कार्यकर्ताओं की निस्वार्थ सेवा और प्रचार से विमुखता संघ की कार्यशैली की एक केंद्रीय विशेषता है। संगठन का मूल दृष्टिकोण ही ‘मानव-कल्याण’ पर आधारित है और इसका एकमात्र उद्देश्य ऐसे ‘मानव-स्वयंसेवक’ का निर्माण है जो राष्ट्र के कायाकल्प में सहायक हो। ये कार्यकर्ता व्यक्तिगत लाभ या पहचान से कोसों दूर रहते हैं और शांत भाव से काम करना पसंद करते हैं। उनकी योग्यता का मापदंड उनका ‘कर्म’ है, न कि उनका ‘नाम’।
संघ की कार्यशैली बिना प्रचार-प्रसार के काम करने की है, जिसके कारण उनके प्रयासों के लिखित विवरण बहुत कम उपलब्ध हैं। वास्तव में, हजारों स्वयंसेवक व्यक्तिगत स्तर पर अनगिनत क्षेत्रों में ऐसे असाधारण कार्य कर रहे हैं, जिनके निजी अनुभव अत्यंत प्रभावशाली होते हैं, लेकिन उन्हें एक समुचित परिधि में संकलित करना असंभव है। वे स्वयंसेवकों को ऐसे गुणों और सद्गुणों के संस्कार देते हैं जिससे वे व्यक्तिगत प्रलोभनों से मुक्त रहें। राष्ट्र के लिए कष्ट सहना या खर्च करना उनके लिए स्वार्थ-त्याग नहीं, बल्कि एक पवित्र कर्तव्य है, ठीक वैसे ही जैसे परिवार के लिए किया गया खर्च होता है।
उनकी निस्वार्थ सेवा और प्रचार से विमुखता को दर्शाने वाली कुछ कहानियाँ इस प्रकार हैं:
जब कर्म ही पहचान बन गया
एक बार, दिल्ली में एक मिलिट्री ट्रेन घायल जवानों को लेकर पहुँची, जिन्हें तत्काल रक्त की आवश्यकता थी। सेना के अधिकारियों ने आधी रात में दिल्ली संघ-कार्यालय को फोन किया। यह देखकर अद्भुत था कि अगले ही दिन सुबह 500 स्वयंसेवक रक्तदान करने के लिए मिलिट्री अस्पताल पहुँच गए। अस्पताल के नियमानुसार प्रत्येक स्वयंसेवक को दस रुपये दिए गए, लेकिन स्वयंसेवकों ने उन रुपयों को लौटाते हुए कहा कि उनका सदुपयोग घायल जवानों के लिए किया जाए। यह उनकी निस्वार्थ भावना का एक ज्वलंत उदाहरण था, जहाँ सेवा के बदले में वे कुछ भी नहीं चाहते थे।

अंधेरे में जलती मशालें
आपदाओं के समय, स्वयंसेवक बिना बुलाए ही पीड़ितों की सहायता के लिए तुरंत पहुँच जाते हैं। विशाखापत्तनम में इस्पात नगर में हुए भयानक विस्फोट के बाद, जब पूरा नगर अस्त-व्यस्त था, स्वयंसेवक ही सबसे पहले घटनास्थल पर पहुँचे। उनके पास कोई विशेष उपकरण नहीं था, फिर भी उन्होंने अपने हाथों से घायलों और मृतकों को मलबे से हटाने का जोखिम भरा काम किया। नगर निगम के श्रमिकों ने भी शवों को छूने से मना कर दिया था, लेकिन स्वयंसेवकों ने यह कार्य बिना किसी हिचक के किया, जिसकी स्वयं जिला उपायुक्त और मंत्रियों ने सराहना की। इसी तरह, चम्पा रेल दुर्घटना में भी स्वयंसेवक देवदूत के रूप में सबसे पहले पहुँचे और राहत कार्य में जुट गए। मोरवी में बाढ़ के बाद, स्वयंसेवकों ने महामारी फैलने से रोकने के लिए शवों को एकत्र करने और उनका दाह संस्कार करने का अमानवीय कार्य भी किया। ये सभी कार्य बिना किसी प्रचार के, चुपचाप किए गए और दूसरों को उनकी निस्वार्थता का प्रमाण स्वतः मिल गया।

सामाजिक समरसता का मौन संदेश
आगरा की मलिन बस्तियों में सेवा भारती के कार्यकर्ताओं ने बच्चों के लिए संस्कार केंद्र खोले। इन केंद्रों के माध्यम से वे सामाजिक समरसता लाने का प्रयास करते थे। एक बार, एक बहुजन समाज पार्टी का कार्यकर्ता सीताराम (एक स्वयंसेवक) के घर आया और उसे संघ के बारे में गलत जानकारी दी, यह कहते हुए कि संघ के लोग छुआछूत करते हैं। सीताराम ने उसे जवाब दिया, “भाई! तुम तो हमारी अपनी जाति के हो, फिर भी मेरी लड़की के विवाह में सम्मिलित होने पर तुमने भोजन के बाद प्लेटों को छुआ तक नहीं। दूसरी ओर, जिन लोगों के बारे में तुम कहते हो कि वे छुआछूत बरतते हैं, उन्होंने अपने हाथों से भोजन की जूठी प्लेटें धोईं। सच पूछो तो वे नहीं, बल्कि तुम छुआछूत बरतते हो।” इस घटना ने बहुजन समाज पार्टी के नेता के मुँह पर थप्पड़ का काम किया और वह बिना कुछ कहे चला गया। यह दिखाता है कि स्वयंसेवक अपनी निस्वार्थ सेवा और व्यवहार के माध्यम से समाज में परिवर्तन लाते हैं, न कि नारों या प्रचार से।
स्वयंसेवकों की निस्वार्थ सेवा उनके चरित्र का अभिन्न अंग है, जिसे वे डॉ. हेडगेवार के निजी उदाहरण और संघ के कठोर प्रशिक्षण से आत्मसात करते हैं। उनकी प्राथमिकता राष्ट्र और समाज का कल्याण है, न कि व्यक्तिगत प्रसिद्धि या प्रशंसा। यही कारण है कि उनके असंख्य प्रेरणादायी अनुभव अक्सर लिखित विवरणों में नहीं मिलते और वे चुपचाप अपने राष्ट्र-निर्माण के कार्य में लगे रहते हैं।