प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कनाडा यात्रा और जी-7 समिट में भागीदारी ऐसे समय हो रही है जब भारत-कनाडा संबंधों में खालिस्तानी मुद्दा सबसे बड़ा तनाव बना हुआ है। पीएम मोदी की यात्रा के दौरान कनाडा की खुफिया रिपोर्ट में पहली बार खालिस्तानी तत्वों को “चरमपंथी” और “राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा” माना गया है, जो भारत की कूटनीतिक जीत के तौर पर देखा जा रहा है।
कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी के निमंत्रण पर पीएम मोदी कनाडा पहुंचे, जहां दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय वार्ता में खालिस्तान समर्थक संगठनों की गतिविधियां प्रमुख मुद्दा रहीं। मोदी सरकार ने लगातार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह मुद्दा उठाया कि कनाडा में सक्रिय खालिस्तानी संगठन न केवल भारत बल्कि कनाडा की भी सुरक्षा के लिए खतरा हैं। इस बार कनाडा सरकार ने पहली बार खालिस्तानी तत्वों को “एक्सट्रीमिस्ट” और “नेशनल सिक्योरिटी थ्रेट” कहकर भारत की चिंता को आधिकारिक मान्यता दी है।

पीएम मोदी की यात्रा के दौरान कनाडा में खालिस्तानी समर्थकों ने विरोध प्रदर्शन किए और “Kill Modi Politics” जैसे नारे लगाए। इसके बावजूद, दोनों देशों की सरकारों ने सुरक्षा सहयोग और चरमपंथ के खिलाफ साझा रणनीति पर चर्चा की। यह बदलाव भारत की विदेश नीति की दृढ़ता और वैश्विक मंचों पर उसकी बढ़ती स्वीकार्यता का प्रमाण है।
कनाडा की नई सरकार ने खालिस्तान समर्थकों पर कार्रवाई की शुरुआत कर दी है और दोनों देशों के बीच इंटेलिजेंस साझा करने की प्रक्रिया फिर से शुरू हुई है। इससे भारत-कनाडा संबंधों में नया मोड़ आ सकता है और खालिस्तानी नेटवर्क पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ेगा।
पीएम मोदी की इस यात्रा ने दिखा दिया कि भारत अब अपने राष्ट्रीय हितों और सुरक्षा के मुद्दों पर वैश्विक स्तर पर दबाव बनाने में सक्षम है। कनाडा की रिपोर्ट और दोनों देशों के बीच संवाद ने यह स्पष्ट किया है कि खालिस्तानी चरमपंथ अब केवल भारत ही नहीं, बल्कि पश्चिमी देशों के लिए भी गंभीर चुनौती है।