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साइप्रस के बंदरगाह भारतीय युद्धपोतों के लिए खुले: भारत-साइप्रस रक्षा साझेदारी में ऐतिहासिक विस्तार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ऐतिहासिक साइप्रस यात्रा के दौरान भारत और साइप्रस के बीच रक्षा, सुरक्षा और संकट प्रबंधन को लेकर एक महत्वपूर्ण संयुक्त घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर हुए। इस समझौते ने दोनों देशों के रणनीतिक संबंधों को नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया है। सबसे अहम बात यह रही कि अब भारतीय नौसेना के युद्धपोत साइप्रस के बंदरगाहों पर नियमित रूप से आ-जा सकेंगे, जिससे भारत की समुद्री शक्ति और क्षेत्रीय प्रभाव में बड़ा इज़ाफा होगा।

घोषणा-पत्र के “सुरक्षा, रक्षा और संकट प्रबंधन” अध्याय में स्पष्ट किया गया है कि साइप्रस न केवल भारतीय युद्धपोतों के बंदरगाहों पर आगमन को प्रोत्साहित करेगा, बल्कि दोनों देशों की नौसेनाओं के बीच संयुक्त अभ्यास और प्रशिक्षण के नए अवसरों की भी तलाश करेगा। इसका मुख्य उद्देश्य समुद्री सुरक्षा, क्षेत्रीय स्थिरता और आपसी रणनीतिक जागरूकता को बढ़ाना है। यह साझेदारी हिंद महासागर से लेकर भूमध्यसागर तक भारत की समुद्री उपस्थिति को और सशक्त बनाएगी।

दोनों देशों ने आतंकवाद और हिंसक उग्रवाद के हर रूप की कड़ी निंदा की। खासकर, जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकवादी हमले की साइप्रस ने खुलकर आलोचना की और भारत के साथ एकजुटता जताई। दोनों नेताओं ने आतंकवाद के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति दोहराई और आतंकवादियों के वित्तपोषण, सुरक्षित पनाहगाहों और आतंकी ढांचे को खत्म करने के लिए संयुक्त राष्ट्र और FATF जैसे वैश्विक मंचों पर समन्वित कार्रवाई की आवश्यकता पर बल दिया।

घोषणा-पत्र में यह भी कहा गया कि भारत और साइप्रस रक्षा तैयारियों, साइबर सुरक्षा और उभरती तकनीकों के क्षेत्र में सहयोग को और गहरा करेंगे। दोनों देश अपने रक्षा उद्योगों के बीच साझेदारी बढ़ाएंगे, जिससे स्वदेशी तकनीक और रक्षा उत्पादन को भी बढ़ावा मिलेगा। इसके अलावा, आपातकालीन स्थितियों और नागरिकों की निकासी अभियानों में भी दोनों देशों के बीच सहयोग को संस्थागत रूप दिया जाएगा।

इस समझौते के बाद भारतीय नौसेना को यूरोप और भूमध्यसागर क्षेत्र में रणनीतिक पहुंच मिलेगी, जिससे भारत की ‘एक्ट वेस्ट’ नीति को मजबूती मिलेगी। साथ ही, यह भारत की वैश्विक कूटनीतिक और सामरिक शक्ति का भी प्रतीक है। अब भारतीय युद्धपोत साइप्रस के बंदरगाहों पर नियमित रूप से पहुंच सकेंगे, जिससे न केवल दोनों देशों की सुरक्षा साझेदारी मजबूत होगी, बल्कि क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को भी बढ़ावा मिलेगा।

यह ऐतिहासिक कदम भारत को वैश्विक समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में एक नई पहचान देगा और भारत-साइप्रस संबंधों को अभूतपूर्व मजबूती प्रदान करेगा।

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