जब डॉ. हेडगेवार ने यह गहराई से अनुभव किया कि ब्रिटिश दासता से मुक्ति मिल भी जाए, तो भी यदि राष्ट्र में अखंड राष्ट्रीय चेतना का अभाव रहा, तो स्वाधीनता संकट में पड़ी रहेगी। उन्होंने भारत के इतिहास का गहन अध्ययन किया और समझा कि मुट्ठीभर विदेशी आक्रमणकारियों के हाथों देश को पराजय क्यों झेलनी पड़ी – इसका मूल कारण था लोगों के मन में “प्रखर अखंड राष्ट्रीय चेतना का अभाव”। उन्होंने देखा कि जब देश के एक हिस्से पर हमला होता था, तो बाकी लोग हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते थे, यह भूलकर कि स्वाधीनता का बँटवारा नहीं किया जा सकता। इस गंभीर दोष को दूर करने और “अति उत्कट अखिल भारतीय राष्ट्र-चेतना” जाग्रत करने के लिए डॉ. हेडगेवार ने एक अद्भुत शाखा-पद्धति का आविष्कार किया।

कल्पना कीजिए, आज भी भारत के नगरों, ग्रामों और सुदूर पर्वतीय प्रदेशों में, जहाँ हजारों शाखाएँ प्रतिदिन लगती हैं, वहाँ एक अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है।
शाम का समय है। दिनभर के कामकाज के बाद, विभिन्न पृष्ठभूमियों से आए स्वयंसेवक एक खुले मैदान या हॉल में एकत्र होते हैं। यह कोई साधारण सभा नहीं, बल्कि राष्ट्र के पुनर्निर्माण की एक जीवंत पाठशाला है।
कार्यक्रम की शुरुआत होती है एक सामूहिक प्रार्थना से, जो संस्कृत में की जाती है। इस प्राचीन भाषा के श्लोक वातावरण में एक पवित्रता और गंभीरता घोल देते हैं। प्रार्थना के बाद, स्वयंसेवकों को महापुरुषों से संबंधित गीत और कहानियाँ सुनाई जाती हैं। उन्हें उन महान व्यक्तित्वों के वचनामृत का पान कराया जाता है, जिन्होंने राष्ट्र के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।
इसके उपरांत, सभी मिलकर राष्ट्र की वर्तमान समस्याओं पर वार्ता और चर्चा करते हैं। यह कोई राजनीतिक बहस नहीं, बल्कि राष्ट्र की चुनौतियों को समझने और उनके समाधान पर चिंतन करने का मंच होता है। इन चर्चाओं के दौरान, राष्ट्रीय आस्था और जीवन-मूल्यों के मान-बिंदुओं पर विशेष बल दिया जाता है। हर दिन, ‘एकात्मता स्तोत्र’ और ‘एकात्मता मंत्र’ का पाठ किया जाता है। ये मंत्र हमारे इतिहास, संस्कृति और आध्यात्मिक परंपराओं के संगठनकारी और समन्वयकारी पक्षों को उजागर करते हैं, यह याद दिलाते हुए कि हमारा देश विविधताओं से भरा होने के बावजूद एक ही धागे में पिरोया हुआ है।

इन दैनिक कार्यक्रमों के साथ-साथ, ‘संघ-शिक्षा वर्ग’ नामक प्रशिक्षण-शिविर भी आयोजित किए जाते हैं। ये शिविर एकात्मता संबंधी स्वस्थ संस्कारों को और सुदृढ़ करते हैं, ताकि मत, भाषा और जाति जैसे सभी भेदभावों को निर्मूल किया जा सके। कल्पना कीजिए, देश के कोने-कोने से, विभिन्न भाषाएँ बोलने वाले और अलग-अलग रीति-रिवाजों का पालन करने वाले कार्यकर्ता नागपुर पहुँचते हैं। वे यहाँ सामूहिक जीवन का अनुभव करते हैं – एक साथ रहते हैं, खेलते हैं, खाते हैं और वार्तालाप करते हैं। वे एक साथ गाते हैं, प्रार्थना करते हैं, और इस प्रकार ‘समूचा राष्ट्र एक कुटुम्ब’ की संकल्पना का प्रत्यक्ष अनुभव करते हैं। यह अनुभव उनमें राष्ट्र के प्रति विशुद्ध निष्ठा और संगठित हिन्दू शक्ति का निर्माण करता है।
डॉ. हेडगेवार का एकमात्र उद्देश्य “मानव-स्वयंसेवक” का निर्माण करना था, जो राष्ट्र के कायाकल्प का प्रमुख आधार बनें। इस प्रकार, उनकी दूरदृष्टि ने जहाँ स्वाधीनता-संग्राम की ज्योति को प्रज्ज्वलित रखा, वहीं साथ-साथ राष्ट्र के मेरुदंड को भी सुदृढ़ किया। यह वास्तव में एक अनुपम संगम था, जैसे सोने पर सुहागा।