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राष्ट्रविरोधी प्रवृत्तियाँ, डीप स्टेट और युवा शक्ति


         भारत एक जीवंत लोकतंत्र है, जिसकी नींव संविधान, जनमत और सांस्कृतिक मूल्यों पर टिकी हुई है। लोकतंत्र में मतभेद स्वाभाविक हैं, लेकिन जब कुछ विचार और नारे सतही रूप से राष्ट्रप्रेमी दिखते हैं, और वास्तव में राष्ट्र विरोधी तथा तथाकथित डीप स्टेट की रणनीति से प्रेरित होते हैं, तब वे देश के लोकतांत्रिक ढाँचे के लिए गंभीर खतरा बन जाते हैं।
“डीप स्टेट” से तात्पर्य उन अदृश्य शक्तियों से है, जो लोकतांत्रिक संस्थाओं के बाहर रहकर भी राजनीति, समाज और शासन पर प्रभाव डालने की कोशिश करती हैं। ये शक्तियाँ प्रायः –जनता में असंतोष फैलाकर व्यवस्था को अस्थिर करती हैं, भ्रम पैदा करके युवाओं की ऊर्जा को भटकाती और विदेशी एजेंडों को आगे बढ़ाती हैं। जब कोई नारा या अभियान युवाओं को संविधान और लोकतंत्र के नाम पर आंदोलित करता है, लेकिन वास्तव में चुनावी प्रक्रिया को कमजोर करता है या समाज को विभाजित करता है, तब समझना चाहिए कि यह डीप स्टेट की चाल है।
“संविधान बचाओ, लोकतंत्र बचाओ” जैसे नारे मूलतः सकारात्मक हो सकते हैं, लेकिन यदि इनके पीछे छिपा उद्देश्य –जनमत को भड़काना,वैधानिक संस्थाओं को कमजोर करना और वोट चोरी का नाम लेकर लोकतांत्रिक प्रक्रिया की साख पर चोट करना हो, तो यह राष्ट्रविरोधी गतिविधि बन जाती है।
युवा यदि बिना सोचे-समझे ऐसे नारों से जुड़ते हैं तो अनजाने में वे राष्ट्र की शक्ति के बजाय राष्ट्रविरोधी ताकतों को बल देते हैं। युवाओं का कर्तव्य है कि वे राष्ट्रहित और राष्ट्रविरोध में अंतर पहचानें।यदि कोई आंदोलन केवल आलोचना और अराजकता पर टिका है, तो वह रचनात्मक नहीं है।
यदि कोई विचार युवाओं को संविधान की रक्षा के नाम पर संस्थाओं पर ही अविश्वास करने के लिए उकसाता है, तो यह लोकतंत्र की रक्षा नहीं, बल्कि उसे कमजोर करने की साजिश है। यदि कोई नारा युवाओं को राष्ट्र के विरुद्ध खड़ा करता है, तो उसे अस्वीकार करना ही सच्ची देशभक्ति है।
भारतीय ऋषि परंपरा और राष्ट्रीय चेतना हमें सिखाती है कि सज्जन शक्ति हमेशा विध्वंसक प्रवृत्तियों के विरुद्ध खड़ी होती है। स्वामी विवेकानंद ने युवाओं को केवल विरोध के बजाय सृजनात्मक शक्ति बनने का संदेश दिया। महर्षि दयानंद और महात्मा गांधी ने सत्य और पारदर्शिता के आधार पर समाज को परिवर्तन का मार्ग दिखाया। इसलिए युवाओं का दायित्व है कि वे नकारात्मक नारों से प्रभावित न होकर, सकारात्मक राष्ट्रीय दृष्टिकोण से समाज में सुधार और जागरण का कार्य करें।
युवा, छात्र और सज्जन शक्ति राष्ट्र की आशा हैं। परंतु उनकी ऊर्जा का दुरुपयोग यदि डीप स्टेट और राष्ट्रविरोधी शक्तियाँ करने लगें, तो यह लोकतंत्र और संविधान दोनों के लिए घातक होगा। इसलिए जरूरी है कि युवा विवेक से काम लें, राष्ट्रहित और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में फर्क करें, और केवल वही कदम उठाएँ जो वास्तव में लोकतंत्र, संविधान और भारत की एकता को मजबूत करे।
सच्चा नारा यह होना चाहिए –
“हम राष्ट्र की रक्षा करेंगे, संस्थाओं का सम्मान करेंगे, और सज्जन शक्ति बनकर भारत को सशक्त बनाएंगे।”
जय हिंद!
लेखाराम बिश्नोई
लेखक

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1 thought on “राष्ट्रविरोधी प्रवृत्तियाँ, डीप स्टेट और युवा शक्ति”

  1. Dr Govind Singh Rajpurohit

    अति सुन्दर युवा शक्ति को जागृत करता लेख।जय हिन्द ।

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