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पञ्च परिवर्तन RSS@100, भाग 13 – स्वयंसेवक में राष्ट्र के प्रति विशुद्ध निष्ठा और त्वरित प्रतिक्रिया

भारत भूमि पर, जहाँ सदियों से विविधता में एकता का संदेश गूँजता रहा है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) एक ऐसा अनूठा संगठन है जो स्वयंसेवकों में राष्ट्र के प्रति विशुद्ध निष्ठा और संकट की घड़ी में त्वरित प्रतिक्रिया के बीज बोता है। यह कोई आकस्मिक घटना नहीं, बल्कि डॉ. हेडगेवार की दूरदृष्टि का परिणाम है, जिन्होंने ऐसी शाखा-पद्धति का आविष्कार किया जो प्रतिदिन ‘अति उत्कट अखिल भारतीय राष्ट्र-चेतना’ जाग्रत करती है।

  देश के किसी भी कोने में, चाहे वह नगर हो, ग्राम हो या सुदूरवर्ती पर्वत-प्रदेश, हज़ारों शाखाओं में प्रतिदिन स्वयंसेवक एकत्र होते हैं। दिन की व्यस्तताओं से परे, वे एक शांत और अनुशासित वातावरण में आते हैं। यहाँ सामूहिक प्रार्थना संस्कृत में की जाती है, और प्रभु से अजेय शक्ति, चरित्र, ज्ञान, शौर्य और ध्येयनिष्ठा जैसे सद्गुणों के लिए प्रार्थना की जाती है। इस प्रार्थना के ठीक बाद, हर स्वयंसेवक प्रतिदिन ‘एकात्मता स्तोत्र’ और ‘एकात्मता मंत्र’ का पाठ करता है। इन पवित्र पंक्तियों में, हमारे इतिहास, संस्कृति और आध्यात्मिक परंपराओं के संगठनकारी और समन्वयकारी पक्षों को उजागर किया जाता है। यह दैनिक अभ्यास स्वयंसेवकों के मानस में अखंड राष्ट्रीय चेतना जगाता है, उन्हें यह बोध कराता है कि ‘समूचा राष्ट्र एक कुटुम्ब’ है, और मत, भाषा, जाति तथा अन्य सभी प्रकार के भेदभावों को निर्मूल करने वाले संस्कारों को सुदृढ़ करता है। इस प्रकार, स्वयंसेवक में राष्ट्र के प्रति विशुद्ध निष्ठा कट-कुटकर भरी रहती है

इसी निष्ठा और गहरे संस्कार का परिणाम है, संकट की घड़ी में उनकी त्वरित और सहज प्रतिक्रिया। स्वयंसेवक केवल सैद्धांतिक बातों तक सीमित नहीं रहते, बल्कि व्यवहार में इसे चरितार्थ करते हैं।

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संकट में त्वरित प्रतिक्रिया के जीवंत उदाहरण:

  • विभाजन और दिल्ली की रक्षा (1947): जब विभाजन की काली छाया राष्ट्र पर मंडरा रही थी और मुस्लिम लीग की योजना दिल्ली पर कब्ज़ा करने, मंत्रियों और हज़ारों हिन्दुओं की हत्या करने की थी, तो स्वयंसेवकों ने बिल्कुल सही समय पर नेहरूजी और पटेलजी को इसकी सूचना दी। उनके इस शौर्यपूर्ण कार्य ने करोड़ों हिन्दुओं की जान बचाई और देश को ‘पाकिस्तान’ बनने से रोका
  • कश्मीर का भारत में विलय: महाराजा हरिसिंह के असमंजस के समय, संघ के नेताओं ने तुरंत स्थिति की गंभीरता को समझा और महाराजा से भारत में शामिल होने का आग्रह किया। जब श्रीनगर के डाक विभाग में पाकिस्तानी झंडा फहराया गया, तो संघ-स्वयंसेवकों और समर्थकों ने तुरंत उसे उतरवा दिया। आंतरिक विद्रोहियों का डटकर सामना किया और उनकी योजनाओं को विफल कर जम्मू की रक्षा की। यहां तक कि एक स्वयंसेवक मुस्लिम वेश में घुसपैठ की पाकिस्तानी योजना का भेद जानने में सफल रहा। स्वयंसेवकों ने जम्मू हवाई पट्टी को चौड़ा करने का काम भी तत्काल हाथ में लिया ताकि भारतीय सेना के विमान उतर सकें।
  • पुर्तगाली आधिपत्य का उन्मूलन: गोवा, दादरा, नगर हवेली जैसे क्षेत्रों से पुर्तगाली शासन को समाप्त करने के लिए स्वयंसेवकों ने गुरिल्ला रणनीति अपनाई और बिना शर्त आत्मसमर्पण के लिए मजबूर किया। सेल्वासा में स्वयंसेवक बापूराव वाडेकर ने तिरंगा हाथ में लेकर ‘भारतमाता की जय’ का उद्घोष करते हुए प्राण न्यौछावर कर दिए, मरते-मरते भी उन्होंने ‘ध्वज की रक्षा करो’ का आदेश दिया।
  • युद्धकाल में राष्ट्रीय समर्थन:
    • भारत-चीन युद्ध (1962): जब चीन ने आक्रमण किया और कम्युनिस्टों ने भारत के रक्षा प्रयासों को विफल करने की कोशिश की, तो भारतीय मजदूर संघ की यूनियनों ने अपने सभी आंदोलन तुरंत वापस ले लिए और रक्षा-उत्पादन को सर्वोच्च प्राथमिकता दी।
    • भारत-पाक युद्ध (1965): दिल्ली में जब सेना के अधिकारियों को तत्काल रक्त की आवश्यकता पड़ी, तो अर्द्धरात्रि में ही दिल्ली संघ-कार्यालय को फोन किया गया, और अगले दिन सवेरे 500 स्वयंसेवक रक्तदान करने अस्पताल पहुँच गए। स्वयंसेवकों ने सीमावर्ती क्षेत्रों में कैंटीनें भी खोलीं, जहाँ शत्रु का तोपखाना गोले बरसा रहा था।
    • नक्सलवादी आतंक का सामना: आंध्र प्रदेश के तेलंगाना क्षेत्र में, जब नक्सलवादियों ने आतंक फैला रखा था, तो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (अ.भा.वि.प.) के कार्यकर्ताओं ने उनसे लोहा लिया। डॉ. सुरेंद्र रेड्डी जैसे स्वयंसेवकों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए सत्य की रक्षा की और उनके बलिदान ने दूसरों में साहस भरा।
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यह सब दर्शाता है कि स्वयंसेवकों में राष्ट्र के प्रति एक अदम्य, निस्वार्थ निष्ठा होती है। वे केवल बात करने वाले नहीं, बल्कि कार्य करने वाले कर्मठ व्यक्ति होते हैं। यह निष्ठा और त्वरित प्रतिक्रिया संघ की अनुशासित कार्यशैली और चरित्र-निर्माण पर आधारित है, जिसका एकमात्र उद्देश्य ‘मानव-स्वयंसेवक’ का निर्माण है, जो राष्ट्र के कायाकल्प का प्रमुख आधार बनें

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