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असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों को पकड़कर ‘नो-मैन्स लैंड’ में छोड़ा जा रहा है

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भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अवैध घुसपैठ एक बड़ा और लगातार चुनौतीपूर्ण मुद्दा है, खासकर पूर्वोत्तर राज्यों में, जहां सीमाएं लंबी, जटिल और कई जगह खुली हैं। असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें ‘नो-मैन्स लैंड’ में भेजने की कार्रवाई इसी सुरक्षा नीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य देश की आंतरिक स्थिरता और सीमाई इलाकों की जनसांख्यिकीय संरचना की रक्षा करना है।

राष्ट्रीय सुरक्षा के व्यापक संदर्भ में यह कदम क्यों अहम है?
सीमाई सुरक्षा:
असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों की सीमाएं बांग्लादेश से लगती हैं, जहां से अवैध घुसपैठ, तस्करी और अपराध की घटनाएं अक्सर होती हैं। यह न सिर्फ स्थानीय सुरक्षा, बल्कि पूरे देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा है.

आंतरिक स्थिरता:
अवैध घुसपैठियों की बढ़ती संख्या से सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक तनाव पैदा होता है, जिससे स्थानीय आबादी में असंतोष और असुरक्षा की भावना बढ़ती है.

आतंकवाद और कट्टरपंथ:
सीमावर्ती क्षेत्रों में अवैध घुसपैठ का संबंध कई बार आतंकवादी नेटवर्क, जाली नोट, हथियारों और मादक पदार्थों की तस्करी से भी देखा गया है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती है.

राजनीतिक और कूटनीतिक पहलू:
इस तरह की कार्रवाई से भारत बांग्लादेश को यह स्पष्ट संदेश देता है कि वह अपनी सीमाओं और आंतरिक सुरक्षा को लेकर गंभीर है। साथ ही, यह कदम अंतरराष्ट्रीय कानून और मानवीय पहलुओं के बीच संतुलन साधने की कोशिश भी है.

भविष्य की रणनीति
भारत को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में सीमाई प्रबंधन, तकनीकी निगरानी, स्थानीय पुलिसिंग और कूटनीतिक संवाद—इन सभी पहलुओं को मजबूती से शामिल करना होगा. साथ ही, नागरिक अधिकारों और मानवीय मूल्यों का भी ध्यान रखना जरूरी है, ताकि सुरक्षा के साथ-साथ लोकतांत्रिक और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा हो सके।

असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों को ‘नो-मैन्स लैंड’ में भेजना भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य सीमाओं की रक्षा, आंतरिक स्थिरता और आतंकवाद/अपराध पर नियंत्रण है। यह कदम सुरक्षा के साथ-साथ मानवीय और कूटनीतिक संतुलन का भी प्रतीक है।

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