राजस्थान में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने एक ऐतिहासिक खोज की है। डीग जिले के बहाज गांव में खुदाई के दौरान 23 मीटर नीचे 3500 साल पुरानी एक प्राचीन नदी के अवशेष मिले हैं। यह खोज भारतीय इतिहास में पहली बार हुई है जब किसी विलुप्त नदी का पेलियोचैनल (प्राचीन नदी मार्ग) इतने स्पष्ट रूप से मिला है। पुरातत्वविदों और इतिहासकारों का मानना है कि यह वही नदी हो सकती है, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में सरस्वती नदी के रूप में मिलता है। खुदाई में मिले अवशेषों की उम्र 3500 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व के बीच आंकी गई है, यानी यह सभ्यता के प्रारंभिक युग की गवाही देती है।
इस नदी के पेलियोचैनल की खोज से यह संकेत मिलता है कि प्राचीन काल में राजस्थान के इस क्षेत्र में घनी मानव बस्तियां थीं, जिनका जीवन और कृषि इसी नदी पर निर्भर था। खुदाई में मिट्टी के बर्तन, दीवारों के साथ बने गड्ढे, भट्ठियां, तांबे और लोहे की कलाकृतियां भी मिली हैं, जो उस समय की उन्नत सभ्यता का प्रमाण हैं। ASI के अधिकारियों के अनुसार, यह पेलियोचैनल उस विशाल सरस्वती बेसिन का हिस्सा हो सकता है, जिसने उत्तर-पश्चिम भारत की अनेक सभ्यताओं को जीवन दिया था।
इस खोज को लेकर वैज्ञानिकों ने उपग्रह चित्रों, सिंथेटिक अपर्चर रडार और भूगर्भीय विश्लेषण जैसी उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल किया। इससे पहले भी राजस्थान के जैसलमेर, बीकानेर, बाड़मेर और अन्य जिलों में सरस्वती नदी के मार्ग और उसके पेलियोचैनल खोजने के प्रयास हुए हैं, जिनमें उपग्रहों से मिली 614 तस्वीरों के विश्लेषण से नदी के बहाव मार्ग सामने आए हैं। इन शोधों से यह भी पता चलता है कि सरस्वती नदी की कई धाराएं राजस्थान के विभिन्न हिस्सों से होकर बहती थीं और अरब सागर में गिरती थीं।
यह खोज न केवल भारतीय इतिहास और पुरातत्व के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि प्राचीन सभ्यताओं के विकास, जल प्रबंधन और सांस्कृतिक धरोहर को समझने के लिए भी एक नई दिशा देती है। ASI ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है, ताकि इस ऐतिहासिक स्थल को संरक्षित किया जा सके और आगे और शोध किए जा सकें।