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अमेरिका-चीन व्यापार समझौता: दुर्लभ खनिजों की आपूर्ति और अमेरिकी शेयर बाजार पर प्रभाव

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल ही में घोषणा की है कि अमेरिका और चीन के बीच एक बड़ा व्यापार समझौता हो गया है। यह समझौता दोनों देशों के बीच चल रहे आर्थिक तनाव को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। लंदन में दो दिनों तक चले वरिष्ठ अधिकारियों के बीच वार्ता के बाद, दोनों देशों ने एक प्रारंभिक समझौते का ढांचा तैयार किया है, जिसे अब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की आखिरी मंजूरी मिलनी है।

इस समझौते के तहत चीन अमेरिका को दुर्लभ खनिज (rare earths) और मैग्नेट्स की सप्लाई करेगा, जो इलेक्ट्रिक वाहनों, एयरोस्पेस, सेमीकंडक्टर और रक्षा उद्योगों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ये सामग्रियां चीन द्वारा “अग्रिम रूप से” उपलब्ध कराई जाएंगी। बदले में, अमेरिका चीन के छात्रों को अपने विश्वविद्यालयों में पढ़ने की अनुमति देगा—एक मुद्दा जो पिछले कुछ समय से विवादास्पद रहा है।

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इसके अलावा, ट्रम्प ने यह भी कहा कि अमेरिका चीनी सामानों पर 55% टैरिफ लगाएगा, जबकि चीन अमेरिकी सामानों पर 10% टैरिफ लगाएगा। हालांकि, यह बात पहले हुए टैरिफ ट्रूस के संदर्भ में सामने आई है, जिसमें दोनों देशों ने अपने-अपने टैरिफ में काफी कमी की थी। मई में जिनेवा में हुए समझौते के अनुसार, अमेरिका ने चीनी सामानों पर लगे टैरिफ को 145% से घटाकर 30% और चीन ने अमेरिकी सामानों पर लगे टैरिफ को 125% से घटाकर 10% कर दिया था। यह कदम 90 दिनों के लिए लागू हुआ था।

अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुत्निक ने कहा कि यह समझौता एक “फ्रेमवर्क” है, जिसे दोनों देशों के राष्ट्रपतियों की मंजूरी के बाद ही लागू किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि यह समझौता जिनेवा में हुए पिछले समझौते को और मजबूत करता है और दोनों देशों के बीच आर्थिक तनाव को कम करने में मदद करेगा।

इस समझौते से अमेरिका को उन दुर्लभ खनिजों और मैग्नेट्स की आपूर्ति सुनिश्चित होगी, जो उसके उच्च तकनीकी और रक्षा उद्योगों के लिए बेहद जरूरी हैं। साथ ही, चीन को भी अमेरिकी विश्वविद्यालयों में अपने छात्रों को भेजने का अवसर मिलेगा। हालांकि, अमेरिका ने अभी तक अपनी सेमीकंडक्टर और अन्य उच्च तकनीकी निर्यातों पर लगे प्रतिबंध नहीं हटाए हैं।

हालांकि, इस समझौते के बावजूद अमेरिकी शेयर बाजार ने बड़ी उछाल नहीं दिखाई। डॉव जोन्स, एसएंडपी 500 और नैस्डैक फ्यूचर्स में मामूली गिरावट देखी गई। डॉव जोन्स फ्यूचर्स में 0.2% से अधिक की गिरावट दर्ज हुई, जबकि एसएंडपी 500 और नैस्डैक फ्यूचर्स भी 0.15% से 0.31% तक कमजोर रहे। इसका मुख्य कारण यह है कि निवेशक मई महीने के महत्वपूर्ण मुद्रास्फीति (CPI) आंकड़ों और ट्रेजरी बॉन्ड नीलामी का इंतजार कर रहे थे। इन आर्थिक संकेतकों के प्रति सतर्कता के चलते बाजार में बड़ी खरीदारी नहीं हुई।

बाजार विश्लेषकों का कहना है कि व्यापार समझौते की खबर पहले से ही बाजारों में आंशिक रूप से शामिल हो चुकी थी, इसलिए इसका प्रभाव सीमित रहा। इसके अलावा, पिछले कुछ समय में टैरिफ और निर्यात प्रतिबंधों के कारण निवेशकों को नुकसान भी उठाना पड़ा है, जिसकी वजह से वे अभी भी सतर्क हैं। एशिया-प्रशांत क्षेत्र के शेयर बाजारों में मामूली तेजी देखी गई, लेकिन यूरोप और अमेरिका के बाजारों में स्थिरता और मामूली गिरावट का रुख रहा।

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