राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की शताब्दी का अवसर केवल संगठन के 100 वर्षों की यात्रा का उत्सव नहीं है, बल्कि यह आधुनिक भारत की सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना का भी प्रतिबिंब है। यदि इस शताब्दी समारोह का आयोजन जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय जैसे ऐतिहासिक शैक्षणिक संस्थान में होना यह एक नए युग के संवाद का मार्ग भी खोलेगा।
जामिया और संघ – दो परंपराओं का संगम
जामिया की स्थापना स्वतंत्रता आंदोलन की पृष्ठभूमि में हुई थी। मौलाना मोहम्मद अली, हकीम अजमल खाँ और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जैसे महान नेताओं ने इसे राष्ट्रीय शिक्षा का केंद्र बनाने का स्वप्न देखा था। वहीं, 1925 में डॉ. हेडगेवार द्वारा स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भारत की सांस्कृतिक अस्मिता और संगठन की भावना को प्रबल किया।
इन दोनों परंपराओं का मिलन—एक ओर स्वतंत्रता-आधारित शिक्षा की धारा और दूसरी ओर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की धारा—समाज के लिए संवाद और सहयोग की एक मिसाल हो सकता है।
शताब्दी का अवसर और उसका महत्व
संघ ने सौ वर्षों में समाज के विभिन्न क्षेत्रों—शिक्षा, सेवा, ग्रामोदय, पर्यावरण, और राष्ट्रीय सुरक्षा—में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जामिया जैसे विश्वविद्यालय में इसका उत्सव मनाना यह संकेत देगा कि भारतीय समाज अब विविध परंपराओं और विचारधाराओं को संवाद और सहयोग की दृष्टि से देखना चाहता है।
संवाद और सह-अस्तित्व की ज़रूरत
आज के समय में जब समाज में विभाजनकारी प्रवृत्तियाँ बढ़ रही हैं, तब यह आयोजन एक नई पहल हो सकता है
यह दर्शाएगा कि शिक्षण संस्थान केवल अकादमिक ज्ञान के केंद्र नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुल भी हैं।
संघ और जामिया, दोनों मिलकर यह संदेश दे सकते हैं कि राष्ट्र निर्माण में विविधता ही शक्ति है, विरोध नहीं।
युवाओं के लिए प्रेरणा जामिया के छात्र-छात्राएँ इस आयोजन से कई मायनों में लाभान्वित हो सकते हैं—
संघ के सेवा कार्यों और अनुशासन की झलक पाकर उनमें समाजसेवा और नेतृत्व की भावना विकसित होगी।
शिक्षा और संगठन के सम्मिलित स्वरूप से युवाओं में चरित्र निर्माण, आत्मनिर्भरता और राष्ट्रीय एकता के मूल्य सुदृढ़ होंगे।
सांस्कृतिक समरसता का संदेश
यह आयोजन भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब को नई ऊर्जा देगा। एक ओर भारतीय परंपरा, संस्कृति और संघ की कार्यपद्धति प्रस्तुत होगी, तो दूसरी ओर जामिया की ऐतिहासिक भूमिका और आधुनिक शिक्षा की धारा। यह सह-अस्तित्व का जीवंत उदाहरण बन सकता है।
जामिया मिल्लिया इस्लामिया में संघ का शताब्दी उत्सव केवल एक समारोह नहीं , बल्कि यह सांस्कृतिक संवाद, राष्ट्रीय एकता और भविष्य की दिशा तय करने वाला ऐतिहासिक अवसर है। यह आयोजन यह सिद्ध करता है कि भारत का वास्तविक बल उसकी विविधता, सहिष्णुता और साझा मूल्यों में निहित है।