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RSS की पहली शाखा: 1925 में संघ के विचार का जन्म | #RSSat100 भाग : 2

भगवा ध्वज
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1925 में डॉ. हेडगेवार द्वारा शुरू की गई RSS की पहली शाखा ने कैसे राष्ट्रनिर्माण की नींव रखी? जानिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कार्यपद्धति और विचार की कहानी।

भगवा ध्वज
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के समय भगवा ध्वज को गुरु के रूप में प्रतिष्ठित किया

एक विचार का जन्म

1925 की विजयादशमी। भारत की मिट्टी पर वह दिन किसी त्योहार से अधिक एक ऐतिहासिक चेतना का जागरण था। नागपुर के रेशीमबाग में, जहाँ आमतौर पर उत्सव, मेले और पारंपरिक आयोजन होते थे, उस दिन कुछ नया हो रहा था। डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार, एक दृढ़ विचार के साथ वहाँ उपस्थित थे — उनके साथ 17 युवक थे, पर उनके इरादे करोड़ों की चेतना जगाने वाले थे।

यह ‘संघ’ का जन्म था।
पर यह कोई संस्था नहीं थी, यह एक विचार था — एक संगठित, आत्मसम्मान से भरा हुआ, और जागरूक हिन्दू समाज का स्वप्न।

1925: समय की पुकार

बीसवीं सदी का भारत उस दौर से गुज़र रहा था जहाँ आज़ादी की मांग तो ज़ोर पकड़ रही थी, लेकिन हिंदू समाज विखंडन, अस्पृश्यता, आंतरिक कलह और आत्मविस्मृति से जूझ रहा था। कांग्रेस की राजनीति, विदेशी शक्तियों का प्रभाव, और अलगाववादी विचार तेजी से ज़मीन बना रहे थे।

डॉ. हेडगेवार, जो स्वयं कांग्रेस के भीतर रहकर स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े थे, ने अनुभव किया कि राजनीतिक स्वतंत्रता तब तक अधूरी रहेगी जब तक समाज संगठित और सांस्कृतिक रूप से सशक्त न हो।
इसलिए उन्होंने तय किया — “राजनीति से ऊपर उठकर समाज निर्माण करना होगा।”

वह पहली शाखा: साधारण दृश्य, असाधारण ऊर्जा

विजयादशमी के दिन, नागपुर में 17 युवक एक मैदान में इकट्ठे हुए। वे सब सामान्य वेशभूषा में थे — खाकी निकर, सफेद कमीज़ और सिर पर टोपी।
कोई बैनर नहीं, कोई नारा नहीं। बस एक ध्वज — भगवा ध्वज, जिसे उन्होंने राष्ट्र की आत्मा का प्रतीक माना।

/https://panchjanya.com/2023/07/03/242811/bharat/why-is-the-saffron-flag-the-guru/

शाखा शुरू हुई — शारीरिक व्यायाम से, अनुशासनबद्ध पंक्तियों में खड़े होकर, और फिर एक छोटा सा बौद्धिक सत्र।
डॉ. हेडगेवार ने कोई लंबा भाषण नहीं दिया, बस एक बात कही:
“हमें संगठित होना है — एक परिवार की तरह, एक राष्ट्र की तरह।”

वह दृश्य कोई इतिहास की किताबों में चित्रित नहीं, पर भारत के आत्मबोध की यात्रा वहीं से शुरू हुई।

शाखा: केवल व्यायाम नहीं, विचार की प्रयोगशाला

संघ की कार्यपद्धति में ‘शाखा’ सबसे केंद्रीय इकाई है।
यह एक घंटे की दिनचर्या मात्र नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण, आत्मनिर्भरता, और राष्ट्रसेवा की पाठशाला है।

शारीरिक व्यायाम अनुशासन सिखाते हैं

खेल आत्मविश्वास और भाईचारा बढ़ाते हैं

बौद्धिक सत्र विचारों को माँजते हैं

प्रार्थना, गीत, और कहानियाँ प्रेरणा देती हैं

शाखा में कोई पद नहीं,कोई जाति नहीं, कोई ‘मेम्बरशिप कार्ड’ नहीं।
बस एक पहचान — “मैं स्वयंसेवक हूँ।”

डाॅ. साहब कहते थे कि ‘कोई राष्ट्र कितना महान है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उस राष्ट्र का औसत व्यक्ति कितना महान है। संपूर्ण राष्ट्र की जीवन शक्ति इसी बात पर निर्भर होती है। समाज के प्रत्येक व्यक्ति के मन में सामंजस्यपूर्ण जीवन के लिए रुचि, जुनून और इच्छा पैदा करना ही हमारा ध्येय है, यही हमारी विशेषता है और यही हमारी सफलता की कुंजी है।’

/https://rss-shakha.blogspot.com/2011/06/RSS-Shakha-lagane-vidhi-paddhiti-aagya-process-Rules-Commands-in-Hindi.html

पहली शाखा से राष्ट्रव्यापी विस्तार तक

नागपुर से शुरू होकर, शाखा धीरे-धीरे अन्य शहरों में पहुँची।
1940 के दशक में जब भारत अंग्रेज़ी हुकूमत से संघर्ष कर रहा था, संघ की शाखाएँ गाँव-गाँव में लगने लगीं।

आज लगभग 60,000 से अधिक स्थानों पर दैनिक शाखाएँ लगती हैं — गाँवों, कस्बों, महानगरों में।
संघ कभी प्रचार नहीं करता, फिर भी यह फैलता गया। क्यों?

क्योंकि संघ स्वयंसेवक बनाता है — और स्वयंसेवक ही संघ को बढ़ाते हैं।

सेवा, संगठन और शक्ति का अदृश्य तंत्र

शाखा से निकलने वाले स्वयंसेवक सिर्फ विचारक नहीं, कर्मशील कार्यकर्ता भी बने।
उन्होंने समाज के हर क्षेत्र में काम किया —

बाढ़, भूकंप, कोविड जैसी आपदाओं में राहत कार्य

अनाथालय, वृद्धाश्रम, शिक्षा केंद्रों का संचालन

आदिवासी और सीमावर्ती क्षेत्रों में सेवा

संस्कार, व्यसनमुक्ति और ग्रामीण सशक्तिकरण

एक शाखा, जो आज विचारों का महासमर बन गई

कई क्रांतियाँ अस्त्रों से होती हैं।
पर संघ की क्रांति प्रार्थना, लकड़ी की डंडियों, और मौन साधना से हुई।

कन्हैया लाल से लेकर कल्पना चावला, राष्ट्र के हर कोने में संघ की शाखा का प्रभाव प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दिखता है।
चाहे कोई स्वयंसेवक न्यायपालिका में हो, सेना में, शिक्षा में, या राजनीति में — उसकी जड़ें वहीं हैं जहाँ पहली शाखा लगी थी।

“अगर आपको संघ को समझना है,
तो नागपुर की उस पहली शाखा की धरती पर बैठकर देखिए —
जहाँ 17 युवक थे, पर विचार असीम था।”

#RSSat100 Part 3 में क्या आएगा?

“संघ और स्वतंत्रता संग्राम: मिथक, सच्चाई और इतिहास के पन्नों से न्याय”

पढ़िए #RSSat100 भाग 1 :

/https://vskjodhpur.com/rssat100-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-1-%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%b7%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%af-%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a4%af%e0%a4%82%e0%a4%b8%e0%a5%87%e0%a4%b5/

/https://vskjodhpur.com/wp-admin/post.php?post=3664&action=edit

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