🌼 संघ की स्थापना: राष्ट्रचिंतन से उपजा संगठन
✍️ भूमिका:
1925 का भारत – राजनीतिक दृष्टि से जाग्रत, पर सामाजिक दृष्टि से छिन्न-भिन्न। देश अंग्रेजों की दासता में जकड़ा हुआ था, और दूसरी ओर समाज जात-पांत, भाषा, प्रांत और मत-पंथों में बँटा हुआ। ऐसे समय में एक युगद्रष्टा का जन्म हुआ — परम पूज्य डॉ. केशव राव बलिराम हेडगेवार। उन्होंने केवल राजनीतिक आज़ादी नहीं, बल्कि सामाजिक संगठन और आत्मनिर्माण के माध्यम से भारत के नव-निर्माण का स्वप्न देखा।
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🔥 हेडगेवार जी का दृष्टिकोण: केवल स्वतंत्रता नहीं, स्वराज्य का भाव
डॉ. हेडगेवार जी को यह भलीभांति ज्ञात था कि अंग्रेजों से राजनीतिक स्वतंत्रता मिल भी जाए, तो क्या हम राष्ट्र के रूप में जाग्रत हैं?
क्या समाज एकसूत्र में बंधा हुआ है?
क्या हिंदू समाज अपनी आत्मचेतना और संगठनशक्ति से ओतप्रोत है?
उनका मानना था कि यदि समाज संगठित नहीं हुआ, तो स्वतंत्रता भी निरर्थक हो जाएगी।

⚔️ समाज की दुर्दशा और आत्महीनता ने दिया नया चिंतन
समाज अनेक प्रकार की विघटनकारी शक्तियों से ग्रस्त था — जातीय भेदभाव, प्रांतीय मतभेद, धार्मिक विखंडन।
हिंदू समाज को केवल रक्षा की मुद्रा में सिमटा हुआ, आत्महीन और पराश्रित बना दिया गया था।
न तो सामूहिक संगठन था, न ही राष्ट्र के प्रति भावनात्मक समर्पण।
डॉ. हेडगेवार ने अनुभव किया कि केवल भाषण, आंदोलन और राजनीति से यह स्थिति नहीं बदलेगी। आवश्यकता थी एक जीवनपर्यंत चलने वाले संस्कार केंद्र की, जो समाज को अनुशासन, राष्ट्रभक्ति और सेवा से जोड़ सके।
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🌱 संघ स्थापना का मूल भाव
27 सितंबर 1925 (विजयादशमी) के दिन नागपुर में एक बीज बोया गया — जिसका नाम था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ।
इसका उद्देश्य स्पष्ट था:
> “हिंदू समाज को संगठित कर, उसे ऐसा सशक्त बनाना जो भारतमाता को परमवैभव पर प्रतिष्ठित कर सके।”
यह कोई राजनीतिक संगठन नहीं, अपितु समाज जीवन का पुनरुत्थान करने वाला सांस्कृतिक आंदोलन था।

🔆 प्रेरणा का स्रोत: चरित्र निर्माण से राष्ट्र निर्माण
हेडगेवार जी का मानना था कि जब समाज का हर व्यक्ति चरित्रवान, सेवाभावी, और राष्ट्रनिष्ठ होगा, तभी सच्चा स्वतंत्र भारत खड़ा होगा।
उनके अनुसार:
> “शाखा आत्मनिर्माण की प्रयोगशाला है।”
शाखा के माध्यम से उन्होंने लाखों स्वयंसेवकों को एक विचार, एक अनुशासन और एक लक्ष्य से जोड़ा — राष्ट्र प्रथम।
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🚩 संघ की स्थापना के पीछे की प्रेरणा
1. राजनीति नहीं, समाज शक्ति
उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर एक ऐसा संगठन खड़ा किया जो राजनीति से ऊपर उठकर समाज निर्माण में लगा रहे।
2. संस्कार, सेवा और समर्पण
यह संगठन बलपूर्वक नहीं, संस्कारपूर्वक कार्य करता है।
3. दैनंदिन संगठन – शाखा व्यवस्था
नियमित शाखाएं चलाकर उन्होंने व्यक्ति निर्माण का अनूठा मार्ग प्रशस्त किया।
4. स्वदेशी विचारधारा पर आधारित संगठन
संघ का प्रत्येक कार्य स्वदेशी और स्वाभिमान पर आधारित रहा।
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🌸 आज भी उतना ही प्रासंगिक
संघ आज केवल भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी संस्कारों की अलख जगा रहा है।
उस समय की आवश्यकता आज भी उतनी ही प्रासंगिक है — जब समाज को फिर से जोड़ने, राष्ट्र को फिर से खड़ा करने और सनातन मूल्यों को पुनः प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता है।
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🙏 उपसंहार: याची दही यांची डोळा
डॉ. हेडगेवार जी का वह दिव्य स्वप्न — “यह कार्य मेरी आंखों के सामने खड़ा हो जाए” —
आज जब लाखों शाखाएं चल रही हैं, समाज सेवा के विविध क्षेत्रों में स्वयंसेवक कार्य कर रहे हैं, तो यह स्पष्ट है कि
> संघ केवल संगठन नहीं