Vsk Jodhpur

नेताजी सुभाष चंद्र बोस : भारत की स्वतंत्रता का निर्णायक अध्याय 

 
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में नेताजी सुभाष चंद्र बोस एक ऐसी शख्सियत हैं जिन्हें केवल एक क्रांतिकारी नेता कहना उनके योगदान को सीमित करना होगा। उनका दृष्टिकोण, नेतृत्व क्षमता और निर्णायक संघर्ष ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिला दिया। 1943 में सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर में आज़ाद हिंद सरकार (Provisional Government of Free India/Arzi Hukumat-e-Azad Hind) की स्थापना कर स्वयं प्रधानमंत्री और युद्ध मंत्री का पद संभाला। यह घटना औपनिवेशिक भारत के लिए प्रतीकात्मक ही सही, किंतु अत्यंत ऐतिहासिक महत्व वाली मानी जाती है। 

images 226018839293984332599

1943 की आज़ाद हिंद सरकार और नेताजी की भूमिका 
अक्टूबर 1943 में नेताजी द्वारा गठित आज़ाद हिंद सरकार को जापान, जर्मनी, इटली, बर्मा, फिलीपींस, आयरलैंड, और कई अन्य मित्र देशों ने मान्यता दी। नेताजी ने प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और युद्ध मंत्री के रूप में शपथ ली। 
– इस सरकार के अंतर्गत आज़ाद हिंद फौज (INA) को औपचारिक रूप से वैधानिक सैन्य शक्ति माना गया। 
– नेताजी ने स्वतंत्र भारत की मुद्रा, न्यायिक ढाँचा और प्रशासनिक ढाँचे तक की आधारशिला रखने की कोशिश की। 
– उनका नारा था: “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा” – जो युवाओं और सैनिकों को प्रेरित करता रहा। 

subhas chandra 1943 tokyo5672378142810992688

ब्रिटिश दृष्टिकोण और ब्रिटेन छोड़ने की विवशता 
ब्रिटिश अभिलेखों और तत्कालीन अधिकारियों के संस्मरण यह दर्शाते हैं कि बोस के नेतृत्व में संगठित सैन्य संघर्ष ने ब्रिटिश मनोबल को गंभीर रूप से प्रभावित किया। 
– 1943–45 के बीच बोस की आज़ाद हिंद फौज की कार्रवाइयों ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत में केवल अहिंसक आंदोलन ही नहीं, बल्कि सशस्त्र विद्रोह की संभावना भी मौजूद है। 
– ब्रिटिश खुफिया रिपोर्टों में दर्ज है कि भारतीय सैनिकों की वफादारी पर संकट खड़ा हो गया था। वफादारी की इस शंका ने ब्रिटेन की सैन्य रणनीति को कमजोर कर दिया। 
– विशेष रूप से 1945 में आज़ाद हिंद फौज के सैनिकों पर चले INA Trials (लाल किले के मुकदमे) ने पूरे भारत में सहानुभूति और विद्रोह की लहर पैदा कर दी। ब्रिटिश नेतृत्व ने माना कि भारतीय सेना और जनता दोनों को दबाना अब असंभव हो चुका है। 

images 206564760350434015550

आज़ाद हिंद फौज : मनोवैज्ञानिक प्रभाव 
यद्यपि आज़ाद हिंद फौज को अंतिम विजय नहीं मिल सकी, परंतु इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव ब्रिटिश शासन पर गहरा पड़ा। 
1. भारतीय सैनिकों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने की मिसाल कायम की। 
2. भारतीय जनता, विशेषकर युवाओं में, स्वतंत्रता के लिए ‘बलिदान और अनुशासन’ का नया भाव उत्पन्न हुआ। 
3. ब्रिटिश अधिकारियों ने खुद स्वीकार किया कि बोस की गतिविधियों ने भारत में स्वतंत्रता की गति को और तीव्र कर दिया।

images 179163818963418846726

जहाँ महात्मा गांधी और कांग्रेस का नेतृत्व स्वतंत्रता के लिए अहिंसक संघर्ष पर जोर देता था, वहीं नेताजी मानते थे कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद केवल बल प्रयोग और सशस्त्र विद्रोह से ही उखाड़ा जा सकता है। 
– यह द्वंद्व भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की बहुआयामी प्रक्रिया को दर्शाता है। 
– दोनों दृष्टिकोणों का संगम अंततः ब्रिटेन की सत्ता के लिए असहनीय सिद्ध हुआ। 

images 217219334324480177771

निष्कर्ष 
नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत की स्वतंत्रता के ऐसे निर्णायक नायक हैं जिनकी भूमिका अक्सर औपचारिक इतिहास में सीमित करके प्रस्तुत की जाती है। परंतु सच्चाई यह है कि उनकी आज़ाद हिंद सरकार और आज़ाद हिंद फौज ने ब्रिटिशों को यह अहसास कराया कि भारत में ‘गुलामी की मानसिकता’ अब टूट चुकी है। यही भय और जनविद्रोह की आशंका ब्रिटिशों को 1947 में भारत छोड़ने की ओर ले गई। 
इस दृष्टि से, नेताजी केवल एक नेता नहीं, बल्कि भारत की स्वतंत्रता की नींव को हिला देने वाले दूरदर्शी रणनीतिकार और राष्ट्रनायक हैं। 

सोशल शेयर बटन

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Archives

Recent Stories

Scroll to Top