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भारत की सांस्कृतिक आत्मा पर हमला, इस बार श्रीगंगानगर से उजागर हुआ मिशनरियों का संगठित षड्यंत्र

भारत के सनातनी सांस्कृतिक और धार्मिक ताने-बाने को लगातार कमजोर करने की सुनियोजित कोशिशें अब किसी से छिपी नहीं हैं। कभी इस्लामी जिहादी ताकतों के रूप में तो कभी ईसाई मिशनरियों के रूप में, यह शक्तियाँ भारत की आत्मा, उसकी सांस्कृतिक पहचान और उसकी धार्मिक विविधता को भीतर से तोड़ने में लगी हैं।

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हर बार नाम और घटना बदल रही है लेकिन हालात नहीं

ऐसा ही एक ताजा मामला सोमवार 6 अक्टूबर को राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के सीमावर्ती क्षेत्र हिंदूमलकोट में सामने आया है, जहाँ ईसाई मिशनरियों की एक संगठित साजिश का पर्दाफाश हुआ है। यह मामला केवल धर्मांतरण का नहीं, बल्कि एक गहरे और सुनियोजित सांस्कृतिक आक्रमण का उदाहरण है, जो हमारे सनातन और सिख धर्म की मूल भावना को चोट पहुँचाने की कोशिश कर रहा है। श्रीगंगानगर जिले के गांव खाट लबाना के निवासी सतनाम सिंह ने हिंदूमलकोट पुलिस को प्रार्थना पत्र देकर बताया कि उसके ही गांव का बग्गू सिंह नामक व्यक्ति, जो पास्टर के रूप में कार्यरत है, ईसाई मिशनरी गतिविधियों के तहत असहाय और भोले-भाले लोगों को झूठे प्रपंचों, प्रलोभनों और मानसिक दबाव में लाकर धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर कर रहा है। उसने सतनाम सिंह की बीमारी का फायदा उठाकर अभिमंत्रित जल पिलाने व उसकी बीमारी ठीक करने का दावा किया और कहा कि केवल ईसा मसीह की पूजा करने से ही वह स्वस्थ हो सकता है, बाकी दुनिया की कोई ताकत उसे ठीक नहीं कर सकती ,और  गुरुद्वारा या सिख धर्म, गुरु नानक देव जी  में किसी प्रकार की आध्यात्मिक शक्ति नहीं है उन सबके प्रति आस्था तुम्हें छोड़नी होगी । जब सतनाम सिंह ने यह बात अपने पुत्र सुखविंदर सिंह को बताई तो उसने इसका कड़ा विरोध किया और कहा कि यह सिख धर्म का घोर अपमान और कानूनी अपराध है। जब सुखविंदर सिंह ने पास्टर बग्गू सिंह से इस सम्बन्ध में बातचीत की तो सुखविंदर को धमकी दी गई कि और कहा कि हमारा नेटवर्क बहुत बड़ा है, ऊपर तक पहुंच रखते है, और अगर कोई शिकायत की तो जान से हाथ धो बैठोगे। इसके बाद बग्गू सिंह के पुत्र अमनदीप सिंह ने भी पीड़ित परिवार को फोन कर धमकाया। यह घटना केवल एक परिवार पर हमले की नहीं, बल्कि पूरे समुदाय की धार्मिक अस्मिता को कुचलने की कोशिश है। पुलिस ने मामले को गंभीरता से लेते हुए भारतीय दंड संहिता की धारा 196 और 299 के तहत मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर ऐसे संगठित नेटवर्क बार-बार भारत की मिट्टी में क्यों पनप रहे हैं और उन्हें इतनी खुली छूट क्यों मिल रही है ? आखिर कौन इनके पीछे बड़ी ताकत है ?

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धर्म परिवर्तन की साजिश के शिकार

इससे कुछ दिन पहले अखबार की खबर  के अनुसार पंजाब में पिछले कुछ वर्षों में हजारों सिखों का धर्म परिवर्तन हुआ उसके साथ ही राजस्थान की सीमावर्ती क्षेत्रों में भी यह सब घटना बड़े पैमाने पर हुई ,उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में लगभग 3000 सिखों का धर्म परिवर्तन करने का मामला सामने आया । पूरे भारत में वनवासी समाज,कमजोर वर्ग, महिलाओं को यह लोग अपना विशेष रूप से अपना निशाना बनाते हैं और अपने सुनियोजित चक्रव्यूह के तहत यह लोग निशाना बनाते हैं।

वास्तव में, विदेशी आर्थिक सहायता और धार्मिक संगठनों के सहयोग से चल रहे ये मिशनरी नेटवर्क भारत के दूरदराज़, गरीब और सीमांत इलाकों में अपनी गहरी पैठ बना रहे हैं। ये लोग बीमारी, गरीबी और सामाजिक असमानता जैसे बहानों के जरिए लोगों की भावनाओं का शोषण करते हैं, उन्हें चमत्कारी जल, नकली दैवी उपचार और झूठे धार्मिक विश्वासों में फँसाते हैं। उनका लक्ष्य स्पष्ट है,भारत की सांस्कृतिक जड़ों को खोखला करना और धीरे-धीरे देश की धार्मिक पहचान को बदलना। यह रणनीति कोई नई नहीं है इतिहास साक्षी है कि ब्रिटिश शासनकाल से ही भारत में मिशनरियों की घुसपैठ एक धार्मिक और सांस्कृतिक आक्रमण के रूप में की गई थी, जिसे अब आधुनिक स्वरूप देकर पुनः सक्रिय किया जा रहा है।

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जिहादी ताकतों का घिनौना चेहरा

दूसरी ओर, इस्लामी जिहादी ताकतें भी इसी मिशनरी षड्यंत्र का दूसरा चेहरा हैं। एक तरफ मिशनरी नेटवर्क झूठे धार्मिक चमत्कारों से लोगों को ईसाई धर्म की ओर आकर्षित करते हैं, वहीं दूसरी ओर जिहादी ताकतें डर, धमकी, आतंक और कट्टरपंथ के माध्यम से धर्मांतरण या सामाजिक विभाजन फैलाने में जुटी हैं। दोनों का उद्देश्य एक ही है भारत की सनातनी और धार्मिक एकता को तोड़ना, यहां के युवाओं को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से काटना, और इस देश को अंदर से अस्थिर करना। इनके पीछे विदेशी फंडिंग, अंतरराष्ट्रीय गैर-सरकारी संस्थाएं और छिपे एजेंडे सक्रिय रूप से काम करते हैं। पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, और पूर्वोत्तर भारत में मिशनरियों की बढ़ती गतिविधियां और धर्मांतरण के मामले इस बात का स्पष्ट प्रमाण हैं कि यह सब एक बड़े पैमाने पर चल रही वैचारिक जंग का हिस्सा है।

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ईसाई मिशनरी के कुचक्र के खिलाफ वनवासी बंधु

आज भारत जिस दौर से गुजर रहा है, उसमें यह केवल एक धार्मिक मुद्दा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और सांस्कृतिक अस्तित्व का प्रश्न है। इन गतिविधियों के चलते स्थानीय लोगों में धर्म के प्रति भ्रम फैलाया जा रहा है, परंपरागत आस्था का मज़ाक उड़ाया जा रहा है, और युवाओं के मन में अपने धर्म के प्रति हीन भावना भरी जा रही है। यह एक मानसिक दासता का रूप है, जो धीरे-धीरे भारत की आत्मा को कमजोर करने का काम कर रही है। मिशनरियों और जिहादियों के इस गठजोड़ से निपटने के लिए केवल कानूनी कार्रवाई पर्याप्त नहीं, बल्कि सामाजिक जागरूकता और राष्ट्रीय एकता की भावना को भी मज़बूत करना आवश्यक है।

सरकार को चाहिए कि इस तरह के संगठित नेटवर्कों पर सख्त नियंत्रण रखे, विदेशी फंडिंग की जांच करे, और जिन संस्थाओं पर धर्मांतरण या सांस्कृतिक हस्तक्षेप का आरोप है, उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए। साथ ही समाज के हर वर्ग को यह समझना होगा कि धर्म के नाम पर किसी भी प्रकार का प्रलोभन, छल या मानसिक दबाव अस्वीकार्य है। हमें अपने सनातन, हिंदू ,सिख, जैन और बौद्ध धर्म की मूल भावना सत्य, करुणा, सहिष्णुता और एकता को शक्ति के साथ सशक्त रूप में मजबूत करना होगा।

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दुश्चक्र के विरुद्ध कठोर कदम

भारत के लोग, विशेष रूप से युवाओं को यह समझना होगा कि हमारी संस्कृति कोई अंधविश्वास नहीं बल्कि मानवता, आदि अनादि काल से प्रचलित विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति है और विज्ञान और आत्मानुशासन पर आधारित एक जीवनशैली है। अगर हम इन मिशनरियों और जिहादियों की साजिशों को समय रहते नहीं रोक पाए, तो आने वाले वर्षों में यह केवल धार्मिक संकट नहीं, बल्कि सभ्यतागत विनाश का कारण बन सकता है। इसलिए हर नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपने धर्म, अपनी संस्कृति और अपनी परंपराओं की रक्षा करे। यही भारत की आत्मा है और यही उसका शाश्वत सत्य।

धर्मो रक्षति रक्षितः

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