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आत्मनिर्णय का अधिकार किसे, कश्मीर या बलूचिस्तान?

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– वीरेन्द्र सिंह परिहार
1947 में देश के स्वतंत्र होने और उसके बंटवारे के पश्चात पाकिस्तान आए दिन जम्मू-कश्मीर को लेकर यह रट लगाए रहता है कि वहां के लोगों को आत्म-निर्णय का अधिकार होना चाहिए। आए दिन वह इस बात को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ में भी मांग करता रहता है। बड़ी बात यह कि स्वतः पाकिस्तान ही इस मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव के अनुसार जम्मू-कश्मीर में आत्म-निर्णय या जनमत संग्रह की पहली शर्त यह है कि पाकिस्तान सर्वप्रथम पाक अधिकृत कश्मीर जो जम्मू-कश्मीर का करीब एक तिहाई हिस्सा है, उससे अपना कब्जा हटाए-तभी कोई जनमत-संग्रह की स्थिति बन सकती है। लेकिन पाकिस्तान स्वतः इस मार्ग में सबसे बड़ा रोड़ा होते हुए आए दिन आत्म-निर्णय को लेकर हंगामा खड़ा करता रहता है। इसके लिए वह भारत से दो घोषित और दो अघोषित युद्व लड़ने के साथ आए दिन भारत की सीमाओं पर आतंकवादियों से घुसपैठ भी कराता रहता है जो आए दिन देश में बम-विस्फोट कर जन-धन की भारी नुकसान करते रहे हैं। इतना ही नहीं इसी को लेकर वह सीमाओं पर आए दिन गोलीबारी भी करता रहा है। यदयपि केन्द्र में मोदी सरकार के आने से उसको इस क्षेत्र में ‘‘ईंट का जवाब पत्थर’’ से दिया जाता रहा है। जिसके चलते वह कई बार ‘‘त्राहिमाम’’ की स्थिति में आ चुका है।
ये बातें तो अपने जगह पर है। पाक अधिकृत कश्मीर में पाकिस्तान सरकार के, और उसकी फौज के रवैये के चलते वहॉ के लोग पाकिस्तान का जुंआ उतार फेकना चाहते हैं। मुजफफराबाद गिलगिट और कोटली में गत 30 सितम्बर वहां के लोगों ने भारी तादाद में सड़कों पर उतरकर नोरबाजी की और बुनियादी हक दिये जाने की मांग की। स्थिति यह है कि पाकिस्तान फौज लगातार पीओके में मानवाधिकारों का हनन कर रही है। स्थिति यह है कि पीओके के युवा आतंकी गतिविधियों में शामिल होने से इंकार कर रहे है। इस वजह से पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आई.एस.आई. उन्हें अपहरित कर परेशान कर रही है।

स्थिति यह है कि वहां के लोग भारत में मिलने की बातें करने लगे हैं। प्रदर्शन में शामिल महिलाएं कह रही थीं कि हम इंडिया जाना चाहते हैं। सच्चाई यह है कि 1947 से ही पीओके में रह रहे लोगों को पाकिस्तान की दरिंदगी का शिकार होना पड़ रहा है। पाकिस्तान के अन्य हिस्सों की तुलना में इस हिस्से के लोग हमेशा ही भेदभाव के शिकार रहे हैं। सिर्फ विकास के स्तर पर ही नहीं, शिक्षा और स्वास्थ्य के स्तर पर भी सौतेला व्यवहार हुआ है।

बड़ी सच्चाई यह है कि जम्मू-कश्मीर में जहां देश के दूसरे हिस्सों की तरह लोकतंत्र है, और निर्वाचित सरकार काम कर रहीं हैं, वहीं पाक अधिकृत कश्मीर में कहीं लोकतंत्र की किरण नहीं दिखती।  दूसरी तरफ पिछले वर्ष जम्मू-कश्मीर में भयावह बाढ़ के दौरान जिस तरह से केन्द्र सरकार एवं सेनाओं ने वहां के नागरिकों के लिए जी जान से काम किया उससे सिर्फ जम्मू-कश्मीर के लोग ही नहीं पीओके के लोग भी प्रभावित हुए।

पीओके के लोगों को यह एहसास हो गया कि जिस कुशासन से वह त्रस्त हैं, वह मोदी जैसे नेताओं के सुशासन से ही दूर हो सकता है। लाख टके की बात यह कि इस तरह से जब यह स्पष्ट है कि पीओके के लोग पाकिस्तान के साथ नहीं रहना चाहते तो क्या यह उचित नहीं है कि सर्वप्रथम पीओके के लोगों को जनमत संग्रह का अधिकार मिले कि वह किसके साथ रहना चाहते हैं। इस जनमत संग्रह या आत्म-निर्णय में उन दस लाख हिन्दुओं को भी शामिल करना चाहिए जो 1947 में पाकिस्तानी आक्रमण के चलते भाग कर जम्मू क्षेत्र में रह रहे हैं। रहा सवाल शेष जम्मू-कश्मीर का तो वहां की विधानसभा भारत में विलय को पुष्ट कर चुकी है और जनता के प्रतिनिधि ही वहां शासन कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने गत वर्ष 17 सितंबर को देशवासियों से कहा था कि उनका जन्म दिन मनाने की जरूरत नहीं, जम्मू-कश्मीर के बाढ़-पीड़ितों को अधिक-से-अधिक मदद करने की जरूरत है। इतना ही नहीं दीपावली का त्योहार न मनाकर मोदी स्वतः दीपावली के दिन कश्मीर के लोगों के दुख-दर्द बांटने उनके बीच रहें। हकीकत यह कि सिर्फ पीओके ही नहीं, बलूचिस्तान प्रांत भी पाकिस्तान की फौज की दमन-भट्टी में झुलस रहा है।

यहां पर पाकिस्तान की फौज के अत्याचार की इंतिहा यह है कि सिर्फ जवान और बूढ़े ही नहीं, छोटे-छोटे बच्चों को भी फौज घरों में घुसकर गोली मार रही है। इस तरह से अबोध बच्चों को भी पाकिस्तानी सेना के शिकार हो रहे हैं। बताया जाता है कि बलूचिस्तान के लोग भी पाकिस्तान की गुलामी का जुआ उतार फेंकना चाहते हैं। यह बता देना प्रासंगिक होगा कि भू-भाग की दृष्टि से यह पाकिस्तान का 4.4 प्रतिशत है, और यहां पर खनिज भण्डार पर्याप्त मात्रा मे है। पर उसका लाभ यहां के स्थानीय निवासियों को नही मिलता और वह पाकिस्तान के शोषण एवं उत्पीड़न के शिकार हैं। ऐसी स्थिति में उचित यह होगा कि सर्वप्रथम पाकिस्तान पीओके के साथ बलूचिस्तान को भी आत्म-निर्णय का अधिकार दे। 



साभार: न्यूज़ भारती

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