जब इतिहास के पन्नों में राजा दाहिर सेन की वीरगाथा दर्ज होती है, वहीं एक और अध्याय दबा रह जाता है – उनकी अद्वितीय और साहसी पुत्रियाँ, सूर्या और पारिमाल की गाथा। ये दोनों बहनें न केवल राजकुमारी थीं, बल्कि स्वाभिमान और धर्म की रक्षक वीरांगनाएँ थीं जिन्होंने आत्मबलिदान की ऐसी मिसाल पेश की जिसे इतिहास आज भी श्रद्धा से याद करता है।
🔹 पिता की विरासत, बेटियों की शौर्यगाथा
राजा दाहिर सेन ने सिंध पर शासन करते हुए मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति दी। उनके बलिदान के बाद, अरब आक्रमणकारी मोहम्मद बिन कासिम ने जब दाहिर की बेटियों को बंदी बनाकर खलीफा को उपहार स्वरूप भेजा, तब इन बहनों ने एक ऐसा साहसिक निर्णय लिया जिसने उनके स्वाभिमान को अमर बना दिया।

🔹 झूठ का पर्दाफाश, आत्मगौरव की रक्षा
अरब खलीफा को यह झूठ बताया गया था कि सूर्या और पारिमाल अभी तक ‘अविवाहित और शुद्ध’ हैं। लेकिन इन वीरांगनाओं ने दरबार में जाकर स्वयं सच बताया कि वे पहले ही अपमानित हो चुकी हैं।
यह सुनकर खलीफा ने मोहम्मद बिन कासिम को दंडित कर मरवा दिया। बाद में, सूर्या और पारिमाल ने आत्मदाह (जौहर) कर अपने आत्मगौरव की रक्षा की, और इतिहास में हिंदू स्वाभिमान की प्रतीक बन गईं।
🔹 आधुनिक भारत के लिए प्रेरणा
आज जब भी नारी सम्मान, बलिदान और आत्मबल की बात होती है, तब सूर्या और पारिमाल का नाम झांसी की रानी या पद्मावती जैसी वीरांगनाओं के साथ लिया जाना चाहिए। उन्होंने न केवल अपने पिता के संस्कारों की लाज रखी, बल्कि यह सिद्ध कर दिया कि एक स्त्री भी धर्म, संस्कृति और मर्यादा की अंतिम प्रहरी हो सकती है।

—
🌺 नमन उन बेटियों को…
राजा दाहिर सेन की इन बेटियों ने यह सिद्ध किया कि वीरता केवल युद्धभूमि में तलवार चलाने से नहीं, बल्कि सत्य और सम्मान के लिए अडिग खड़े रहने से होती है। उनका जीवन हर भारतीय नारी के लिए एक प्रकाशपुंज है।