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विद्याभारती जोधपुर प्रान्त की प्रान्तीय प्रधानाचार्य बैठक सम्पन्न

विद्याभारती जोधपुर प्रान्त  की प्रान्तीय प्रधानाचार्य बैठक सम्पन्न  
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जोधपुर।    विद्याभारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान से सम्बद्ध विद्याभारती जोधपुर प्रान्त का प्रान्तीय प्रधानाचार्य बैठक के दूसरे दिन प्रान्त के अध्यक्ष श्री अमृत लाल देया , कोषाध्यक्ष श्री रंगलाल जी सालेचा व सचिव श्री महेन्द्र कुमार दवे ने माॅं शारदा के समक्ष दीप प्रज्जवलन कर कार्य कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। परिचय प्रान्त के सेवा  प्रमुख श्री रूद्रकुमार जी ने करवाया। संस्कृति ज्ञान परीक्षा में उत्कृष्ठ भूमिका निभाने वाले विद्यालयों को पुरस्कार श्री महेन्द्रकुमार, श्री अमृतलाल देया व श्री रंगलाल जी सालेचा द्वारा दिये गये।

IMG 0138मुख्य वक्ता जोधपुर प्रान्त के सचिव श्री महेन्द्र कुमार दवे ने कहा कि किसी भी राष्ट्र का स्तर वहंां की शिक्षा से ही मापा जासकता है। प्राचीन भारत के विश्वगुरु होने में इसकी श्रेष्ठ शिक्षा पद्धति एवं जीवन मूल्य रहेे। आज भी वही श्रेष्ठ ज्ञान विज्ञान में मौजूद है किन्तु भारतवासी बदल गये। आज शिक्षा केवल डिग्री धारी युवक तक सिमट गई, आज हमारा शिक्षा दर्शन जीवन एक दूसरे के विपरीत है। गाॅधी जी की बुनियादी शिक्षा आर्यसमाज की वैदिक शिक्षा , अग्रेजों की अंग्रेजी शिक्षा इनमें से कोई भी एक शिक्षा भारत को पुनः स्थापित नहीं कर पाई है। रावतभाटा परमाणु संयंत्र की खराबी को भारत के एक साधारण से युवक ने ठीक कर दिया स्वयं के विश्वास  पर ।  हम केवल विदेशी शिक्षा नीति पर विश्वास  करते है। आज की शिक्षा आत्म विश्वास नहीं बढाती उस के लिए अपनी धरती और संस्कृति से जुडकर चिन्तन करेगे तो अत्मविश्वास जागेगा। 
विद्या भारती इसी कार्य को गत 64 वर्षो से कर रही है। इसी का परिणाम है कि आदर्श विद्यामन्दिरों की समाज में अच्छी प्रतिष्ठा है। हिन्दुत्व सबको साथ लेकर विकास करने पर विश्वास रखता है। इन विद्यालयों से पढ़कर निकले विद्यार्थीयों में यहां से मिले संस्कारों की छाप देखने को मिलती है। सैद्धान्तिकता को विकसित करने के लिए व्यावहारीकता के प्रयोग करने होगें। विद्या भारती अपने 5 आधार भूत विषयों के माध्यम से हम शिक्षा के माॅडल के रूप में खडे हो रहे है। समाज के अन्य विद्यालयों व समाज के लोगों के साथ जुडकर उसमें अपेक्षित सुथार किया जा सकता है। समाजिक कुरीतियों का निराकरण हेतु हमें अधिक गति से बढ़ना होगा। प्रधानाचार्य के हिस्से में आये सब प्रकार के कार्य व्यवस्थित एवं पूर्ण होंगें तो ही समाज में अपेक्षित परिवर्तन सम्भव है।

    

 

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