पाकिस्तान में, संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित जैश-ए-मोहम्मद ने “तुफ़ात अल-मुमिनात” नामक एक ऑनलाइन जिहादी पाठ्यक्रम की शुरुआत की है। यह कदम विशेष रूप से चिंताजनक है क्योंकि यह महिलाओं को कट्टरपंथ के लिए प्रेरित करने का प्रयास कर रहा है। इस कार्यक्रम का नेतृत्व मसूद अज़हर की बहनें, सादिया अज़हर और समायरा अज़हर, करेंगी। यह पाठ्यक्रम विशेष रूप से “धार्मिक कर्तव्य और जिहाद” जैसे मुद्दों पर केंद्रित होगा और इसका उद्देश्य जमात उल-मुमिनात ब्रिगेड का निर्माण करना है।
कक्षाएँ 8 नवंबर, 2025 से शुरू होंगी और एक बार फिर से गैरकानूनी गतिविधियों के लिए तैयारी का एक प्रयास माना जा रहा है। इसमें शामिल होने के लिए 156 रुपये का “दान” देना होगा, जिसका उपयोग आतंकवादी प्रशिक्षण और हथियार संचालन के लिए किया जाएगा। यह न केवल एक आतंकवादी संगठन का वैचारिक विस्तार है, बल्कि दुनिया भर में जिहादी गतिविधियों को बढ़ावा देने का भी प्रयास है।
जिहाद की धारणा
जिहाद की अवधारणा इस्लाम में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है, लेकिन इसका दुरुपयोग अक्सर चरमपंथी संगठनों द्वारा किया जाता है। जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन अपने ही उद्देश्य के लिए इस शब्द का उपयोग कर रहे हैं। यह महत्वपूर्ण है कि समाज इस प्रकार के प्रचार को समझे और इससे बचने का प्रयास करे।
शिक्षकों की भूमिका
सादिया और समायरा अज़हर का पाठ्यक्रम न केवल कट्टरपंथी विचारों को फैलाएगा बल्कि युवा महिलाओं को एक ऐसा प्लेटफार्म भी प्रदान करेगा जिसमें वे अपने विचारों को साझा कर सकें। इस तरह के प्रयास समाज में विघटन का कारण बन सकते हैं और शांति एवं सहिष्णुता की भावना को कमजोर कर सकते हैं。
भविष्य की चुनौतियाँ
इस प्रकार के ऑनलाइन पाठ्यक्रमों से न केवल महिलाएं बल्कि आने वाली पीढ़ियों पर भी गहरा असर पड़ सकता है। यह चुनौती है कि कैसे समाज, परिवार और सरकार इन विचारधाराओं का सामना कर सकते हैं।
समाज की जिम्मेदारी
समाज का यह कर्तव्य है कि वे जागरूकता फैलाएँ और इस प्रकार के जिहादी पाठ्यक्रमों के प्रभावों के बारे में चर्चा करें। शिक्षा और संवाद के माध्यम से ही हम कट्टरपंंथ के माध्यमों को नकार सकते हैं।
जैश-ए-मोहम्मद द्वारा शुरू किए गए “तुफ़ात अल-मुमिनात” पाठ्यक्रम की गंभीरता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह न केवल महिलाओं को कट्टरपंथ के प्रति प्रेरित करता है, बल्कि एक व्यापक सामाजिक समस्या का संकेत भी है। जागरूकता, शिक्षा और संवाद के माध्यम से ही हमें इस खतरे का सामना करना होगा। हमें मिलकर एक ऐसा समाज बनाना होगा जहाँ कट्टरपंथ का कोई स्थान न हो।