भारत और बांग्लादेश के बीच गंगा जल बंटवारे को लेकर तनाव एक बार फिर सतह पर आ गया है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हाल ही में स्पष्ट शब्दों में कहा कि अगर बांग्लादेश भारत के साथ सहयोग नहीं करता, तो उसे इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। जयशंकर ने यह बयान ऐसे समय दिया है जब बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार ने हाल के महीनों में चीन और तुर्की के साथ अपने संबंधों को मजबूत किया है और भारत के साथ कई अहम परियोजनाओं में ठंडापन आ गया है।
गंगा जल संधि 1996 में भारत और बांग्लादेश के बीच हुई थी, जिसके तहत फरक्का बैराज से गंगा का पानी बांग्लादेश को दिया जाता है। यह संधि 2026 में समाप्त हो रही है और नई संधि को लेकर दोनों देशों के बीच बातचीत ठप पड़ी है। भारत का आरोप है कि बांग्लादेश ने हाल के वर्षों में कई बार भारत विरोधी रुख अपनाया है, जिसमें चीन के साथ रक्षा समझौते, संयुक्त राष्ट्र में भारत विरोधी प्रस्तावों का समर्थन और कट्टरपंथी संगठनों को बढ़ावा देना शामिल है।
जयशंकर ने अपने बयान में कहा, “भारत के साथ सहयोग न करना बांग्लादेश के लिए घाटे का सौदा साबित हो सकता है। पानी जैसी जीवनदायिनी चीज़ पर राजनीति करना दोनों देशों के रिश्तों को नुकसान पहुंचाएगा।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारत अब अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और हितों को सर्वोपरि रखते हुए ही जल बंटवारे पर कोई फैसला करेगा।
वर्तमान गंगा जल संधि के तहत फरक्का बैराज से सूखे मौसम (मार्च से मई) में 35,000 क्यूसेक पानी बारी-बारी से भारत और बांग्लादेश को 10-10 दिन के अंतराल में दिया जाता है। भारत अब इसी अवधि में अपने लिए 30,000-35,000 क्यूसेक अतिरिक्त पानी की मांग कर रहा है, ताकि सिंचाई, औद्योगिक विकास, बिजली उत्पादन और कोलकाता पोर्ट के रखरखाव जैसी जरूरतें पूरी की जा सकें। पश्चिम बंगाल और बिहार जैसे राज्यों ने भी अपने जल अधिकारों और जरूरतों को लेकर केंद्र सरकार के सामने अपनी चिंता जताई है।
बांग्लादेश इस बदलाव को लेकर चिंतित है, क्योंकि उसे डर है कि भारत की नई शर्तों से उसे मिलने वाला पानी कम हो सकता है, जिससे वहां की कृषि, पेयजल और उद्योग प्रभावित होंगे। पिछले तीन दशकों में बांग्लादेश ने कई बार संधि को भारत के पक्ष में बताया और जल संकट की शिकायत की है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर गंगा जल संधि नवीनीकृत नहीं हुई या भारत ने पानी की आपूर्ति कम कर दी, तो बांग्लादेश में कृषि, पेयजल और उद्योग पर गंभीर असर पड़ेगा। इससे वहां की राजनीति और समाज में भी असंतोष बढ़ सकता है। भारत पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि वह अपने हितों की अनदेखी कर किसी भी देश के साथ समझौता नहीं करेगा, चाहे वह पड़ोसी ही क्यों न हो।
यह घटनाक्रम दक्षिण एशिया में बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों और जल संसाधनों की बढ़ती अहमियत को भी उजागर करता है। आने वाले महीनों में गंगा जल संधि को लेकर भारत और बांग्लादेश के रिश्तों में और तनाव देखने को मिल सकता है|