पाञ्चजन्य ब्यूरो
से छुट्टी देने को राजी नहीं थे। फिर मेरे पति के यह कहने पर कि वे दिल्ली में घर पर नर्स रखकर मेरी देखभाल करेंगे, मुझे छुट्टी दे दी गई। उन्होंने पति से लिखवाया कि वे अपनी मर्जी से मुझे अस्पताल से जबरदस्ती छुट्टी दिलाकर ले जा रहे हैं। तमाम दवाएं साथ थीं।… कोई चार महीने पहले मैं संगीता दीदी के संपर्क में आई और उन्होंने मुझे योग- प्राणायाम सिखाया।
मेरे लिए वह देवदूत के समान हैं। कोई छह दिन बाद ही मुझमें फर्क आने लगा और आज मैं अपने पूरे परिवार की पूरी देखभाल करती हूं, समाजसेवा भी करती हूं और बहुत-बहुत खुश हूं। इसलिए मैं इतना जानती हूं कि योग से ज्यादा शक्तिशाली दुनिया में कुछ भी नहीं है।’
यह बात आपको प्रचार जैसी भले लग रही हो लेकिन जिसके जीवन में घटी है उसके लिए सत्य का अनुभव है। बस कुछ भ्रांतियों से बचिएगा। जैसे इसे बीमारी दूर करने भर का जरिया मत मान लीजिएगा। बीमार हों तो इलाज मत त्यागिएगा। साथ में योग अपनाएंगे तो यह स्वास्थ्य से साथ ऐसी खुशी और पूर्णता भी देगा जो जीवन में आती है तो टिकती भी है। आप दूसरों में खुशी लाने के संवाहक बन जाते हैं। योग का सबसे गहरा सूत्र है कि हम केवल मन नहीं हैं, शरीर नहीं हैं। सब कुछ बदल रहा है लेकिन अंदर कुछ ऐसा है जो आज भी वैसा ही है, जैसा एक साल की उम्र में था और जब हम मां के पेट में थे तब भी वैसा ही था। उस ‘कॉमन थ्रेड’ की पहचान तक पहुंचने
का मार्ग है योग।
योग की महत्ता के कुछ उदाहरण और देखते हैं। सहज मुनि और हीरा रतन मानेक किसी भी प्रकार का भोजन लिए बिना साल-साल बिता देते हैं। इस पर भारत के वैज्ञानिकों ने कोई ध्यान नहीं दिया लेकिन अमरीका के वैज्ञानिक, न्यूरोलॉजिस्ट, ऑपथाल्मोलॉजिस्ट आदि 8 विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों की निगरानी में रखने के बाद मानेक को नासा के वैज्ञानिक अपने साथ ले गए। स्वामी दयानंद ने चार घोड़ों के रथ को हाथ से पकड़कर चलने
नहीं दिया था। गंधबाबा स्वामी विशुद्धानन्द कोई भी गंध या स्थूल वस्तु शून्य से प्रकट कर देते थे और स्वामी प्रणवानन्द एक साथ दो स्थानों पर देखे गए थे (योगी कथामृत, परमहंस योगानन्द)। अनेक योगियों के आकाशगमन के किस्से पढ़ने-सुनने को मिल जाते हैं । क्या योग जादूगरी है? क्या सम्मोहन या शैतानी विद्या है? (कुछ वर्ष पूर्व वेटिकन के प्रमुख ने ऐसा कहा था) अनेक प्रसिद्ध नामों और उनके मानने वालों के असीम विश्वास के बीच हम किस योग को ठीक, प्रामाणिक और उच्चतर मानें, ये सहज जिज्ञासा मन में उठती है।
प्रत्यक्ष प्रमाण होता है; और अनुभव कर के आए हुए व्यक्ति का कथन (आप्त वचन) और शास्त्र प्रमाण होता है – प्रत्यक्ष अनुमान आगमा: प्रमाणानि।
शास्त्र कहता है योगी कल्पनातीत शक्तियों का स्वामी होता है, अनेक रूप धारण कर सकता है। एक तरफ सांप को छड़ी और छड़ी को सांप में बदलने जैसी बातों को स्वामी दयानंद बाजीगरी का तमाशा कहते हैं। दूसरी तरफ वही स्वामी दयानंद पद्मासन में स्थित हो हवा में, अधर देखे गए । रोमांच से भरपूर योग अधिकांश लोगों के लिए आज भी रहस्य ही है। आखिर क्या ठीक है, क्या गलत? योग के आदि
प्रणेताओं ने इसे किस रूप में बताया? किस उद्देश्य से बताया? योग में चमत्कार का क्या स्थान बताया? योग के क्या क्या भेद बताए? क्या आज का योग और पुरातन योग अलग अलग हैं? इन प्रश्नों के उत्तर प्राचीन ऋषियों की वाणी से लेना ही अधिक प्रामाणिक होगा।
महर्षि पतंजलि ने कहा- द्रष्टा का, आत्मा का, अपने स्वरूप में अवस्थित होना योग है। महर्षि व्यास ने कहा- योग
समाधि है। अन्यत्र कहा- जीवात्मा और परमात्मा की एकरूपता समाधि है और कहा- समाधि ही योग है। वहां केवल सत्य ज्ञान युक्त प्रज्ञा है। प्रज्ञा यानी ज्ञान, जिसको जानने के बाद कुछ जानना शेष न रहे, योग की स्थिति है। संपूर्ण बोध हो जाना योग है। बुद्ध हो जाना योग है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि समाधि तक पहुंचने के लिए ज्ञान योग का आश्रय लिया या कर्म योग का।
क्योंकि एक में सम्यक् टिका हुआ साधक अनायास ही दोनों का अभ्यास करता है अत: दोनों के फल- समाधि को, संसार बंधन से मुक्ति को, मोक्ष या निर्वाण को प्राप्त करता है। आत्मोपलब्धि या मोक्ष ही योग साधना का उद्देश्य है। जो शिक्षक आपको इस उद्देश्य के लिए प्रेरित नहीं करता या जिक्र नहीं करता, वह या तो स्वयं अंधेरे में है या आपको अनधिकारी/अनिच्छुक समझ रहा है। स्वस्थ शरीर में ही परमात्मा प्राप्ति संभव है। इसलिए शरीर को रोगमुक्त बनाने और स्वस्थ बनाए रखने के उपाय योग में बताए गए हैं। आरोग्य और स्वास्थ्य प्राप्ति के बाद योग की सही मायने में शुरुआत होती है, इसीलिए स्वामी विवेकानंद ने कहा-भारत को मंदिरों से ज्यादा फुटबॉल के मैदानों की जरूरत है। श्रीमद् भगवद्गीता में कहा है- न अयं आत्मा बलहीनेन् लभ्य:। यह आत्मा बलहीन को प्राप्त नहीं होती, आत्म तत्व की उपलब्धि बलहीन को नहीं होती। इसी उपलब्धि के मार्ग में माया लालच का टुकड़ा (सिद्धियां – विशिष्ट शक्तियां) देती है। गुरुनिष्ठ साधक उन्हें परमात्मा को समर्पित कर देता है जबकि अहंकारी अपने अहंकार को और बढ़ा लेता है। साधक शक्तियों को दिखाता नहीं, लोग देख लेते हैं।
प्राणायाम की उच्च अवस्थाओं में शरीर गुरुत्वाकर्षण से मुक्त होकर ऊपर उठ जाता है जिसे लोगों ने देखा है। (आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी छोटी वस्तुओं को गुरुत्वाकर्षण से मुक्त करने में कुछ हद तक सफलता प्राप्त कर ली है)। ब्रह्मचर्य पर व्याख्यान देते हुए स्वामी दयानंद ने चुनौती सुनकर भी व्याख्यान जारी रखा लेकिन बाद में चार घोड़ों के रथ को रोक कर दो बातें बगैर कहे कह दीं । ब्रह्मचर्य पर जो बताया उसकी महत्ता अधिक है और बाद में ब्रह्मचर्य की शक्ति को दिखा भी दिया जिससे किसी बात पर संदेह न रहे। परंपरा से दो स्थितियों में चमत्कार दिखाया जाता है, शिष्य के मन का संदेह दूर कर उसे उच्चतर साधना के लिए प्रेरित करने के लिए और विषय को स्पष्टता से समझाने के लिए। अपने आप को बड़ा या महान दिखाना शक्ति प्रदर्शन का उद्देश्य नहीं होता। यदि कोई ऐसा करता है तो वह भ्रमित है और मान, मोह, लोभ के पाश में बंधा हुआ है।
इच्छाएं तो बंधन हैं, योगी मुक्ति चाहता है। जिसको कुछ नहीं चाहिए वही शहंशाह है। महर्षि पतञ्जलि ने कहा- समाधौ उपसर्गा: व्युत्थाने सिद्धय: – वे (इच्छाएं) समाधि (के मार्ग) में व्यवधान हैं और संसार में विशिष्ट शक्तियां हैं।
योग एक ही है जो पतंजलि ने एक विज्ञान के रूप में विकसित किया है। उन्होंने परिभाषित किया कि यह अष्टांग योग है जिसके आठ भाग होते हैं:
1-यम 2-नियम
3-प्राणायाम 4-प्रत्याहार
5- आसन 6- धारणा
7-ध्यान 8-समाधि।
अब यह लोगों को समझ में आने लगा और लोग इसे अपनाने लगे। अपनाना, करना आसान हो गया। बाद में इसी को लोगों ने अपने हिसाब से सुधार कर अपने नाम से बाजार में उतारा है। आत्मा या सार सभी का वही है जिसे पतंजलि ने दिया। सारे योग पूरी तरह वैज्ञानिक हैं।
‘पॉवर’ योग
इसके प्रवर्तक भरत ठाकुर हैं। इसके अंतर्गत एक हॉल में हीटर जला दिया जाता है और हॉल के तापमान को चालीस से छियालिस डिग्री तक ले जाया जाता है। इस तापमान पर योग करवाया जाता है ताकि खूब पसीना आए। इस में पसीने पर जोर दिया जाता है यानी पसीना खूब आना चाहिए।
विक्रम योग
इसके प्रवर्तक बिक्रम चौधरी हैं। यह ‘पॉवर’ योग का ही अमरीकी रूप है। अंतर सिर्फ इतना है कि यह अमरीका में चलाया जा रहा है। चौधरी ने योग का एक खास पैकेज तैयार किया है, जिसे वह अपने नाम से पेटेंट करना चाहते हैं। इस पर तमाम भारतीय ऋषि-मुनियों ने आपत्ति प्रकट की है।
शिवानंद योग
इसमें ध्यान पर अधिक जोर दिया जाता है। यहां ध्यान और अध्यात्म मुख्य हैं। इसके अलावा इसमें षट्कर्म, शोधन क्रिया भी करवाई जाती है। इस योग में प्राणायाम वगैरह भी करवाए जाते हैं।
अयंगर योग
इसमें खास तरह की रस्सी, कुर्सी, लकड़ी, मूढ़ा, गेंद, गद्दा, चटाई और ड्रेस के माध्यम से योग करवाया जाता है। जैसे किसी व्यक्ति के पैरों में कोई तकलीफ है और वह जमीन पर नहीं बैठ सकता तो यहां उसके लिए खास तरह की कुर्सी है, जिस पर बैठ कर वह आसन कर सकता है। इसमें खास तरह की तकनीक द्वारा योग करवाया जाता है इसलिए इसे ‘इंस्ट्रूमेंटल योग’ भी कहा जाता है। इसमें जिम और फीजियोथैरेपी को मिला दिया गया है।
पश्चिमी देशों में योग के नए भारतीय रूप को प्रचलित करने में इस योग के प्रवर्तक बीकेएस अयंगर का बहुत बड़ा योगदान है।
रामदेव योग
इसमें मुख्य जोर कपालभाति और अनुलोम-विलोम पर दिया जाता है। यहां योग, आयुर्वेद और नेचुरोपैथी तीनों को शामिल किया गया है। उचित खान-पान और सही जीवन शैली अपनाने पर ध्यान दिया जाता है।
श्री श्री योग
श्री श्री रविशंकर प्रवर्तित आर्ट ऑफ लिविंग की ओर से श्री श्री योग शुरू किया गया है, जिसमें तीन दिन के शिविर में योगासन और प्राणायाम आधारित क्रियाएं कराई जाती हैं विशेषत: सूर्य नमस्कार। यह सभी तरह के योग पैकेजों का समन्वित रूप है यहां ‘रिजिडिटी’ कम है। खुलापन अधिक है।