूर्ण उपभोग की वकालत होती है। आज समय की मांग है कि न केवल भारत अपितु पूरे विश्व को विनाश से बचाने के लिए सहस्राब्दी से प्रमाणित एवं सफलतापूर्वक संचालित स्वदेशी की विकास की अवधारणा और जीवन शैली को अपनाया जाए।
जोधपुर (राजस्थान) में आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन मांग करता है कि –
1. टिकाऊ विकास का भारतीय माॅडल एवं जीवन शैली से संबंधित विभिन्न आयामों पर विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों के द्वारा व्यापक एवं स्तरीय शोध कार्य को प्रोत्साहन दें।
2. विशेषकर विश्वविद्यालद्यों एवं विषय पर स्वयंभू तज्ञयों के बीच शोध के परिणामों को व्यापक रूप से प्रचारित और प्रसारित करें।
3. शोध के परिणामों के आलोक में सरकार की विकास प्राथमिकता निश्चित हो।
4. COP-21 को भारत सरकार द्वारा सौंपी गई INDC के अनुरूप अक्षुण ऊर्जा स्रोतों को प्राथमिकता दी जाए।
5. जैविक खेती एवं पशुपालन को प्रचारित एवं प्रसारित करने हेतु योग्य कदम उढाया जाए।
6. वृक्षारोपण, विशेषकर स्वदेशी किस्म के फलदार वृक्षों का व्यापक आंदोलन चलाया जाए, ताकि वन जीव-जंतुओं को पर्याप्त मात्रा में भोजन उपलब्ध रहे।