डॉ. हेडगेवार की दूरदर्शिता से जन्मी शाखा-पद्धति, भारत की हजारों नगरों, ग्रामों और सुदूरवर्ती पर्वत-प्रदेशों में, प्रतिदिन सांयकाल या निश्चित अंतराल पर एक अद्भुत विद्यालय बन चुकी है। यह कोई साधारण सभा नहीं, बल्कि राष्ट्र के पुनर्निर्माण की एक जीवंत प्रयोगशाला है जहाँ छोटे से लेकर बड़े तक, विभिन्न पृष्ठभूमियों से आए स्वयंसेवक एक साथ एकत्र होते हैं।
कल्पना कीजिए एक शाखा का दृश्य। दिनभर की व्यस्तता के बाद, स्वयंसेवक निर्धारित स्थान पर आते हैं। हवा में एक विशेष ऊर्जा और शांत अनुशासन महसूस की जा सकती है। जैसे ही कार्यक्रम का समय होता है, सभी एक वृत्ताकार में या पंक्तियों में व्यवस्थित हो जाते हैं। वातावरण में एक पवित्रता सी घुल जाती है, और फिर स्वर गूँजते हैं – संस्कृत में सामूहिक प्रार्थना के स्वर। यह केवल शब्दों का उच्चारण नहीं होता, बल्कि एक गहरा भाव-संस्कार होता है जो प्राचीन भारतीय संस्कृति और परम्परा के शाश्वत मूल्यों को मन में रोपता है। प्रार्थना के श्लोक, जो सदियों से इस भूमि की आत्मा रहे हैं, स्वयंसेवकों को एक अखंड राष्ट्रीय चेतना से जोड़ते हैं, यह याद दिलाते हुए कि वे एक विशाल और गौरवशाली राष्ट्र के अंग हैं। यह प्रार्थना, विचारों में स्पष्टता, चरित्र में दृढ़ता और राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना का आह्वान करती है।

प्रार्थना के उपरांत, कार्यक्रम आगे बढ़ता है। यहीं पर महापुरुषों के वचनामृत का पान कराया जाता है। यह केवल मौखिक रूप से कही गई बातें नहीं होतीं, बल्कि राष्ट्र के उन महान व्यक्तित्वों के जीवन और दर्शन से जुड़ी कहानियाँ और उद्धरण होते हैं, जिन्होंने अपना सर्वस्व राष्ट्र को समर्पित कर दिया। कभी महाराणा प्रताप के शौर्य की गाथा, कभी शिवाजी महाराज के संगठन कौशल की, तो कभी स्वामी विवेकानंद के ओजस्वी विचारों का अमृतपान कराया जाता है। स्वयंसेवकों को इन महापुरुषों से संबंधित गीत और कहानियाँ सुनाई जाती हैं, जो उनमें उत्कट प्रेम और गहन आत्मविश्वास जगाती हैं। इन वचनामृतों के माध्यम से उन्हें राष्ट्रीय आस्था और जीवन-मूल्यों के मान-बिन्दुओं पर बल दिया जाता है।
यह प्रक्रिया, जिसे डॉ. हेडगेवार ने बड़ी सोच-समझकर विकसित किया, केवल ज्ञान देने तक सीमित नहीं है। इसका उद्देश्य “मानव-स्वयंसेवक” का निर्माण करना है, जो राष्ट्र के कायाकल्प का प्रमुख आधार बनें। महापुरुषों के इन प्रेरणादायक विचारों और संस्कृत प्रार्थना के माध्यम से, स्वयंसेवकों में एकात्मता संबंधी स्वस्थ संस्कारों को और सुदृढ़ किया जाता है। ये संस्कार उन्हें सिखाते हैं कि मत, भाषा और जाति के तथा अन्य प्रकार के सभी भेदभाव निर्मूल किये जा सकें।
संस्कृत में सामूहिक प्रार्थना और महापुरुषों का वचनामृत शाखा के दैनिक कार्यक्रम के वे बहुमुखी आयाम हैं, जो साधारण स्वयंसेवक को राष्ट्र के प्रति विशुद्ध निष्ठा और संगठित हिन्दू शक्ति से ओत-प्रोत कर, उन्हें एक अनुशासित और निस्वार्थ नागरिक बनने की प्रेरणा देते हैं। यह छोटी सी दिखने वाली दैनिक गतिविधि, वास्तव में राष्ट्रिय पुनर्निर्माण का एक सशक्त माध्यम बन चुकी है।