नरकंकाल जांच के लिए इजराइल भेजा गया, ऐतिहासिक विरासत की परतें खुल रही हैं
राजस्थान के भरतपुर जिले के बहज गांव में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा जारी खुदाई में ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण अवशेष प्राप्त हुए हैं। प्राप्त अवशेषों में महाभारत काल, मौर्य युग और शुंग वंश से संबंधित मूर्तियां, मिट्टी के बर्तन, धातु के हथियार और एक मानव कंकाल शामिल हैं। यह खोज भारतीय उपमहाद्वीप के प्राचीन इतिहास पर नई रोशनी डाल सकती है।
इजराइल भेजा गया नरकंकाल
खुदाई में मिले एक नरकंकाल को वैज्ञानिक परीक्षण और डीएनए विश्लेषण के लिए इजराइल भेजा गया है। पुरातत्वविदों के अनुसार यह कंकाल 2000 वर्ष से भी अधिक पुराना हो सकता है, जिसकी कार्बन डेटिंग और अनुवांशिक जांच से यह स्पष्ट होगा कि वह व्यक्ति किस युग का था और उसकी जातीय पृष्ठभूमि क्या रही होगी।
बहज गांव: ऐतिहासिक महत्व की नई पहचान
भरतपुर जिले के डीग तहसील अंतर्गत बहज गांव को अब एक संभावित प्राचीन नगर के रूप में देखा जा रहा है। खुदाई में मिले अवशेषों में महाभारत कालीन युद्धक उपकरणों की तरह दिखने वाले लोहे के शस्त्र, शुंगकालीन टेराकोटा मूर्तियां और मौर्य युग की मुहरें एवं बर्तन शामिल हैं।
प्रदर्शनी और संरक्षण
खुदाई से प्राप्त कुछ अवशेषों को जयपुर स्थित पुरातात्विक अनुसंधान प्रयोगशाला भेजा गया है, जहां उनकी वैज्ञानिक जांच और संरक्षण किया जाएगा। वहीं, कई दुर्लभ मूर्तियां और कलाकृतियां डीग के जल महल संग्रहालय में प्रदर्शित की जा रही हैं, जिससे आमजन भी इस ऐतिहासिक धरोहर से परिचित हो सकें।
खुदाई अब भी जारी
ASI के क्षेत्रीय निदेशक ने बताया कि खुदाई का कार्य अभी भी प्रगति पर है और आने वाले दिनों में और भी महत्त्वपूर्ण खोज की उम्मीद है। इस क्षेत्र में गहराई से अध्ययन के बाद यह तय किया जाएगा कि बहज गांव को संरक्षित विरासत स्थल घोषित किया जाए या नहीं।
इतिहासकारों में उत्साह
राजस्थान विश्वविद्यालय और अन्य शोध संस्थानों के इतिहासकार व पुरातत्त्वविद इस खोज को “महान ऐतिहासिक मील का पत्थर” मान रहे हैं। इतिहासकार डॉ. राघवेंद्र शर्मा के अनुसार, “यदि यह सिद्ध हो जाता है कि ये अवशेष महाभारत काल के हैं, तो यह हमारे देश की सांस्कृतिक परंपरा और पुराणों के ऐतिहासिक महत्व को प्रमाणित करने वाला एक बड़ा प्रमाण होगा।”
विशेष : राजस्थान के बहज गांव की यह खुदाई न केवल क्षेत्र की ऐतिहासिक पहचान को प्रबल करेगी, बल्कि भारतीय पुरातत्व और इतिहास के उन अध्यायों को फिर से लिखने का अवसर भी दे सकती है जिन्हें अब तक केवल कथाओं और ग्रंथों में पढ़ा गया है।