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राष्ट्रऋषि डॉ. हेडगेवार: याची दही यांची डोळा का साकार स्वरूप

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21 जून — यह केवल एक तिथि नहीं, अपितु एक युगद्रष्टा, राष्ट्र को दिशा देने वाले महान विचारक और संगठनकर्ता परम पूज्य डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार जी की पुण्यतिथि है। आज के दिन हम उस महापुरुष को स्मरण करते हैं, जिनका जीवन स्वयं सेवा, राष्ट्रनिष्ठा और संगठन शक्ति की प्रतिमूर्ति था।

🔶 प्रारंभिक जीवन और क्रांतिकारी चेतना

1 अप्रैल 1889 को जन्मे डॉक्टर हेडगेवार जी ने बाल्यकाल से ही अंग्रेजी शासन के विरुद्ध अपनी असहमति को प्रकट किया। ‘वंदे मातरम्’ का उद्घोष करने के कारण उन्हें विद्यालय से निष्कासित कर दिया गया था। विद्यार्थी जीवन में वे अनुशीलन समिति जैसे क्रांतिकारी संगठनों से जुड़कर राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए समर्पित हो गए।

🔶 संगठन का स्वप्न और संघ की स्थापना

कलकत्ता से डॉक्टरी की शिक्षा पूर्ण कर वे वापस नागपुर लौटे। उन्होंने अपने चिकित्सा व्यवसाय को त्यागकर राष्ट्र के पुनर्निर्माण हेतु स्वयं को समर्पित कर दिया।
27 सितंबर 1925 (विजयादशमी) को उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। यह संगठन केवल एक संस्था नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण, समाज सेवा और राष्ट्र को परमवैभव पर प्रतिष्ठित करने की जीवंत प्रक्रिया बन गया।

🔶 राजनीति से समाज की ओर

हालाँकि वे कांग्रेस के भी सदस्य रहे और उन्होंने 1921 में पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव कांग्रेस अधिवेशन में प्रस्तुत किया था, परन्तु राजनीति की सीमाओं को पहचानते हुए वे मूल समाज संगठन की ओर मुड़ गए। उनका उद्देश्य था – ऐसा राष्ट्र निर्माण, जो केवल सत्ता आधारित न होकर समाज आधारित हो।

🔶 सतत तप और राष्ट्र समर्पण

डॉ. हेडगेवार जी ने अपने जीवन के अंतिम 15 वर्ष पूर्णतः संघ कार्य में लगा दिए। उनकी दृष्टि में शाखा केवल एक दिनचर्या नहीं, बल्कि “आत्मनिर्माण की प्रयोगशाला” थी। वे स्वयं गाँव-गाँव, नगर-नगर जाकर शाखाएं प्रारंभ करते, नए कार्यकर्ताओं को दीक्षित करते और भारतमाता की सेवा में उनका जीवन जोड़ते।

🔶 शब्दों से नहीं, आचरण से क्रांति

उनका जीवन हमें सिखाता है कि राष्ट्र निर्माण केवल भाषणों से नहीं होता, वह त्याग, तपस्या और अनुशासन से होता है।
उन्होंने कभी स्वयं को प्रचार में नहीं रखा, पर आज उनकी दी हुई दिशा में चलकर 1 लाख से अधिक शाखाएं भारत और विश्व भर में समाज जीवन को संस्कारित कर रही हैं।

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🔶 संघ – शताब्दी की ओर बढ़ता यज्ञ

आज संघ अपनी शताब्दी वर्ष की ओर अग्रसर है। जो बीज 1925 में रोपा गया था, वह आज एक महावटवृक्ष बन चुका है। यह डॉ. हेडगेवार जी की तपश्चर्या का साक्षात फल है।

🔶 पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि

संघ का प्रत्येक स्वयंसेवक आज इस दिवस पर उनके उस वाक्य को स्मरण करता है —
“याची दही यांची डोळा” (यह कार्य मेरी आंखों के सामने साकार हो)।

वह कार्य आज साकार है — शाखाएं हैं, संस्कार हैं, समाज जीवन में सकारात्मक परिवर्तन है — और सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि आज भारत माता को परमवैभव पर प्रतिष्ठित करने हेतु लाखों स्वयंसेवक जीवन अर्पित कर रहे हैं।

🙏 हेडगेवार जी की पुण्यतिथि पर, संघ के सभी कार्यकर्ताओं व भारतमाता के सभी सेवकों को सादर वंदन।

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