अप्रैल 2025 में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में वक्फ (संशोधन) अधिनियम के विरोध के दौरान भड़की सांप्रदायिक हिंसा में हिंदू समुदाय को निशाना बनाकर बड़े पैमाने पर आगजनी, लूटपाट और हत्या की घटनाएं सामने आई हैं। कलकत्ता हाई कोर्ट द्वारा गठित जांच समिति की रिपोर्ट में इन घटनाओं की पुष्टि की गई है।
मुख्य बिंदु
- संगठित हमला और राजनीतिक संलिप्तता:
रिपोर्ट के अनुसार, स्थानीय तृणमूल कांग्रेस (TMC) पार्षद महबूब आलम ने हमलों का नेतृत्व किया। उनके साथ आए उपद्रवियों ने योजनाबद्ध तरीके से हिंदू घरों और दुकानों को आग के हवाले किया। अमीरुल इस्लाम नामक व्यक्ति ने बाकायदा उन घरों की पहचान करवाई जिन्हें अब तक निशाना नहीं बनाया गया था, और फिर उन्हें भी जला दिया गया। - पुलिस की निष्क्रियता:
हिंसा के दौरान स्थानीय पुलिस पूरी तरह निष्क्रिय और अनुपस्थित रही। पीड़ितों की मदद की पुकार पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। यह सब स्थानीय पुलिस स्टेशन से महज 300 मीटर की दूरी पर हुआ, लेकिन कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। - विस्तृत नुकसान:
विशेष रूप से बेटबोना गांव में 113 हिंदू घर पूरी तरह जलकर खाक हो गए और वे अब रहने लायक नहीं बचे हैं। कई महिलाओं को डर के कारण अपने रिश्तेदारों के यहां शरण लेनी पड़ी है। पानी की सप्लाई भी काट दी गई थी ताकि लोग आग बुझा न सकें। - हत्याएं और सांप्रदायिक निशाना:
12 अप्रैल को एक हिंदू पिता-पुत्र की उनके मुस्लिम पड़ोसियों ने हत्या कर दी। इसके बाद हिंसा और तेज हो गई, जिसमें कई दुकानें, मंदिर और बाजार तबाह कर दिए गए। - व्यापारिक संपत्ति और मंदिरों पर हमला:
घोशपाड़ा इलाके में 29 दुकानें, एक शॉपिंग मॉल, किराना, हार्डवेयर, कपड़े की दुकानें और मंदिरों को भी लूटपाट व आगजनी का शिकार बनाया गया। - प्रभावित परिवार और विस्थापन:
हिंसा के बाद 87 परिवार (करीब 345 लोग) विस्थापित हुए। कुल मिलाकर 1,320 लोग प्रभावित हुए और राहत शिविरों में शरण लेनी पड़ी। 400 से अधिक हिंदू परिवारों ने मालदा जिले में शरण ली। - प्रशासनिक कार्रवाई:
राज्य सरकार ने इंटरनेट सेवा बंद कर दी, धारा 144 लगाई और अतिरिक्त पुलिस व केंद्रीय बल तैनात किए। 274 से ज्यादा गिरफ्तारियां हुईं और 60 से अधिक एफआईआर दर्ज की गईं।
मुर्शिदाबाद हिंसा पूरी तरह संगठित, सांप्रदायिक और राजनीतिक मिलीभगत का नतीजा थी, जिसमें हिंदू समुदाय को निशाना बनाकर 113 घर जलाए गए, कई लोग मारे गए और सैकड़ों परिवारों को विस्थापित होना पड़ा। पुलिस और प्रशासन की निष्क्रियता ने हालात को और गंभीर बना दिया। हाई कोर्ट की रिपोर्ट ने राज्य सरकार की भूमिका और स्थानीय राजनीतिक संरक्षण को उजागर किया है, जिससे राज्य में सांप्रदायिक सौहार्द और कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।