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दानवीर भामाशाह: त्याग, राष्ट्रभक्ति और समर्पण की जीवित मिसाल,

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🪔 जन्म: 28 जून 1547
🕯 मृत्यु: 1600

राजस्थान के गौरव, महाराणा प्रताप सिंह के अत्यंत निकट सहयोगी और सेनापति रहे दानवीर भामाशाह भारत के इतिहास में एक ऐसे महानायक थे, जिनका योगदान केवल युद्धभूमि तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने आर्थिक और रणनीतिक रूप से भी मातृभूमि की रक्षा में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया।

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🏹 महाराणा प्रताप के सेनापति और रणनीतिक सहयोगी

भामाशाह महाराणा प्रताप के एक प्रमुख मंत्री, सेनापति और अत्यंत विश्वसनीय साथी थे। जब हल्दीघाटी युद्ध के बाद महाराणा प्रताप की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई थी और उनके पास अपनी सेना को बहाल करने तक के संसाधन नहीं थे, तब भामाशाह ने अपने संपूर्ण खजाने को देशहित में समर्पित कर दिया।

🏛 चित्तौड़ के नगर सेठ और अप्रतिम दानवीर

चित्तौड़ के नगर सेठ रहे भामाशाह ने महाराणा प्रताप को 2 करोड़ स्वर्ण मुद्राएं और 25 करोड़ चांदी के सिक्के भेंट किए। यह उस समय भारत में किसी भी व्यक्ति द्वारा दिए गए सबसे बड़े दानों में से एक था।

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🔥 एक योद्धा ही नहीं, राष्ट्रनिर्माता भी

भामाशाह ने केवल आर्थिक सहयोग ही नहीं दिया, बल्कि अपनी सेना के साथ मुगलों के शिविरों पर आक्रमण कर धन प्राप्त किया और उसे महाराणा प्रताप की सहायता में लगाया। उन्होंने यह सिद्ध किया कि जब देश संकट में हो, तब धन, जीवन, बलिदान – सब कुछ मातृभूमि के चरणों में अर्पित किया जा सकता है।

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✨ भामाशाह से क्या सीखें आज के भारत में?

देश सेवा सिर्फ सीमा पर नहीं होती, आर्थिक सहयोग और रणनीतिक समर्पण भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है।

व्यक्तिगत संपत्ति से राष्ट्र को पुनर्जीवित करना सबसे बड़ा परोपकार है।

संघर्ष काल में सच्चे मित्र ही पहचान में आते हैं।





🛕 आज, 28 जून को हम इस महानायक को शत् शत् नमन करते हैं और प्रण लेते हैं कि हम भी अपने जीवन में भामाशाह जैसी भावना और साहस रखें।



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