Vishwa Samvad Kendra Jodhpur

माओवादी एनकाउंटर पर कांग्रेस को क्यों हो रहा दर्द? ये रिश्ता क्या है?

Facebook
Twitter
LinkedIn
Telegram
WhatsApp
Email

छत्तीसगढ़ और आसपास के इलाकों में हाल ही में हुए बड़े माओवादी एनकाउंटर में सुरक्षा बलों ने 27 से ज्यादा नक्सलियों को ढेर कर दिया। जिनमें माओवादी शीर्ष कमांडर नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू पर कुल 1.5 करोड़ रुपये (डेढ़ करोड़) का इनाम घोषित था, छत्तीसगढ़ सरकार ने बसवराजू पर 1 करोड़ रुपये का इनाम रखा था, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र में भी उस पर अलग-अलग इनाम घोषित थे, जिससे कुल इनामी राशि डेढ़ करोड़ रुपये तक पहुंच गई थी। यह ऑपरेशन माओवादी नेटवर्क के लिए बड़ा झटका है और सरकार इसे ऐतिहासिक सफलता मान रही है। लेकिन इसी के साथ कांग्रेस और वामपंथी दलों के कुछ नेताओं की प्रतिक्रिया पर सवाल उठ रहे हैं।

कांग्रेस को क्यों हो रहा है दर्द?

  • एनकाउंटर के बाद कांग्रेस और उनके सहयोगी वामपंथी दलों ने ऑपरेशन को “निर्मम” और “अमानवीय” बताया, जबकि इन्हीं माओवादियों ने पिछले दशकों में 4,000 से ज्यादा लोगों की हत्या की है, जिनमें आम नागरिक और सुरक्षाकर्मी शामिल हैं।
  • कांग्रेस अक्सर ऐसे एनकाउंटर के बाद सुरक्षा बलों की कार्रवाई पर सवाल उठाती है, जिससे विपक्षी दलों पर माओवादियों के प्रति नरमी या राजनीतिक लाभ के लिए सहानुभूति दिखाने के आरोप लगते हैं। कांग्रेस और वामपंथी दलों के कुछ क्षेत्रों में माओवादी समर्थकों या सहानुभूति रखने वाले वर्गों का प्रभाव रहता है। ऐसे में ये पार्टियां माओवादियों के खिलाफ सख्त रुख लेने से बचती हैं, ताकि उनका वोट बैंक प्रभावित न हो। आदिवासी और पिछड़े इलाकों में, जहां माओवादी प्रभावी हैं, वहां की राजनीति में नरम रुख अपनाना कांग्रेस के लिए रणनीतिक रूप से फायदेमंद माना जाता है।
  • कई बार कांग्रेस और वामपंथी दलों की विचारधारा या जमीनी राजनीति में माओवादी समर्थकों का प्रभाव रहता है, जिससे वे सीधे तौर पर माओवादियों की आलोचना करने से बचते हैं। कांग्रेस और वामपंथी दल अक्सर मानवाधिकार के नाम पर माओवादी हिंसा की आलोचना करने के बजाय सुरक्षाबलों की कार्रवाई पर सवाल उठाते हैं। इससे उन्हें ‘प्रगतिशील’ और ‘जनहितैषी’ दिखाने का मौका मिलता है। वामपंथी विचारधारा के प्रभाव में, कांग्रेस के कुछ धड़े माओवादियों को “शोषित” या “विकास से वंचित” वर्ग के रूप में पेश करते हैं, जिससे उनकी हिंसा को भी ‘प्रतिक्रिया’ के तौर पर दिखाया जाता है। जब केंद्र या राज्य में विरोधी दल की सरकार होती है, तो कांग्रेस माओवादी एनकाउंटर के बहाने सरकार की नीतियों, पुलिस कार्रवाई और कानून-व्यवस्था पर निशाना साधती है। इससे वे विपक्ष की भूमिका को धारदार बना सकते हैं।
  • मीडिया, एनजीओ और कुछ बुद्धिजीवी वर्गों के माध्यम से माओवादी हिंसा के खिलाफ कार्रवाई को ‘राज्य की बर्बरता’ के रूप में प्रचारित किया जाता है, जिससे कांग्रेस को ‘जनविरोधी सरकार’ का नैरेटिव गढ़ने में मदद मिलती है।
Facebook
Twitter
LinkedIn
Telegram
WhatsApp
Email
Archives
Scroll to Top