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बरेली दंगों में मौलाना तौकीर की भूमिका

बरेली दंगों के मास्टरमाइंड मौलाना तौकीर: एक विवेचना

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मौलाना तौकीर का राजनीतिक अभिज्ञान

2013 में, जब उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार थी, मौलाना तौकीर को हथकरघा विभाग का उपाध्यक्ष (राज्यमंत्री स्तर) बनाया गया। इस निर्णय ने तौकीर को राजनीतिक पहचान दिलाई, और उन्हें एक महत्वपूर्ण पद पर आसीन किया। यह उस समय हुआ जब वे पहले से ही 2010 के बरेली दंगों से जुड़े मामलों में विवादों में रहे थे।

2010 का दंगों का मामला

बरेली में 2010 में दंगों की एक गंभीर घटना हुई, जिसमें तौकीर का नाम सामने आया। बसपा शासन के दौरान उन्हें जेल में डाल दिया गया था। लेकिन, उनके समर्थकों द्वारा शहर को जलाने की धमकी दी जाने के बाद, उन्हें रिहा कर दिया गया। यह एक स्पष्ट उदाहरण है कि कैसे सामाजिक और राजनीतिक दबावों के चलते कानून की प्रक्रिया प्रभावित होती है।

व्हाट्सएप कॉल के जरिए उग्र भीड़ की तैयारी

तौकीर रजा के सहयोगी नदीम खान ने बरेली में 1,600 लोगों को जुटाने के लिए केवल 55 लोगों को व्हाट्सएप कॉल किया। यह बहुत ही चौंकाने वाला था कि एक योजना के तहत इतनी बड़ी संख्या में लोगों को एकत्र किया गया। डिजिटल युग में, जहां संचार माध्यम तेज हो गए हैं, कम समय और संसाधनों में बड़ी भीड़ को एकत्रित कर पाना एक सुनियोजित प्रयास का संकेत देता है।

सीएए विरोध और सुनियोजित साजिश

समय के साथ, जब नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हुए, तो तौकीर जैसे लोग और अधिक सक्रिय हो गए। साक्ष्यों से यह स्पष्ट होता है कि इन प्रदर्शनों में बाहरी लोगों को शामिल करने के लिए एक सुनियोजित साजिश रची गई थी, जिससे अराजकता भड़की।

भीड़ का एकत्र होना: प्राकृतिक या रणनीतिक?

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि बरेली में हुई भीड़ का एकत्र होना एक स्वाभाविक घटना नहीं थी। यह एक रणनीतिक और हिंसक प्रयास था जिसे बहुत सोच-समझकर किया गया था। जब कोई घटना इतनी विशालता में होती है, तो यह स्वयं में अनायास नहीं होती; इसके पीछे की योजना और कार्यप्रणाली गहरी होती है।

निष्कर्ष

सामाजिक समरसता और शांति के लिए हमें समझने की जरूरत है कि कैसे कुछ व्यक्ति और समूह देश की सुरक्षा और एकता के लिए खतरा बन सकते हैं। मौलाना तौकीर जैसे उदाहरण हमें यह सीख देते हैं कि राजनीतिक पदों का दुरुपयोग किस प्रकार से समाज को प्रभावित कर सकता है। ऐसे मुद्दों पर जागरूकता फैलाना आवश्यक है, ताकि हम इससे बाहर निकल सकें और एक बेहतर समाज निर्मित कर सकें।

इस प्रकार, निष्कर्ष में हमें समझना होगा कि सामाजिक और राजनीतिक घटनाओं का प्रभाव केवल स्थानीय नहीं होता, बल्कि यह पूरे देश की स्थिति को प्रभावित करता है। आइए, हम सब मिलकर ऐसे तत्वों का विरोध करें और समाज में सद्भावना और शांति बनाए रखें।

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