लोन वराटू अभियान के तहत कुल 1005 माओवादियों ने मुख्यधारा में लौटने की घोषणा की है, जिनमें से 200 से अधिक पर इनाम घोषित है।
सुरक्षा बलों को नक्सल प्रभावित क्षेत्र में एक बड़ी सफलता हाथ लगी है। दंतेवाड़ा जिले में मंगलवार को 12 सक्रिय माओवादी कैडर ने पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। आत्मसमर्पण करने वालों में कई हार्डकोर नक्सली शामिल हैं, जो लंबे समय से पुलिस के रडार पर थे।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों में कुछ स्थानीय जनमिलिशिया कमांडर, सक्रिय संगठन सदस्य और ग्रामीण क्षेत्र में हिंसक घटनाओं में संलिप्त व्यक्ति शामिल हैं। ये सभी दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा जिलों में नक्सली गतिविधियों में वर्षों से लिप्त थे।
दंतेवाड़ा एसपी सिद्धार्थ तिवारी ने मीडिया को जानकारी देते हुए बताया कि आत्मसमर्पण की यह प्रक्रिया ‘लोन वर्राटू’ अभियान के तहत हुई है, जिसे दंतेवाड़ा पुलिस द्वारा चलाया जा रहा है। यह अभियान माओवादियों को मुख्यधारा में लाने और पुनर्वास के अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। आत्मसमर्पण करने वालों को राज्य सरकार की पुनर्वास नीति के तहत सहायता दी जाएगी।
एसपी तिवारी ने बताया, “ये सभी माओवादी समाज की मुख्यधारा में लौटना चाहते थे और हिंसा से तंग आ चुके थे। हमें खुशी है कि ये अब विकास की राह पकड़ना चाहते हैं। यह न केवल सुरक्षा बलों के लिए सफलता है, बल्कि क्षेत्र में शांति और स्थिरता की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।”
आत्मसमर्पण करने वालों में से कुछ पर हत्या, लूट और विस्फोट जैसे गंभीर अपराधों में शामिल होने के आरोप हैं। पुलिस अब इन सभी की पृष्ठभूमि की जांच कर रही है और कानूनी प्रक्रिया के तहत आगे की कार्रवाई की जाएगी।
स्थानीय जनप्रतिनिधियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस कदम का स्वागत किया है, और आशा जताई है कि इससे अन्य माओवादी भी प्रेरित होकर हिंसा का मार्ग छोड़कर समाज की मुख्यधारा से जुड़ेंगे।
दंतेवाड़ा जैसे अतिसंवेदनशील क्षेत्र में माओवादियों का आत्मसमर्पण एक सकारात्मक संकेत माना जा रहा है। यह राज्य सरकार की रणनीति, सुरक्षा बलों की लगातार दबाव की कार्रवाई और पुनर्वास नीतियों की सफलता को दर्शाता है।
छत्तीसगढ़ का बस्तर क्षेत्र लंबे समय से माओवादी गतिविधियों का गढ़ रहा है। यहां की भौगोलिक बनावट और सामाजिक-आर्थिक स्थितियां माओवादियों के लिए अनुकूल मानी जाती थीं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में सुरक्षा बलों की सटीक रणनीति, जनता में बढ़ती जागरूकता और प्रशासनिक पहलों के चलते माओवादी संगठन कमजोर होते जा रहे हैं।
यह घटना संकेत देती है कि माओवादियों की पकड़ अब धीरे-धीरे कमजोर हो रही है और शांति व विकास की प्रक्रिया को बल मिल रहा है।
 
								 
											 
		
		
		 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
		
		
	 
														 
														 
														 
														 
														