Vishwa Samvad Kendra Jodhpur

लक्षद्वीप: भारत का ‘रणनीतिक द्वीप’ रक्षा के लिए अधिग्रहित—चीन की चिंता क्यों गहरी?

भारत सरकार ने अरब सागर में स्थित लक्षद्वीप द्वीपसमूह के सबसे छोटे और बसे हुए द्वीप ‘बित्रा’ को रक्षा और रणनीतिक जरूरतों के लिए अपने नियंत्रण में लेने की प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू कर दी है। इस कदम के पीछे बढ़ती चीनी सैन्य गतिविधियां, हिंद महासागर क्षेत्र में उसके विस्तारवादी इरादे और रणनीतिक संतुलन बनाए रखना मुख्य उद्देश्य है।

अधिग्रहण की पृष्ठभूमि और प्रक्रिया
लक्षद्वीप प्रशासन ने बित्रा द्वीप को रक्षा इस्तेमाल हेतु अधिग्रहण के लिए नोटिफिकेशन जारी किया है, जहां लगभग 105 परिवार रहते हैं। इस फैसले का स्थानीय स्तर पर विरोध भी सामने आया है, परंतु राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से केंद्र सरकार अडिग है। इससे पहले भी मिनिकॉय और अगत्ती जैसे द्वीपों पर एयरबेस और सैन्य इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित करने के फैसले लिए जा चुके हैं, ताकि तटीय व समुद्री सीमा की निगरानी और प्रतिक्रिया क्षमता मजबूत हो सके।

रणनीतिक महत्व—चीन क्यों असहज?
लक्षद्वीप की भौगोलिक स्थिति बेहद अहम है। यह नाइन डिग्री चैनल के पास बसा है, जो फारस की खाड़ी, मध्य-पूर्व, यूरोप और पूर्वी एशिया को जोड़ने वाली वैश्विक व्यापारिक समुद्री लेन का चौराहा है। यहां से भारत पूरे अरब सागर में समुद्री निगरानी, विशेष आर्थिक क्षेत्र की सुरक्षा और आपूर्ति लाइनें काटने जैसी रणनीतिक गतिविधियों को अंजाम दे सकता है, जो चीन, पाकिस्तान या मालदीव से उभरती समुद्री चुनौतियों के लिए जवाबी शक्ति का काम करेगी।

चीन ने हाल के वर्षों में श्रीलंका, मालदीव, पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों में बंदरगाह विकसित किए हैं और हिंद महासागर में अपनी सैनिक उपस्थिति लगातार बढ़ा रहा है। भारत द्वारा लक्षद्वीप 4पर मजबूत सैन्य ठिकाना विकसित करना चीन के लिए “स्टेटजिक ब्लॉकेज” की तरह है—क्योंकि इससे उसकी नेवी की गतिशीलता, रसद सप्लाई और जियोपॉलिटिकल प्रभुत्व को तत्काल चुनौती मिलेगी।

भारत की नीति: सुरक्षा, आत्मनिर्भरता और क्षेत्रीय संतुलन
भारतीय रक्षा मंत्रालय और नौसेना ने बार-बार संकेत दिया है कि देश की समुद्री सीमाओं की सुरक्षा, निगरानी और तेजी से प्रतिक्रिया क्षमता बढ़ाना अब सबसे बड़ी प्राथमिकता है। DRDO, भारतीय नौसेना, कोस्ट गार्ड और अन्य एजेंसियां लक्षद्वीप में आधारभूत ढांचे को और मजबूत करने की दिशा में विगत वर्षों से सक्रिय हैं। इससे समुद्र में किसी भी तरह के खतरों का तत्काल जवाब देना संभव हो सकेगा।

स्थानीय विरोध—संस्कृति बनाम सुरक्षा
स्थानीय लोग और जनप्रतिनिधि इसे अपनी सांस्कृतिक विरासत और जीवनशैली पर खतरा मान रहे हैं। सरकार ने भरोसा दिलाया है कि पुनर्वास और सामाजिक-आर्थिक सहयोग की सभी व्यवस्थाएं प्राथमिकता से सुनिश्चित की जाएंगी, क्योंकि राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में ऐसे रणनीतिक निर्णायक अगले दशकों के लिए अनिवार्य हैं।

लक्षद्वीप पर नियंत्रण और उसकी ‘रणनीतिक रक्षा’ में तब्दील होने की प्रक्रिया, हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की निर्णायक उपस्थिति और चीनी चुनौती का जवाब है। भारत अपने समुद्री क्षेत्र, व्यापारिक सुरक्षा और राष्ट्रीय स्वाभिमान के लिए भविष्य की रणनीति को जमीनी स्तर पर उतार रहा है—यही चीन की सबसे बड़ी चिंता है।

सोशल शेयर बटन

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Archives

Recent Stories

Scroll to Top